भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व चतुर्थ – अध्याय २४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — चतुर्थ भाग)
अध्याय २४

सूत जी बोले — उसके पश्चात् सभी दैत्यों ने कलि को आगे कर जलयान द्वारा हरिखण्ड को प्रस्थान किया । वहाँ पहुँचने पर उस खण्ड के निवासी मनुष्यों ने जो देवतुल्य, महाबली, एवं दससहस्रं वर्ष की आयु वाले होते हैं, अपने महास्त्रों द्वारा उन दैत्यों से घोर युद्ध किया । दसवर्ष के उपरान्त हरिखण्ड के निवासियों ने उन मायावी दैत्यों द्वारा युद्ध में पराजित होकर सुरेन्द्र की शरण प्राप्त की । om, ॐउस समय देवेन्द्र ने विश्वकर्मा से कहा — तात ! सातों समुद्रों में तुम्हारे बनाये हुए यन्त्र स्थापित हैं, जिससे प्रभावित होकर मनुष्य एक खण्ड से दूसरे खण्ड की यात्रा नहीं कर सकता है, किन्तु उस मायावी मय दैत्य ने उस यन्त्र को नष्ट कर दिया, जिससे म्लेच्छों के साथ मेरे शत्रु मनुष्यगण भी सातों द्वीपों में यथेच्छ विचरण कर सकेंगे। इसलिए भूमण्डल की उस मेरी मर्यादा की जो आपके द्वारा निर्धारित हुई है, रक्षा कीजिये ।

इसे सुनकर विश्वकर्मा ने एक दिव्य यंत्र की रचना की, जिससे प्रभावित होकर वहाँ के सभी यात्री चक्कर काटने लगे । पुनः उस भूमियंत्र द्वारा म्लेच्छों के विनाशार्थ एक महावायु की उत्पत्ति हुई । पश्चात् उस वायु के ‘वात्य’ नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ । उस बली एवं ज्ञानमय पुत्र ने दैत्य, यक्ष तथा पिशाचों को पराजित कर ब्राह्मण, क्षत्रिय, एवं वैश्य, इन तीनों वर्षों का स्थापनपूर्वक विशेष सम्मान किया । महाबलवान् वात्य ने म्लेच्छों में भी वर्ण-व्यवस्था स्थापित की । इस प्रकार इस भूमण्डल में उन्होंने मण्डलीक पद को सुशोभित करते हुए पचास वर्ष तक राज्य का उपभोग किया । उस कलियुग के समय उनके कुल के एक सहस्र राजाओं ने उनके अनन्तर क्रमशः जो वायु पक्ष के समर्थक और तीनों वर्गों के विस्तृत प्रचारक थे, सोलह सहस्र वर्ष तक इस पद को विभूषित किया । क्योंकि वायु द्वारा स्वयं ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई और उसी भाँति विष्णु, महादेव की उत्पत्ति पूर्वक समस्त विश्व वायुमय हैं, विशेषकर भूतल में वायुहीन होने पर मृतक और वायुद्वारा जीवित होते हैं। ऐसा जानकर लोक निवासियों ने वायु को प्रसन्न करने के लिए विविध भाँति की चेष्टा की । पश्चात् घोर कलि में दैत्यराज बलि के पास जाकर नमस्कार पूर्वक उनसे समस्त वृत्तान्त का निवेदन किया । उसे सुनकर दुःख प्रकट करते हुए बलि ने कलि मित्र समेत वामन भगवान् के पास जाकर नमस्कार पूर्वक उन देवाधिदेव जनार्दन से कहा — सुरश्रेष्ठ ! आपने प्रसन्नता पूर्वक मेरे लिए कलि का निर्माण किया था । किन्तु कर्मक्षेत्र (भारत) में कलि के जाने पर वात्य के अनुयायी ब्राह्मणों ने उसे वहाँ से अपमान पूर्वक निकाल दिया है । प्रभो ! कलि के एक चरण व्यतीत होने में भी अभी कुछ अवशेष समय रह गया है । देवेन्द्र के समान अधिकार पूर्वक मैंने भूमि का भलीभाँति उपभोग कर लिया है । कलि के समय में भी एक सहस्र वर्ष तक मैंने पृथ्वीतल का उपभोग किया है । पश्चात् देवों ने डेढ सहस्र वर्ष तक उस देवभूमि का उपभोग किया । तदनन्तर मैंने सभी लोकों के कारणवश पाँच सौ वर्ष से कुछ अधिक समय तक इस कर्मभूमि (भारत) का सुखोपभोग किया । अनन्तर देवों ने डेढ़ सहस्र वर्ष तक इस सर्वोत्तम पृथ्वी का उपभोग किया । पश्चात् उससे कुछ कम समय तक मैंने उस पर आधिपत्य स्थापित किया । उसके अनन्तर साढ़े तीन सहस्र वर्ष तक देवों और दैत्यों का भूमण्डल पर आधिपत्य रहा । इस प्रकार दैत्यों के अनन्तर देवों का और देवों के अनन्तर दैत्यों तथा दानवों का आधिपत्य होता रहा । देव ! कलि विनाशक यद्यपि आपने मुझे कलि प्रदान किया, तथापि नाथ, सत्यप्रिय अधिकार कुछ भी न दिया । इसे सुनकर भगवान् वामन विष्णु ने दैत्यपक्ष के वृद्ध्यर्थ अपने अंश द्वारा इस भूतल पर अवतरित होने का विचार किया । उस समय कामशर्मा नामक ब्राह्मण यमुना तट पर स्थित होकर अत्यन्त प्रयत्न पूर्वक वारह वर्ष से भगवान् विष्णु की आराधना कर रहा था । उसकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान् वामन ने उस ब्राह्मण से कहा — द्विजश्रेष्ठ ! मन इच्छित वर की याचना करो। इसे सुनकर कामशर्मा ने नम्रतापूर्वक स्नेहमयी वाणी द्वारा भगवान् की स्तुति करना आरम्भ किया ।

