भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व चतुर्थ – अध्याय २६
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — चतुर्थ भाग)
अध्याय २६

व्यास जी बोले-पुराण पुरुष द्वारा उत्पन्न कल्कि देव दिव्यअश्व पर सुशोभित होकर खड्ग, चर्म के धारण पूर्वक उन दैत्यरूप म्लेच्छों का हनन करेंगे । तदुपरांत योग समाधिनिष्ठ होकर सोलह सहस्र वर्ष तक तप करेंगे, जिससे उस योग द्वारा उत्पन्न अग्नि से यह कर्मभूमि भस्म हो जायगी । कर्मक्षेत्र के निर्जीव हो जाने पर उनके योग द्वारा प्रलयकारी मेघों की उत्पत्ति होगी, जिनके द्वारा प्रलय होने पर वह भूमि जल मध्य में विलीन हो जायगी । उस समय कलियुग बलिदैत्य के समीप चला जायगा । om, ॐकलियुग के चले जाने पर भगवान् विष्णु पुनः इस कर्मभूमि (भारत भूमि) को सौन्दर्य पूर्ण स्थल बनाकर उस पर यज्ञों द्वारा देवों की पूजा करेंगे । उस यज्ञ भाग के ग्रहणपूर्वक बली होकर देवगण वैवस्वत मनु के समीप पहुँच कर उनसे समस्त कारण का वर्णन करेंगे। तदनन्तर कल्किदेव के मुख द्वारा ब्राह्मण वर्ण, भुजा द्वारा क्षत्रिय, जानु द्वारा वैश्य और चरणों द्वारा शूद्र वर्षों की उत्पत्ति होगी जो क्रमशः गौर, रक्त, पीत, एवं श्याम वर्ण के रहेंगे। वे ब्राह्मण आदि वर्ण के मनुष्य देवी शक्ति (स्त्री) को अपनाकर उनके द्वारा अनेक पुत्रों की सृष्टि करेंगे । वे मनुज धर्म वाले मनुष्य जो इक्कीस किष्कु’ परिमाण के रहेंगे अपने-अपने जातीय धर्म के आलम्बनपूर्वक देवों की अर्चना आदि करेंगे। उस समय धीमान् वैवस्वत् मनु कल्किरूपी विष्णु के नमस्कार पूर्वक उनकी आज्ञा से अयोध्या के राजपद को विभूषित करेंगे । उनकी शिक्षा दीक्षा द्वारा जो पुत्र उत्पन्न होगा, उसका इक्ष्वाकु नाम होगा जो पृथ्वी पर अपने पिता के राज्य-भार का वहन करते हुए दिव्य सौ वर्ष का सुखमय जीवन व्यतीत करेंगे और उसके पश्चात् आयु की समाप्ति में देह का परित्याग करेंगे । भगवान कल्कि जिस समय ब्रहासत्र नामक यज्ञ का अनुष्ठान आरम्भ करेंगे उस समय उनके सेवा में चारों वेद एवं अट्ठारहो पुराण मूर्तिमान होकर साङ्गोपाङ्ग वहाँ उपस्थित होंगे। अनन्तर कल्किदेव की जो पुराणपुरुषरूप हैं, आराधना करने पर कार्तिक शुक्ल नवमी गुरुवासर के समय उस यज्ञकुण्ड द्वारा एक महोत्तम पुरुष का आविर्भाव होगा, जो सत्ययुग के नाम से प्रख्यात एवं सत्यमार्ग के प्रदर्शक होगें । मन ! उस समय उस पुरुष को देखकर ब्रह्मादि देवगण उस तिथि को कर्मक्षय करने वाली बतायेंगे उस तिथि के दिन जो मनुष्य धातृ (आँवला) वृक्ष के नीचे प्रसन्नतापूर्वक देवों की अर्चना करेंगे, तो वे देवगण उनके वशीभूत हो जायेंगे । युग की आदि नवमी होने के नाते इसको अक्षय नवमी कहते हैं, जो लोक का मंगल करने वाली, एवं समस्त पापों को विनष्ट करती है । आँवले वृक्ष के नीचे मालती और तुलसी को स्थापितकर जो मनुष्य शालिग्रामदेव की सविधान पुजा करते हैं, वे स्यवं जीवन्मुक्त होकर पितरों की तृप्ति करेंगे । आँवले वृक्ष के नीचे जो श्राद्ध करता है, उसे गयाश्राद्ध