ॐ श्रीपरमात्मने नम:
श्रीगणेशाय नम:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय- २७
राजपुरुषों के लक्षण

कार्तिकेयजी ने कहा – ब्रह्मन् ! आप राजाओं के शरीर के अङ्गों के लक्षणों को बताने की कृपा करें ।

ब्रह्माजी बोले – मैं मनुष्यों में राजाओं के अङ्गों के लक्षणों को संक्षेप में बताता हूँ । यदि ये लक्षण साधारण पुरुषों में भी प्रकट हो तो वे भी राजा के समान होते हैं, इन्हें आप सुने –
जिस पुरुष के नाभि, स्वर और संधिस्थान – ये तीन विस्तीर्ण हों, मुख, ललाट और वक्षःस्थल – ये तीनों विस्तीर्ण हों, वक्षःस्थल, कक्ष (कक्ष- संज्ञा पुं॰ [सं॰] १. काँख । बगल । २. काँछ ।), नासिका, नख, मुख और कृकाटिका(कृकाटिका -संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] कंध और गले का जोड़ । घाँटी ।)– ये छ: उन्नत अर्थात् ऊँचे हों, उपस्थ (उपस्थ -१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] १. नीचे या मध्य का भाग ।), पीठ, ग्रीवा और जंघा – ये चार ह्रस्व हों, नेत्रों के प्रान्त, हाथ, पैर, तालु, ओष्ठ, जिह्वा तथा नख – ये सात रक्त वर्ण के हों, हनु, नेत्र, भुजा, नासिका तथा दोनों स्तनों का अन्तर – ये पाँच दीर्घ हों तथा दन्त, केश, अङ्गुलियों के पर्व, त्वचा तथा नख – ये पाँच सूक्ष्म हों, वह सप्तद्वीपवती पृथ्वी यह पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है। वे द्वीप एस प्रकार से हैं:- जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप, ये सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं। जम्बुद्वीप इन सब के मध्य में स्थित है। का राजा होता हैं ।
om, ॐ
जिसके नेत्र कमलदल के समान और अन्तमें रक्तवर्ण के होते हैं, वह लक्ष्मी का स्वामी होता है । शहद के समान पिङ्गल नेत्रवाला पुरुष महात्मा होता हैं । सुखी आँखवाला डरपोक, गोल और चक्र के समान घूमनेवाली आँखवाला चोर, केकड़े के समान आँखवाला क्रूर होता है । नील कमल के समान नेत्र होनेपर विद्वान्, श्यामवर्ण के नेत्र होनेपर सौभाग्यशाली, विशाल नेत्र होनेपर भाग्यवान्, स्थूल नेत्र होनेपर राजमंत्री और दीन नेत्र होनेपर दरिद्र होता हैं । भौहें विशाल होनेपर सुखी, ऊँची होनेपर अल्पायु और विषम या बहुत लम्बी होनेपर दरिद्र और दोनों भौहों के मिले हुए होनेपर धनहीन होता हैं । मध्यभाग में नीचे की ओर झुकी भौहेंवाले परदाराभिगामी होते हैं । बालचन्द्रकला के समान भौहें होनेपर राजा होता हैं ।
ऊँचा और निर्मल ललाट होनेपर उत्तम पुरुष होता है, नीचा ललाट होनेपर स्तुति किया जानेवाला और धन से युक्त होता हैं, कहीं ऊँचा और कहीं नीचा ललाट होनेपर दरिद्र तथा सीप के समान ललाट होनेपर आचार्य होता है । स्निग्ध, हास्ययुक्त और दीनता से रहित मुख शुभ होता है, दैन्यभावयुक्त तथा आँसुओं से युक्त आँखोंवाला एवं रूखे चेहरेवाला श्रेष्ठ नहीं हैं । उत्तम पुरुष का हास्य कम्पन-रहित धीरे-धीरे होता है । अधम व्यक्ति बहुत शब्द के साथ हँसता हैं । हँसते समय आँख को मूँदनेवाला व्यक्ति पापी होता है ।

गोल सिरवाला पुरुष अनेक गौओं का स्वामी तथा चिपटा सिरवाला माता-पिता को मारनेवाला होता है । घण्टे की आकृति के समान सिरवाला सदा कहीं-न-कहीं यात्रा करता रहता हैं । निम्न सिरवाला अनेक अनर्थों को करनेवाला होता है ।

इसप्रकार पुरुषों के शुभ और अशुभ लक्षणों को मैंने आपसे कहा । अब स्त्रियों के लक्षण बतलाता हूँ ।
(अध्याय २७)

See Also :-

1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3

3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४

4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६

6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५

9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६

10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७

11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८

12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९

13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २०

14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१

15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२

16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३

17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६

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