कामशर्मा ने कहा-देवों में महान् एवं सर्वपूज्य आपको नमस्कार है। धर्मविप्र, धर्ममूर्ति, देवों और दैत्यों के जनक, दैवाधीन होने के नाते मनुष्यों के षोषण करने वाले, एवं कामकर्ता आपको बार-बार नमस्कार है । आपके देवगण दैव के अधीन रहते हैं, और दानवगण उस दैव का उल्लंघन करते हैं, क्रमशः उन सबके भर्ता और हर्तारूप आपको नमस्कार है। स्वामिन् ! हरे ! मेरी बहुत बड़ी इच्छा है कि आप मेरे पुत्र हों । कृपाकर इसकी पूर्ति कीजिये।

इसे सुनकर साक्षात् विष्णु ने, जो वामन रूप से बलि कीरक्षा करते हैं, अपने पूर्वार्द्धभाग द्वारा देवहूति के यहाँ और पुनः उस ब्राह्मण की पत्नी में अवतरित होने के लिए इस भूतल में दो भागों में विभक्त होकर दिव्यांश और दिव्य शरीर धारण किया। भोगसिंह और केलिसिंह के नाम से उनकी ख्याति हुई, जो देवरक्षक और दैत्यराक थे। उन्होंने वायुकुल के राजाओं पर विजय प्राप्तकर कल्पक्षेत्र में निवास स्थान बनाया । वहाँ रहःक्रीडावती नामक एक नगरी का निर्माण मयदैत्य ने किया था, उसी में उन दोनों बलवानों ने रहकर उसमें अपनी राजधानी स्थापित की। वहाँ रहकर उन दोनों से कलि की अत्यन्त वृद्धि की । यह सारभूत सनातनी एवं समस्त धर्मों की पत्नी है, किन्तु उस पतिव्रता के साथ जिन देवप्रिय आर्यों ने गमन किया वे सभी दूषित होकर वर्णसंकर धर्म के प्रवर्तक हो गये। ऐसा समझकर भगवान् ने काममय शरीर धारण एक एक दिन में सहस्रों स्त्रियों का उपभोग करना आरम्भ किया, जिससे प्रसन्न होकर वे सभी स्त्रियाँ गर्भ धारणकर सन्तानों को उत्पन्न कीं । उन प्रत्येक स्त्रियों के गर्भ द्वारा पुत्र-पुत्री का एक जुड़वाँ उत्पन्न हुआ, जो सृष्टि करने की अवस्था प्राप्त होने पर पति-पत्नी के रूप में रमणकर कलिसृष्टि की वृद्धि किया। इस प्रकार उस कलियुग में अनेक भाँति की सृष्टि हुई। उन लोगों ने पूर्व के तीनों वर्षों के प्रतिदिन भक्षण करके उनके विनाश पूर्वक इस कर्म-भूमि में वृक्ष पर रहने वाले पक्षी की भाँति अपनी अत्यन्त वृद्धि की । इस समय भूतल पर कलि का दूसरा चरण आरम्भ था। उसी दो सहस्र वर्ष के उपरांत जिन पुत्रों द्वारा पूर्व के मनुष्य विशालकाय हुए थे, उन्हीं पुत्रों से जीवित होकर आज के मनुष्य इस पृथ्वी पर दो मूठे अर्थात् एक बीते के हो रहे हैं, जिनके आचरण दैत्यों की भाँति हैं । इस प्रकार की वार्ता किन्नरों में उस समय हो रही थी। जिस प्रकार कर्महीन होने के नाते पक्षीगण चालीस वर्ष का ही जीवन प्राप्त करते हैं, उसी भाँति आजकल इस मर्त्यलोक में और उनमें कोई भेद नहीं है। आज भूतल में तुम लोगों को किन्नरगण भी दिखाई दे रहे हैं। किन्तु कलि के दूसरे चरण की समाप्ति के अवसर पर ऐसा न होकर अत्यन्त प्रतिकूल दिखायी देगा-उस समय न कोई मनुष्य विवाह करेंगे, न राजा होगा, न कोई उद्यम करेगा और न तो कोई कर्म । द्विजवृन्द ! यह सब दूसरे चरण की समाप्ति के समय ही होंगे और आज से सवा लाख वर्ष तक भूतल पर दोनों भोगसिंह तथा केलिसिह के वंशज राजपद सुशोभित करेंगे। अतः मुनिसत्तम वृन्द ! आप लोग मेरे साथ कृष्णचैतन्य के पास चलकर उके बताये हुए स्थान को चलें ।

