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भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व चतुर्थ – अध्याय ४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — चतुर्थ भाग)
अध्याय ४
परिहारवंश और बंगाल के शूरवंश आदि का वर्णन

सूत जी बोले — भृगुवर्य ! मैं परिहार वंश का वर्णन करता हूँ, सुनो ! अथर्ववेद के पारायण करने वाले उस राजा परिहर ने बौद्धों पर विजय प्राप्ति करने के उपरान्त सर्वशक्तिमयी भगवती की सप्रेम आराधना प्रारम्भ की । उससे प्रसन्न होकर देवी जी ने चित्रकूट पर्वत के समीप डेढ़ योजन का विस्तृत कलिनिर्जर (कलींजर) नामक एक नगर का निर्माण किया । उस देवप्रिय नगर में कलि बाँध दिया गया है । इससे वहाँ इसके अस्तित्व न रहने पर पृथ्वी में उसकी ख्याति ‘कलिंजर’ के नाम से हुई । om, ॐवह सुरम्य नगर,जो पूर्वी प्रदेश में बसा हुआ है, बारह वर्ष तक परिहर के राजा के राज करने पर उनके गौरवर्मा नाम पुत्र उत्पन्न हुआ । उसने अपने छोटे भाई घोरवर्मा को अपने पिता के सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर स्वयं गौड़देश में जाकर वहां राज्य स्थापन किया । वहाँ राजा गौरवर्मा ने सुपर्ण नाम के पुत्र को उत्पन्न किया । सुपर्ण के रूपण और रूपण के कारवर्मा (कामवर्मा) हुए, जिन्होंने अपना शक नाम परिवर्तन करके सनातनी महालक्ष्मी की उपासना की । तीन वर्ष तक आराधना करने के उपरान्त कामाक्षी रूपधारिणी देवी ने अपने भक्त के पालनार्थ वहीं निवास किया । पचास वर्ष तक राज्योपभोग करने पर कामवर्मा के भोगवती एवं भोगवर्मा नामक कन्या और पुत्र का एक जुड़वाँ उत्पन्न हुआ । राजा ने अपनी भोगवती पुत्री का पाणिग्रहण विक्रम से सुसम्पन्न कराकर अपना राज्य अपने उस पुत्र भोगवर्मा को प्रदान किया । अनन्तर उस भोगवर्मा के कालिवर्मा नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसने महाकाली का महान् उत्सव किया ।

वरदायिनी भगवती ने उसके ऊपर प्रसन्न होकर कालीरूप में वहाँ अपनी स्थिति की तथा हर्षातिरेक होने से वहाँ असंख्य पुष्पों में कलियाँ निकल आईं । पुनः उन्हीं द्वारा एक मनोहर नगर का निर्माण हुआ, जो कलिकातापुरी (कोलकात्ता)— नाम से इस भूतल पर प्रख्यात हुआ । पश्चात् उस राजा के कौशिक नामक पुत्र हुआ और कौशिक के कात्यायन, कात्यायन के हैमवत, हैमवत के शिववर्मा, शिववर्मा के भववर्मा, भववर्मा के रुद्रवर्मा, रुद्रवर्मा के भोजवर्मा हुए, जिस पराक्रमी ने वन के भीतर भोजराष्ट्र स्थापित किया । भोजवर्मा के गववर्मा, गववर्मा के विंध्यवर्मा हुए, जो अपना राज्य अपने छोटे भाई को सौंपकर स्वयं वंग (बंगाल)— देश चले गये थे । विंध्यवर्मा के सुखसेन तथा सुखसेन के बलाक नामक पुत्र हुआ, जिसने केवल दस वर्ष तक राज्य किया और शेष उपरोक्त राजाओं ने अपने-अपने पिता के समान काल तक ।

बलाक के लक्ष्मण (सेन), लक्ष्मण के माधव, माधव के केशव, केशव के सुरसेन, सुरसेन के नारायण, नारायण के शांतिवर्मा हुए, जिसने गंगातट पर शान्तिपुर का निर्माण किया । शांतिवर्मा के नदीवर्मा और नदीवर्मा के गंगादत्त हुए, जिस बली ने गौडराष्ट्र (ढाका) में ‘नदीहा’ (नदिया) नामक नगरी का निर्माण किया । राजा गंगादत्त ने विद्याधर की आराधना द्वारा उन्हें प्रसन्नकर उसके द्वारा अपनी उस धार्मिक नगरी की सुरक्षा की । उस महात्मा राजा के बीस वर्ष तक उस राज्यपद को प्रतिष्टित करने के उपरान्त उसी से गगावंशी की ख्याति इस भूतल में हुई । गंगादत्त के बलवान् एवं विष्णुभक्त शार्ङ्गदेव नामक पुत्र हुआ, जो गौडदेश में आकर सदैव भगवान् को ध्यान ही करता था । दसवर्ष तक राज्य करने के उपरान्त उनके गंगादेव नामक पुत्र हुआ, जिसने बीस वर्ष तक उस पद को सुशोभित किया । पश्चात् उनके अनंग नामक पुत्र हुआ, जो बली एवं गौडदेश का अधीश्वर था । राजा अनंग के राजेश्वर, राजेश्वर के नृसिंह, और नृसिंह के कलिवर्मा नामक पुत्र हुआ, जिसने राष्ट्रदेश के अधीश्वर को पराजित कर रमणीक महावती (महोवा) नगरी में अपना सुखी-जीवन व्यतीत किया । तदनन्तर उनके घृतिवर्मा तथा घृतिवर्मा के महीपति (माहिल) नामक पुत्र हुआ, जिसने राजा जयचन्द्र की आज्ञा से ‘उर्वीमाया’ (उर्वीया – उरई) नामक नगरी का निर्माण कराकर वहाँ निवास किया !

कुरुक्षेत्र के रणस्थल में वन्द्रवंशी आदि सभी राजाओं के विनष्ट हो जाने पर माहिल महोवा का राजा हुआ । बीस वर्ष राज्य करने के उपरान्त उसी कुरुक्षेत्र में सहोडीन (सहाबुद्दीन) द्वारा उस सुयोधनांश की अब मृत्यु हो गई । परिहर पुत्र घोरवर्मा के कलिजर में राज्य करते हुए शार्दूल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसके वंश में उत्पन्न क्षत्रियगण शार्दूलीय (बघेल) वंशीय कहे जाते हैं। उस शार्दूल (बघेल) वंश राजाओं का पृथ्वी में चारों ओर महामाया के प्रसाद से विस्तृत अनेक प्रकार का राष्ट्र हुआ । विप्र ! इस प्रकार अग्निवंशीय राजाओं के सूर्य-चन्द्रवंश के समान पवित्रकुल का वर्णन कर दिया गया । पुनः अब मैं जिस प्रकार भगवान् अवतरित हुए वह कथा सुनाऊंगा ।
(अध्याय ४)

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