भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व तृतीय – अध्याय १५
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — तृतीय भाग)
अध्याय – १५

सूत जी बोले-इन्दुल के स्वर्ग चले जाने पर वीरगणों ने शोक से दुःखी होकर समस्त लोकों में निवास करने वाली श्री शारदा देवी जी की पूजा की । प्रेम में मग्न होकर भक्तिपूर्वक वे लोग तीनों काल सप्तशती स्तोत्र का पाठ करते हुए ध्यान द्वारा आनन्द प्राप्त करने लगे । सामन्त ब्राह्मण का पुत्र, जिसे लोग चामुण्ड कहते हैं, आठ वर्ष की अवस्था से चण्डिका देवी की उपासना तीनों चरित्रों के पाठ द्वारा कर रहा था । उस समय उसकी बारह वर्ष की अवस्था आरम्भ थी। om, ॐसातवें दिन भक्तजनों के परीक्षार्थ भगवती ने अपनी साक्षात् मूर्ति प्रकटकर उन लोगों से कहा-‘भक्तवृन्द ! मैं इस अपने कुण्ड को पूर्ण करना चाहती हूँ, तुम लोग अपने मन से इसके पूर्ण होने का उपाय निश्चित कर इसे पूर्ण करो। इसे सुनकर बलवान् सुखखानि ने सर्वप्रथम धूप, पुष्प और फलों द्वारा उस कुण्ड की पूर्ति करना चाहा, किन्तु प्रयत्न करने पर असफल ही रहे-उसकी पूर्ति न कर सके। उसी प्रकार बलखानि (मलखान) ने मांस, मूल शर्मा ने रक्त-पुष्प और देवकी ने चन्दन-पुष्प से पूर्ण करने का प्रयत्न किया, किन्तु उसकी पूर्ति न हो सकी। उस समय आह्लाद (आल्हा) ने अपने सर्वाङ्ग तथा उदयसिंह ने अपने शिर को समर्पित करके उस कुण्डिका की पूर्ति कर दी, इससे प्रसन्न होकर भक्त वत्सला भगदती ने भक्तों से कहा-‘वीर, सुखखाने ! तुम देव-प्रिय होगे, महाबली बलखानि (मलखान) की मृत्यु दीर्घकाल में होगी बलवान् मूलशर्मा रक्तबीज होंगे, देवकी देवी अपने लोक में चिरकाल से प्रवेश करेंगी, आह्लाद (आल्हा) और उदयसिंह के प्रति दो वरदान दे रही हूँ, एक देवता की भाँति रहेगा एवं दूसरे में बलाधिक्य होगा और निष्काम कर्म करने वाले देवसिंह मृत्यु के पश्चात् मुक्ति प्राप्त करेंगे। इतना कहकर माताजी अन्तर्हित हो गई और वे (भक्तवृन्द) अत्यन्त प्रसन्नता से रहने लगे।
(अध्याय १५)

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