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भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१२ से २१४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – २१२ से २१४
मरिच-सप्तमी-व्रत-वर्णन

सुमन्तुजीने कहा — हे वीर ! मैंने तुमको अर्क-सम्पुटिका-व्रत की संक्षिप्त विधि बतलायी । अब मरिच-सप्तमी का वर्णन कर रहा हूँ, इसमें मरिच का भक्षण किया जाता है । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को उपवास रहकर सौरधर्म की विधि अनुसार भक्तिपूर्वक भगवान् भास्कर की पूजा करनी चाहिये । ‘ॐ वं फट्’ यह महाबलशाली मन्त्र साक्षात् सूर्यस्वरूप ही है । om, ॐइसका बारम्बार स्मरण एवं जप करने से मानव एक वर्ष में ही देवेश भगवान् भास्कर का दर्शन प्राप्त कर लेता है और अन्त में व्याधि तथा मृत्यु से मुक्त हो सूर्यलोक को प्राप्त करता है । व्रती आत्मशुद्ध्यर्थ मरिच-सप्तमी के दिन सौर-मन्त्रों एवं मुद्राओं से हृदयादि अङ्गन्यास कर प्राणायाम आदि कंरे । भगवान् को अर्घ्य प्रदान करे । विविध पुष्प अर्पित करे । स्नान कराये, नैवेद्य अर्पित करे । संयत होकर सूर्य-मन्त्रों का जप करे । व्योममुद्रा दिखाकर प्रदक्षिणा करे, हवन करे और हृदयमुद्रा से भगवान् का विसर्जन करे । भगवान् के पूजन आदि कर्मों में तत्तद् मुद्राओं को दिखाये । मुद्राओं के नाम इस प्रकार हैं — किंकिणी, व्योम, अस्त्र, पद्मिनी, अर्किणी, ज्वालिनी. तेजनी, गभस्तिनी, शंखिनी, सूर्यवक्त्रा, सहस्रकिरणा, उदया, मध्यमा, अस्तमनी, मालिनी, तर्जनी तथा कुम्भमुद्रा । इन मुद्राओं के साथ जो भगवान सूर्य की पूजा करता है, उससे वे प्रसन्न हो जाते हैं । इस विधि से ब्रह्मा ने भगवान् सूर्य की पूजा की थी । राजन् ! तुम भी इस विधि से भास्कर की पूजा करो । इस विधि से जो सदा रवि की पूजा करता है, वह भगवान् सूर्यदेव के दिव्य धाम को प्राप्त कर लेता है । नृप ! इस विधि से देवेश की पूजा कर यथाशक्ति ब्राह्मण को विधिपूर्वक भोजन कराकर सप्तमी के दिन मन्त्र-पूर्वक सूर्य का स्मरण करते हुए मौन होकर भोजन करे और भोजन से पहले मरिच की इस प्रकार प्रार्थना करे —

“ॐ खखोल्काय स्वाहा । प्रीयतां प्रियसङ्गदो भव स्याहा ॥”

ऐसा करने से व्रती को प्रिय व्यक्ति का समागम उसी क्षण प्राप्त हो जाता है । यह मरिच-सप्तमी प्रिय-संगम-दायिनी और पुण्य-को प्रदान करनेवाली तथा कामनाओं की पूर्ति करनेवाली हैं । एक वर्ष तक इस सप्तमी-व्रत का पालन करने से पुत्रादिकों से वियोग नहीं होता । इसलिये महाबाहो ! इस प्रियदायिनी सप्तमी को तुम भी करो । देवराज इन्द्र ने इस मरिच-सप्तमी को उपवास कर महाराज्ञी शची का सङ्ग प्राप्त किया था । महाबलशाली राजा नल ने भी इस सप्तमी को उपवास कर दमयन्ती को प्राप्त किया था और श्रीराम ने भी इस सप्तमी के दिन उपवास कर भगवती सीता को प्राप्त किया था ।
(अध्याय २१२-२१४)

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