करने के फल प्राप्त होते हैं । जो उसके नीचे हवन करेंगे, उन्हें सहस्र यज्ञों के सुसम्मपन्न करने का फल प्राप्त होगा। और उसके नीचे मृतक प्राणी अपने साङ्ग सपरिवार समेत स्वर्ग की प्राप्ति करता है। उन देवों के इस प्रकार वर्णन करने पर कल्किदेव प्रसन्नतथा उन्हें ‘तथास्तु’ कहकर देवों को प्रसन्न करेंगे और पश्चात् उन देवों के समक्ष कल्किदेव अन्र्ताहत होकर पुनः (क्षीरसागर) में शयन करेंगे । भगवान् के चले जाने पर यह कर्मभूमि अत्यन्त दुःखी होकर उनके वियोगाग्नि से संतप्त होने पर बीजों को विनष्ट करेगी। उसी बीच पाताल निवासी महादैत्य- गण . प्रह्लाद को आगेकर देवों से युद्ध करने के निमित्त अपने गधे, ऊँट, गीद। महिष, कौवे, केकहा, सिंह, बाघ, भेडिया स्यार, बाज पक्षी आदि वाहनों पर बैठकर प्रास, पटिश, खड्ग, भुशुण्डि एवं परिच आदि अस्त्रों से सुसज्जित होकर अत्यन्त वेग से वहाँ पहुँचकर बार-बार गर्जन करेंगे। उसे सुनकर इन्द्रादि देवगण अपने तैतीस गणों समेत अपने अस्त्रों को ग्रहणकर शीघ्र घोररण आरम्भ करेंगे, जो दिव्य वर्ष तक अनवरत चलता रहेगा। उस युद्ध में मृतक दैत्यों को शुक्र पुनः पुनः जीवित करेंगे। उसे देखकर श्रान्त देवगण पलायनकर क्षीरसागर पहुँचने का प्रबल प्रयास करेंगे, जहाँ साक्षात् विष्णुदेव शयन किये हैं। वहाँ पहुँचकर देवगण उनकी स्तुति करेंगे, जिससे प्रसन्न होकर भगवान् उस समय लोक के कल्याणार्थ अपने पूर्वार्द्ध भाग द्वारा हंस का रूप धारण करेंगे, जो सनातन, एवं सूर्य के समान प्रखर तेज युक्त होगा। पश्चात् उस अपने तेज द्वारा शुक्र तथा प्रह्लाद आदि प्रमुख दैत्यों को संतप्त करेंगे, जिससे पराजित होकर दैत्यगण दुःख प्रकट करते हुए पृथ्वी के त्याग पूर्वक वितल लोक की यात्रा करेंगे। उस समय उनकी रक्षा महादेव जी करते रहेंगे। अनन्तर समस्त देवगण निर्भय होकर वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु का पृथ्वी के राजसिंहासन पर अभिषेक करेंगे । जो दिव्य सौ वर्ष की आयु प्राप्त किये रहेंगे । मनु उस समय तदितर मनुष्यों की आयु चार सौ वर्ष की होगी । इस प्रकार मैंने तुम्हारे सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार पूर्वक सुना दिया, जो चारों युगों के मनुष्यों के पृथक् पृथक् चरित रूप हैं । धर्म के ज्ञान, ध्यान, श और दम ये चार चरण कहे गये हैं, जिनमें आत्मज्ञान को ज्ञान अध्यात्म चिन्तन करने को ध्यान, मन को सुस्थिर करने को शम और इन्द्रियों को वश में करने को दम कहा गया है। इस प्रकार चार लाख बत्तीस सहस्र वर्ष का धर्म का एक चरण होता है, जिसमें पूर्वार्द्ध मध्याह्न शायाह्न रूपी तीन संध्याएँ होती हैं। इस भाँति भूतल पर एक चरण से वह सदैव वर्तमान रहता है । जिस समय धर्म की वृद्धि होती है उस समय प्राणियों की आयु भी बढ़ जाती है ! भनु ! इस खण्ट में मैंने सात सहस्र श्लोकों का वर्णन तुम्हें सुना दिया।
(अध्याय २६)

॥ ॐ तत्सत् प्रतिसर्गपर्व चतुर्थ खण्ड शुभं भूयात् ॥

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