व्यास जी बोले —
इसे सुनकर विशालापुरी के निवासी मुनिगण ने सहर्ष यज्ञांश के दर्शनार्थ यात्रा की ।वहाँ पहुँचकर श्रेष्ठ मुनिगणों ने नमस्कार पूर्वक यज्ञरूपी यज्ञांशदेव से कहा-प्रभो ! आपकी आज्ञा हो तो हम सब स्वर्ग के मध्य में सुरम्य उस इन्द्रलोक की यात्रा करें। उसे सुनकर उन सब मुनियों समेत यज्ञांशदेव स्वर्ग की यात्रा करेंगे । पश्चात् इस पृथ्वी पर चारों ओर कलि का साम्राज्य स्थापित होगा। अब उसके उपरान्त तुम हृषीकोत्तम ! अन्य कौन-सी गाथा सुनना चाहते हो ।

मनु ने कहा— भगवन् ! भोग और केलि के चरित्र का सविस्तार वर्णन करने की कृपा कीजिये और कलि में मनुष्य किस भाँति के होंगे, वह भी बताने की कृपा कीजिये ।

व्यास जी बोले — वामन के अंश से उत्पन्न भोगसिंह और केलिसिंह ने वात्य के वंशज उन मनुष्यों को, जो दैत्य के आचरण वाले थे, पराजितकर सहर्ष राजपद को सुशोभित किया और उनके अनुयायी उन वामनांश को अपने स्वामी के रूप में पाकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। उस समय देवों ने दुःख प्रकट करते हुए सभी मूर्तियों के परित्याग पूर्वक कृष्णचैतन्य के पास पहुँचकर नमस्कार पूर्वक विन्य विनम्र होकर उनसे कहा-भगवन् ! आपकी कृपा से कलि के प्रथम चरण के समय तक हमलोगों ने दैत्यों के अधिनायकों को पराजितकर इस पृथ्वी का सुखोपभोग किया। किन्तु करुणेश यज्ञांश देव ! इस समय हम लोग क्या करें? बताने की कृपा कीजिये । हम सब आपको नमस्कार कर रहे हैं । इसे सुनकर विष्णु ने कहा-सुरोत्तम वृन्द ! मैं कह रहा हूँ सुनो! मैं आप लोगों के साथ सहर्ष स्वर्ग चलने को प्रस्तुत हैं, इसलिए तुम देववृन्द देववंशज मनुष्यों को लेकर शीघ्र स्वर्ग चले आवो । मनु ! इस प्रकार मुनियों से सूत जी के कहने पर देव लोग विमान लेकर सूत आदि महर्षियों के पास जाँयेगे, जिससे वे सब भी नदीहा के उपवन में स्थित कृष्णचैतन्य के समीप पहुँचकर उनके दर्शन पूर्वक स्वर्ग की यात्रा कर सकें। उन सबके साथ आह्लाद योगी गोरखनाथ आदि शंकराचार्य आदि रुद्रांश, और भर्तृहरि आदि नृपगण तथा अन्य योगनिष्ठ जनसमेत जो सदैव लोक के हितैषी थे, कृष्णचैतन्य देव के साथ देवलोक की यात्रा करेंगे ।

पश्चात् कलि के उस दूसरे चरण के समय वामन के अंश से उत्पन्न वे दोनों (भोग और केलिसिंह) योगी की भाँति ध्यानमग्न होकर कल्पक्षेत्र में निवास करेंगे । उस समय हर्षित होकर दैत्यगण मनुष्यों के साथ पाताल की यात्रा के लिए उसके सभी विवरों (मार्गों) को पुनः विस्तृत करेंगे।

कलि के तीसरे चरण के समय वे किन्नरगण पृथ्वी में धीरे-धीरे विनष्ट हो जायें। छब्बीस सहस्र वर्ष व्यतीत होने के उपरांत। रुद्र की आज्ञा से भंग ऋषि भूतपक्ष के समर्थन पूर्वक उस कुल में जन्म ग्रहण करेंगे। अनन्तर सौरभी नामक अपनी पत्नी द्वारा महाबली एवं कोल की भाँति घोर मनुष्यों को उत्पन्न करेंगे, जिससे वे समस्त किन्नरों का भक्षण करके विनाश कर देंगे। उस कलि के समय मनुष्यों की आयु छब्बीस वर्ष की होगी। वे किन्नरगण उस समय त्रस्त्र होकर उन वामनांश भोगसिंह और केलिसिह की शरण में आश्रित होंगे, जिससे उन मनुष्यों के साथ उन दोनों का भीषण युद्ध होगा। किन्तु दश वर्ष के उस युद्ध में वे दोनों पराजित होकर दैत्यों समेत पाताल चले जाँयेगे । उस समय भंग ऋषि की सृष्टि अत्यन्त घोररूप धारण करेगी-माता, भगिनी एवं पुत्री के साथ पशु के समान वे मनुष्य कामांध होकर सप्रेम रति करके उनके पुत्रों की उत्पत्ति करेंगे। पश्चात् कलि के तीसरे चरण की समाप्ति होने पर वे सभी सृष्टियाँ नष्ट हो जाँयगी, जो उस कलि के समय पक्षीयोनि धारण किये रहेंगी ।

कलि के चौथे चरण के प्रारम्भ में मनुष्यों की बीस वर्ष की आयु होगी। वे नगरीय मनुष्य, जल मनुष्य और वनज मनुष्यों की भाँति कन्दमूल के आहार करेंगे । उस समय तामिस्रादि नरककुणडों की पूर्ति वेदि कर्मभूमि के निवासी मनुष्यों द्वारा होगी । जिस प्रकार सत्ययुग के प्रथम चरण में कर्म क्षेत्र, (भारत) निवासी मनुष्य सत्यलोक, दूसरे चरण में तपलोक, तीसरे चरण में जनलोक, और चौथे चरण में स्वर्गलोक की पूर्ति करते हैं । त्रेतायुग के पहले चरण में ध्रुवलोक नामक भुवर्लोक तथा स्वर्गलोग की पूर्ति मनुष्यों ने की है । दूसरे चरण में ऋषिलोक, तीसरे में स्वर्ग, और चौथे चरण में भुवर्लोक और द्वापर युग के पहले चरण में पुष्करद्वीप, दूसरे चरण में शाल्मल, तीसरे चरण में क्रौंच, एवं चौथे चरण में जम्बूद्वीप को मुनियों ने पूरा किया है। उसी प्रकार कलि के पहले चरण में समस्त संसार ऊपर एवं नीचे के लोक समेत पूरा हुआ है, दूसरे चरण में सातों लोकसमेत पाताल तथा तीसरे चरण में भूतलोक की पूर्ति कर्मभूमि (भारत) निवासी मनुष्यों ने की है और इन्हीं मनुष्यों द्वारा समस्त नरक कुण्डों की पूर्ति हुई है। मनु ! इस प्रकार तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में मैंने सब कुछ सुना दिया ।
(अध्याय २४)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.