December 30, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व चतुर्थ – अध्याय २ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — चतुर्थ भाग) अध्याय २ राजपूताना तथा दिल्ली नगर के राजवंश का इतिहास सूतजी बोले — मध्यप्रदेश का निवासी राजा वयहानि (चपहानि) ने अपने सिंहासनारूढ़ होने पर ब्रह्म निर्मित उस अजमेर को अपनी राजधानी बनाया । अजन्मा और उस ब्रह्म निर्मित उस अजमेर को अपनी राजधानी बनाया । अजन्मा और उसकी माँ (लक्ष्मी) ने, जिन्हें रमा का भी सहयोग प्राप्त था वहाँ आकर उस नगर का निर्माण कराया था । इसीलिए उसका नाम ‘अजमेर’ हुआ है । दस वर्ष राज्य-भार संभालने के उपरान्त उनके तोमर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसने एक वर्ष तक पार्थिव-पूजन द्वारा भगवान् महेश्वर की आराधना की । उस आराधना से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) नामक नगर प्रदान किया । उसी समय से उनके कुल में उत्पन्न होने वाले क्षत्रीय ‘तोमरवंशी’ कहे जाने लगे । चयहानि के पुत्र जो तोमर के छोटे भाई (चयहानि – चौहान) का पुत्र था, इस भूतल में उसकी सामलदेव नाम से ख्याति हुई । सात वर्ष राज्य के उपभोग करने पर उनके महादेव नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । महादेव के अजय और अजय के वीरसिंह नामक पुत्र हुआ, जिसने शताब्दी के आधे समय (पचास वर्ष) तक राज्य किया और उसका एक पुत्र बिंदुसुर हुआ । उस महात्मा राजा बिंदुसुर ने, जो वीर सिंह का पुत्र था, मध्य प्रदेश में अपने पिता के राजकाल के आधे समय तक सिंहासनासीन रहकर ‘वीरा और वीरविहातक’ नामक एक कन्या एवं पुत्र को जुड़वा उत्पन्न किया । कन्या के पिता ने वेदविधान द्वारा उसका पाणिग्रहण विक्रम से सुसम्पन्न कराया । तत्पश्चात् हर्षमग्न होकर अपने पद पर अपने पुत्र वीरविहातक को प्रतिष्ठित किया । वीरविहात्तक के माणिक्य नाम का पुत्र हुआ । माणिक्य ने पिता के समान ही पचास वर्ष तक राज्य किया और उसका पुत्र महासिंह हुआ । पिता के समान उसने भी राज्य किया और उसका पुत्र चन्द्रगुप्त हुआ, जिसने पिता के आधे समय तक राज्य किया और उसका पुत्र प्रतापवान् हुआ । प्रतापवान् का पुत्र मोहन हुआ । मोहन ने तीस वर्षों तक राज्य किया तथा शेष राजाओं ने अपने पैत्रिक राजकाल के समान काल तक । अनन्तर उसके श्वेतराय हुए । श्वेतराय के नागवाहन, नागवाहन के लोहधार, लोहधार के वीरसिंह और वीरसिंह के विबुध नामक पुत्र हुआ, जिसने पचास वर्ष तक राज्य का उपभोग किया और शेष लोगों ने अपने पिता के समान काल तक । पुनः विबुध के चन्द्रराय, चन्द्रराय के हरिहर, हरिहर के वसंत, वसंत के बलांग, बलांग के प्रमथ, प्रमथ के अंगराय, अंगराय के विशाल, विशाल के शार्ङ्गदेव, शार्ङ्गदेव के मन्त्रदेव और मन्त्रदेव के जयसिंह नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसने पचास वर्ष तक सिहासनासीन रहकर सम्पूर्ण आर्य प्रदेशों पर विजय प्राप्तकर अत्यन्त महान् यज्ञ का अनुष्ठान सुसम्पन्न कराया । जयसिंह के आनन्ददेव नामक पुत्र रत्न हुआ, और आनन्ददेव के महापराक्रमी सोमेश्वर नामक पुत्र हुआ जिसने अनंगपाल की ज्येष्ठपुत्री ‘कीर्तिमालिनी’ के साथ पाणिग्रहण करके तीन पुत्रों को उत्पन्न किया । ज्येष्ठ पुत्र का नाम धुंधुकार (धांधू) नाम था, जो मथुरा राज्य का अधीश्वर था । मध्यम पुत्र का नाम कृष्णकुमार था, अपने पिता के पद को प्राप्त किया और कनिष्ठ पुत्र का नाम पृथ्वीराज था, जिसने दिल्ली सिंहासन पर प्रतिष्ठित होकर राजा सहोडीन (सहाबुद्दीन) के अधीन होने पर अपना प्राण-विसर्जन किया । उसी ने चयहानि वंश का समूलनाश कराया था । उनके वंश में शेष राजाओं की पत्नियों का उपभोग उन म्लेच्छों ने किया, जिससे वर्णसंकरों की उत्पत्ति हुई । चयहानि वंश के कुछ क्षत्रिय गणों की, जो इधर-उधर रह रहे थे उस समय की प्रचलित म्लेच्छ, जट्टा (जाट) और मेहन जातियों में गणना नहीं की जा सकती थी, क्योंकि वे सभी में सम्मिलित थे । उस समय मेहन को म्लेच्छ और जट्ट (जाट) को आर्य कहा जाता था । (अध्याय २) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe