December 5, 2018 | aspundir | Leave a comment ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) अध्याय – २१ तृतीया-कल्प का आरम्भ. गौरी-तृतीया-व्रत-विधान और उसका फल सुमन्तु मुनि ने कहा – राजन ! जो स्त्री सब प्रकार का सुख चाहती है, उसे तृतीया का व्रत करना चाहिये । उस दिन नमक नहीं खाना चाहिये । इस विधि से उपवास-पूर्वक जीवन-पर्यन्त इस व्रत का अनुष्ठान करने वाली स्त्री को भगवती गौरी संतुष्ट होकर रूप-सौभाग्य तथा लावण्य प्रदान करती हैं । इस व्रत का विधान जो स्वयं गौरी ने धर्मराज से कहा हैं, उसीका वर्णन मैं करता हूँ, उसे आप सुने — भगवती गौरी ने धर्मराज से कहा – धर्मराज ! स्त्री-पुरुषों के कल्याण के लिये मैंने इस सौभाग्य प्राप्त कराने वाले व्रत को बनाया हैं । जो स्त्री इस व्रत को नियम-पूर्वक करती हैं, वह सदैव अपने पति के साथ रहकर उसी प्रकार आनंद का उपभोग करती है, जैसे भगवान शिव के साथ मैं आनन्दित रहती हूँ । उत्तम पति की प्राप्ति के लिये कन्या को यह व्रत करना चाहिये । व्रतमें नमक न खाये । सुवर्ण की गौरी-प्रतिमा स्थापित करके भक्तिपूर्वक एकाग्रचित्त हो गौरी का पूजन करे । गौरी के लिये नाना प्रकार के नैवेद्य अर्पित करने चाहिये । रात्रि में लवण-रहित भोजन करके स्थापित गौरी-प्रतिमा के समक्ष ही शयन करे । दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दे । इस प्रकार जो कन्या व्रत करती हैं, वह उत्तम पति को प्राप्त करती है तथा चिरकाल तक श्रेष्ठ भोगों को भोगकर अन्त में पति के साथ उत्तम लोकों को जाती है । यदि विधवा इस व्रत को करती है तो वह स्वर्ग में अपने पति को प्राप्त करती है और बहुत समय तक वहाँ रहकर पति के साथ वहाँ के सुखों का उपभोग करती है और पूर्वोक्त सभी सुखों को भी प्राप्त करती हैं । देवी इन्द्राणी ने पुत्र-प्राप्ति के लिये इस व्रत का अनुष्ठान किया था, इसके प्रभाव से उन्हें जयन्त1 नाम का पुत्र प्राप्त हुआ । अरुन्धती ने उत्तम स्थान प्राप्त करने के लिये इस व्रत का नियम-पालन किया था, जिसके प्रभाव से वे पति सहित सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त कर सकी थीं । वे आज तक आकाश में अपने पति महर्षि वसिष्ठ के साथ दिखायी देती हैं । चन्द्रमा2 की पत्नी रोहिणी ने अपनी समस्त सपत्नियों को जीतने के लिए बिना लवण खाये इस व्रत को किया तो वे अपनी सभी सपत्नियों में प्रधान तथा अपने पति चन्द्रमा की अत्यंत प्रिय पत्नी हो गयी । देवी पार्वती की अनुकम्पा से उन्हें अचल सौभाग्य प्राप्त हुआ । इस प्रकार यह तृतीया तिथि-व्रत सारे संसार में पूजित है और उत्तम फल देने वाला है । वैशाख, भाद्रपद तथा माघ मास की तृतीया अन्य मासों की तृतीया से अधिक उत्तम है, जिसमे माघ मास तथा भाद्रपद मास की तृतीया स्त्रियों को विशेष फल देने वाली है । वैशाख मास की तृतीया सामान्य-रूप से सबके लिये हैं । यह साधारण तृतीया है । माघ मास की तृतीया को गुड़ तथा लवण का दान करना स्त्री-पुरुषों के लिये अत्यन्त श्रेयस्कर है । भाद्रपद मास की तृतीया में गुड़ के बने अपूपों (मालपुआ) का दान करना चाहिये । भगवान शङ्कर की प्रसन्नता के लिए माघ मास की तृतीया को मोदक और जल का दान करना चाहिये । वैशाख मास की तृतीया को चन्दन-मिश्रित जल तथा मोदक के दान से ब्रह्मा तथा सभी देवता प्रसन्न होते हैं । देवताओं ने वैशाख मास की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा है । इस दिन अन्न-वस्त्र-भोजन-सुवर्ण और जल आदि का दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है । इसी तृतीया के दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है और दान देने वाले सूर्य-लोक को प्राप्त करता है । इस तिथि को जो उपवास करता है वह ऋद्धि-वृद्धि और श्री से सम्पन्न हो जाता है । (अध्याय २१) ———————————————————————————— 1. जयन्त, देवराज इन्द्र के पुत्र थे। देवराज इन्द्र के पुत्र जयन्त की कथा बहुत रोचक है। वह कौवे का रूप धारण कर श्री राम का बल देखना चाहता था। तुलसीदास लिखते हैं कि जैसे मंदबुद्धि चींटी समुद्र की थाह पाना चाहती हो उसी प्रकार से उसका अहंकार बढ़ गया था और इस अहंकार के कारण वह- सीता चरण चोंच हतिभागा। मूढ़ मंद मति कारन कागा॥ चला रुधिर रघुनायक जाना। सीक धनुष सायक संधाना॥ वह मूढ़ मन्द बुद्धि जयन्त कौवे के रूप में सीता जी के चरणों में चोंच मारकर भाग गया। जब रक्त बह चला तो रघुनाथ जी ने जाना और धनुष पर तीर चढ़ाकर संधान किया। अब तो जयन्त जान बचाने के लिए भागने लगा। वह अपना असली रूप धरकर पिता इन्द्र के पास गया। पर इन्द्र ने भी उसे श्रीराम का विरोधी जानकर अपने पास नहीं रखा। तब उसके हृदय में निराशा से भय उत्पन्न हो गया और शोक से व्याकुल होकर भागता फिरा तो किसी ने उसे बैठने तक को नहीं कहा, क्योंकि रामजी के द्रोही को कौन हाथ लगाए। जब नारद ने जयन्त को व्याकुल देखा तो उन्हें दया आ गई, क्योंकि संतों का चित्त बड़ा कोमल होता है। उन्होंने उसे समझाकर तुरंत श्रीराम जी के पास भेजा और तब जयन्त ने पुकार कर कहा – ‘हे शरणागत के हितकारी, मेरी रक्षा कीजिए। आपके अतुलित बल और आपकी अतुलित प्रभुता (सामर्थ्य) को मैं मन्दबुद्धि जान नहीं पाया था। अपने कर्म से उत्पन्न हुआ फल मैंने पा लिया। अब हे प्रभु! मेरी रक्षा कीजिए। मैं आपकी शरण तक कर आया हूँ।’ (शिवजी कहते हैं-) हे पार्वती! कृपालु श्री रघुनाथजी ने उसकी अत्यंत आर्त्त (दुःख भरी) वाणी सुनकर उसे एक आँख का काना करके छोड़ दिया। जयंत वि॰ [सं॰ जयन्त] [वि॰ स्त्री॰ जयंती] १. विजयी । २. बहूरूपिया । अनेक रूप धारण करनेवाला । जयंत (संज्ञा पुं॰) १. एक रुद्र का नाम । २. इंद्र के पुत्र उपेंद्र का नाम । ३. संगीत में ध्रुवक जाति में एक ताल का नाम । ४. स्कंद । कार्तिकेय । ५. धर्म के एक पुत्र का नाम । ६. अक्रूर के पिता का नाम । ७. भीमसेन का उस समय का बनावटी नाम जब वे विराट नरेश के यहाँ अज्ञातवास करते थे । ८. दशरथ के एक मंत्री का नाम । ९. एक पर्वत का नाम । जयंतिका की पहाड़ी । १०. जैनों के अनुचर देवों का एक भेद । ११. फलित ज्योतिष में यात्रा का एक योग । विशेष—यह योग उस समय पड़ता है जब चंद्रमा उच्च होकर यात्री की राशि से ग्यारहवें स्थान में पहुंच जाता है । इसका विचार बहुधा युद्धादि के लिये यात्रा करने के समय होता है, क्योंकि इस योग का फल शत्रुपक्ष का नाश है । 2. श्रीमद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। यह सोलह कलाओं से युक्त हैं। इन्हें अन्नमय, मनोमय, अमृतमय पुरुषस्वरूप भगवान कहा जाता है। प्रजापितामह ब्रह्मा ने चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा बनाया। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। यह कन्याएं सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, जैसे अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि। चंद्रदेव की पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। रोहिणी चंद्र की सत्ताईस पत्नियों में सबसे सुंदर, तेजस्वी, सुंदर वस्त्र धारण करने वाली है। See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४ 4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५ 5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६ 6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७ 7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९ 8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५ 9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६ 10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७ 11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८ 12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९ 13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २० Related