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भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – ३९
षष्ठी – कल्प – निरूपण में स्कन्द – षष्ठी – व्रत की महिमा

सुमन्तु मुनि बोले – राजन् ! अब मैं षष्ठी तिथि-कल्प का वर्णन करता हूँ । यह तिथि सभी मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है । कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को फलाहार कर यह तिथिव्रत किया जाता है पञ्चागों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ला षष्ठी को स्कन्द षष्ठी होती है तथा कार्तिक शुक्ला षष्ठी को रवि-षष्ठी मानी जाती है, जिस दिन सम्पूर्ण भारत में सूर्योपासना होती है । परन्तु यहाँ कार्तिक शुक्ला षष्ठी के रुप में वर्णन आया है, यह गणना अमान्तमास (अमावस्या को पूर्ण होने वाले मास)-के अनुसार प्रतीत होती है। । यदि राज्यच्युत राजा इस व्रत का अनुष्ठान करे तो वह अपना राज्य प्राप्त कर लेता है । इसलिये विजय की अभिलाषा रखनेवाले व्यक्ति को इस व्रत का प्रयत्नपूर्वक पालन करना चाहिये ।om, ॐ

यह तिथि स्वामि कार्तिकेय को अत्यन्त प्रिय है । इसी दिन कृत्तिकाओं के पुत्र कार्तिकेय का आविर्भाव हुआ था । वे भगवान शङ्कर, अग्नि तथा गङ्गा के भी पुत्र कहे गये हैं । इसी षष्ठी तिथि को स्वामि कार्तिकेय देव-सेना के सेनापति हुए । इस तिथि को व्रत कर घृत, दही, जल और पुष्पों से स्वामिकार्तिकेय को दक्षिण की ओर मुखकर अर्घ्य देना चाहिये ।
अर्घ्य-दान का मन्त्र इस प्रकार है –
“सप्तर्षिदारज स्कन्द स्वाहापतिसमुद्भव ।
रुद्रार्यमाग्निज विभो गङ्गागर्भ नमोऽस्तु ते ।
प्रीयतां देवसेनानीः सम्पादयतु हृद्रतम् ॥” (ब्राह्मपर्व ३९ । ६)

ब्राह्मण को अन्न देकर रात्रि में फल का भोजन और भूमि पर शयन करना चाहिये । व्रत के दिन पवित्र रहे और ब्रह्मचर्य का पालन करे । शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष – दोनों षष्ठियों को यह व्रत करना चाहिये । इस व्रत के करने से भगवान् स्कन्द की कृपा से सिद्धि, धृति, तुष्टि, राज्य, आयु, आरोग्य और मुक्ति मिलती है । जो पुरुष उपवास न कर सके, वह रात्रि-व्रत ही करे, तब भी दोनों लोकों में उत्तम फल प्राप्त होता हैं । इस व्रत को करनेवाले पुरुष को देवता भी नमस्कार करते हैं और वह इस लोक में आकर चक्रवर्ती राजा होता है । राजन् ! जो पुरुष षष्ठी-व्रत के माहात्म्य का भक्तिपूर्वक श्रवण करता है, वह भी स्वामिकार्तिकेय की कृपा से विविध उत्तम भोग, सिद्धि, तुष्टि, धृति और लक्ष्मी को प्राप्त करता है । परलोक में वह उत्तम गति का भी अधिकारी होता है ।
(अध्याय ३९)

See Also :-

1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3

3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४

4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६

6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५

9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६

10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७

11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८

12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९

13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २०

14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१

15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२

16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३

17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६

18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७

19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८

20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३०

21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१

22. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३२

23. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३३

24. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४

25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५

26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८

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