भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६६ से १६७
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – १६६ से १६७
निक्षुभार्क-सप्तमी तथा निक्षुभार्क-चतुष्टय-व्रत-माहात्म्य-वर्णन

सुमन्तु मुनि बोले — राजन् ! जो स्त्री उत्तम पुत्र की आकाङ्क्षा रखती है, उसे ‘निक्षुभार्क’ नाम का व्रत करना चाहिये । यह व्रत स्त्री एवं पुरुष में परम्पर प्रतिवर्धक, अवियोगकारक और धर्म, अर्थ तथा काम का साधक है । इस व्रत को षष्ठी, सप्तमी, संक्रान्ति या रविवार के दिन करना चाहिये । om, ॐभगवान् सूर्य के सहित उनकी पत्नी महादेवी निक्षुभा की द्यौ-रूप में कांस्य, रजत तथा स्वर्ण की सुन्दर प्रतिमा बनवाये । उसे घृतादि से स्नान कराकर गन्ध-माल्यादि तथा वस्त्रों से अलंकृत करे । अनन्तर प्रतिमा स्थापित किये उस वितान और छत्र से शोभित पात्र को सिर पर रखकर भगवान् सूर्य के मन्दिर में ले जाय । उस प्रतिमा को एक वेदी पर स्थापित करे और प्रदक्षिणा-पूर्वक उसे नमस्कार कर क्षमा याचना करे एवं उपवास रहकर हवि के द्वारा हवन करे । फिर सूर्य-भक्त ब्राह्मणों को शुक्ल वस्त्र पहनाकर भोजन कराये । इस व्रत को करनेवाला व्यक्ति देदीप्यमान महायान से सूर्यलोक में सूर्यभक्तों के साथ आनन्द प्राप्त करता है, फिर वह अनन्त वर्षों तक विष्णुलोक में आनन्दमय जीवन व्यतीत करता है ।

सुमन्तु मुनि बोले — राजन् ! जो स्त्री सौभाग्य की आकाङ्क्षा से संयतेन्द्रिय होकर षष्ठी अथवा सप्तमी को एक वर्ष तक भोजन नहीं करती और वर्ष के अन्त में निक्षुभा तथा सूर्य की प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक स्नानादि पूर्वोक्त क्रियाएँ करती है, वह पूर्वोक्त फल को प्राप्त करती है तथा चारों द्वारों से सुशोभित स्वर्णमय यान के द्वारा रमणीय सूर्यलोक में जाकर सभी फलों को प्राप्त कर सौर आदि सभी लोकॉ में अभीप्सित फल का उपभोग कर इस लोक में जन्म ग्रहण करती है तथा राजा को पतिरूप में प्राप्त करती है ।इसी प्रकार जो नारी कृष्ण पक्ष की सप्तमी को उपवास कर वर्ष के अन्त में शालि के चूर्ण से सुन्दर निक्षुभार्क की प्रतिमा का निर्माण करके पीत रंग की माला से और पीत वस्त्रों से उनकी पूजा करती है तथा ये सभी कर्म सूर्य को निवेदित करती है, वह हाथी-दाँत के समान कान्तिवाले महायान से सातों लोकों में गमनकर, सौ करोड़ वर्ष तक सूर्यलोक में प्रतिष्ठित होती है । नरश्रेष्ठ ! सौर आदि लोकों में भोगों का उपभोगकर क्रमशः इस लोक में जन्म ग्रहण करती तथा अभीप्सित धन-धान्य-समन्वित मनोऽनुकूल पति को प्राप्त करती है ।
(चतुर्वर्गचिन्तामणि (हेमाद्रि) — के व्रत-खण्ड में भविष्यपुराण के नाम से निक्षुभार्क-चतुष्टय नामक इस व्रतका संग्रह हुआ है । उपलब्ध भविष्यपुराण में पाठका कुछ अंश कम है, जिसे हेमाद्रि के आधार पर यहाँ दिया जा रहा है —
जो नारी एक वर्ष तक संयतेन्द्रिय होकर सप्तमी को निराहार व्रत रखती है और जिसकी कणिकाएँ सुवर्ण की हों ऐसे चाँदी के कमल को पिष्टमय गज का निर्माणकर उसकी पीठ पर स्थापित कर वर्षान्त में उसका दान करती है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । शेष पूजन पूर्वोक्त विधि से ही करना चाहिये । इससे वह पुरुष रूप से सभी सौरादि लोकों में भ्रमण करते हुए पृथ्वीलोक में आकर कुलीन तथा रूप-सम्पन्न महाबली राजा को पतिरूप में प्राप्त करती है।
)
जो दृढवती नारी माघ मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को सभी भोगों का परित्याग कर एक वर्षतक प्रत्येक सप्तमी को उपवास करती और वर्ष के अन्त में गन्धादि पदार्थ निक्षुभार्क को निवेदित करती है तथा मग की स्त्रियों को भोजन कराती हैं, वह गन्धर्व से सुशोभित विचित्र दिव्य महायान द्वारा सूर्यलोक में जाकर अनेक सहस्र वर्षों तक निवास करती है । वहाँ यथेष्ट सभी भोगों का उपभोग कर इस लोक में आनेपर राजा को पति-रूप में वरण करती है ।

राजन् ! जो स्त्री पाप और भयका नाश करनेवाले इस निक्षुभार्क-व्रत को करती हैं, वह परमपद प्राप्त करती है । एक वर्षतक परम श्रद्धा के साथ इस व्रत को सम्पन्न कर वर्षान्त में भोजक-दम्पति को भोजन कराये और गन्ध-माल्य, सुन्दर वस्त्र आदिसे उनकी पूजा करे । ताम्रमय पात्र में हीरे से अलंकृत निक्षुभार्क की सुवर्णमयी प्रतिमा भोजक-दम्पति को निवेदित करे । देवी निक्षुभा भोजकी हैं और अर्क भोजक हैं । अतः उन दोनों की विधिवत् श्रद्धापूर्वक पूजा करनी चाहिये ।
(अध्याय १६६-१६७)

See Also :-

1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3

3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४

4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६

6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५

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भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १५०

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101. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६०
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भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६१ से १६२

103. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६३

104. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६४

105. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६५

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