November 28, 2018 | Leave a comment ॐ श्रीपरमात्मने नम : श्रीगणेशाय नम: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) विवाह-संस्कार के उपक्रम में स्त्रियों के शुभ और अशुभ लक्षणों का वर्णन तथा आचरण की श्रेष्ठता सुमन्तु मुनि बोले – राजन् ! गुरु के आश्रम में ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करते हुए स्नातक को वेदाध्ययन कर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना चाहिये। घर आने पर उस ब्रह्मचारी को पहले पुष्प-माला पहनाकर, शय्या पर बिठाकर उसका मधुपर्क-विधि से पूजन करना चाहिये। तब गुरु से आज्ञा प्राप्त कर उसे शुभ लक्षणों से युक्त सजातीय कन्या से विवाह करना चाहिये। राजा शतानीक पूछा – हे मुनीश्वर ! आप प्रथम स्त्रियों के लक्षणों का वर्णन करें और यह भी बतायें कि किन लक्षणों से युक्त कन्या शुभ होती है। सुमन्तु मुनि बोले – राजन् ! पूर्वकाल में ऋषियों के पूछने पर ब्रह्माजी ने स्त्रियों के जो उत्तम लक्षण कहे हैं, उन्हें मैं संक्षेप में बतलाता हूँ, आप ध्यान देकर सुनें। ब्रह्माजी ने कहा – ऋषिगणों ! जिस स्त्री के चरण लाल कमल के समान कान्ति वाले अत्यंत कोमल तथा भूमि पर समतल-रूप से पड़ते हों, अर्थात् बीच में ऊँचे न रहें, ये चरण उत्तम एवं सुख-भोग प्रदान करने वाले होते हैं। जिस स्त्री के चरण रूखे, फटे हुए, मांस-रहित और नाड़ियों से युक्त हों, वह स्त्री दरिद्रा और दुर्भगा होती है। यदि पैर की अङ्गुलियाँ परस्पर मिली हों, सीधी, गोल, स्निग्ध और सूक्ष्म नखों से युक्त हों तो ऐसी स्त्री अत्यंत ऐश्वर्य को प्राप्त करने वाली और राज-महिषी होती है। छोटी अंगुलियाँ आयु को बढाती है, परंतु छोटी और विरल अंगुलियाँ धन का नाश करने वाली होती हैं। जिस स्त्री के हाथ की रेखाएँ गहरी, स्निग्ध और रक्तवर्ण की होती हैं, वह सुख भोगने वाली होती है, इसके विपरीत टेढ़ी और टूटी हुई हों तो वह दरिद्र होती है। जिसके हाथ में कनिष्ठा के मूल से तर्जनी तक पूरी रेखा चली जाय तो ऐसी स्त्री सौ वर्ष तक जीवित रहती है और यदि न्यून हो तो आयु कम होती है। जिस स्त्री के हाथ की अंगुलियाँ गोल, लम्बी, पतली, मिलाने पर छिद्र-रहित, कोमल तथा रक्त-वर्ण की हो, वह स्त्री अनेक सुख-भोगों को प्राप्त करती है। जिसके नख बन्धुजीव –पुष्प के समान लाल एवं ऊँचे और स्निग्ध हो तो वह ऐश्वर्य को प्राप्त करती है तथा रूखे, टेढ़े अनेक प्रकार के रंगवाले अथवा श्वेत या नील-पीले नखों वाली स्त्री दुर्भाग्य और दारिद्र्य को प्राप्त होती है। जिस स्त्री के हाथ फटे हुए, रूखे और विषम अर्थात् ऊँचे-नीचे एवं छोटे-बड़े हों वह कष्ट भोगती है। जिस स्त्री की अंगुलियाँ के पर्वों में समान रेखा हों अथवा यव का चिन्ह होता है, उसे अपार सुख तथा अक्षय धन-धान्य प्राप्त होता है। जिस स्त्री का मणि-बन्ध सु-स्पष्ट तीन रेखाओं से सुशोभित होता है, वह चिरकाल तक अक्षय भोग और दीर्घ आयु को प्राप्त करती है। जिस स्त्री की ग्रीवा में चार अङ्गुल के परिणाम में स्पष्ट तीन रेखाएँ हों तो वह सदा रत्नों के आभूषण धारण करने वाली होती है। दुर्बल ग्रीवा वाली स्त्री निर्धन, दीर्घ ग्रीवा वाली बंध की, ह्रस्व ग्रीवा वाली मृतवत्सा होती है और स्थूल ग्रीवा वाली दुःख-संताप प्राप्त करती है। जिसके दोनों कंधे और कृकाटिका (गर्दन का उठा हुआ पिछला भाग) ऊँचे न हों, वह स्त्री दीर्घ आयु वाली तथा उसका पति भी चिरकाल तक जीता है। जिस स्त्री की नासिका न बहुत मोटी, न पतली, न टेढ़ी, न अधिक लम्बी और न ऊँची होती है वह श्रेष्ठ होती है। जिस स्त्री की भौंहें ऊँची, कोमल, सूक्ष्म तथा आपस में मिली हुई न हो, ऐसी स्त्री सुख प्राप्त करती है। धनुष के समान भौंहें सौभाग्य प्रदान करने वाली होती है। स्त्रियों के काले, स्निग्ध, कोमल और लम्बे घुँघराले केश उत्तम होते हैं। हंस, कोयल, वीणा, भ्रमर, मयूर तथा वेणु (वंशी) के समान स्वर वाली स्त्रियाँ अपार सुख-सम्पत्ति प्राप्त करती है और दास-दासियों से युक्त होती है। इसके विपरीत फूटे काँसे के स्वर के समान स्वर वाली या गर्दभ और कौवे के सदृश स्वर वाली स्त्रियाँ रोग, व्याधि, भय, शोक तथा दरिद्रता को प्राप्त करती है। हंस, गाय, वृषभ, चक्रवाक तथा मदमस्त हाथी के समान चाल वाली स्त्रियाँ अपने कुल को विख्यात बनाने वाली और राजा की रानी होती है। श्वान, सियार और कौवे के समान गतिवाली स्त्री निन्दनीय होती है। मृग के समान गतिवाली दासी तथा द्रुतगामिनी स्त्री बन्धकी होती है। स्त्रियों का फलिनी, गोरोचन, स्वर्ण, कुंकुम अथवा नये-नये निकले हुए दुर्वांकुर के सदृश रंग उत्तम होता है। जिन स्त्रियों के शरीर तथा अङ्ग-कोमल, रोम और पसीने से रहित तथा सुगन्धित होते हैं, वे स्त्रियाँ पूज्य होती हैं। कपिल-वर्ण वाली, अधिकाङ्गी, रोगिणी, रोमों से रहित, अंत्यत छोटी (बौनी), वाचाल तथा पिंगल वर्ण वाली कन्या से विवाह नहीं करना चाहिये। नक्षत्र, वृक्ष, नदी, म्लेच्छ, पर्वत, पक्षी, साँप आदि और दासी के नाम पर जिसका नाम हो तथा डरावने नाम वाली कन्या से विवाह नही करना चाहिये। जिसके सब अङ्ग ठीक हो, सुंदर नाम हो, हंस या हाथीकी-सी गति हो, जो सूक्ष्म रोम, केश और दाँतों वाली तथा कोमलाङ्गी हो, ऐसी कन्या से विवाह करना उत्तम होता है। गौ तथा धन-धान्यादि से अत्यधिक समृद्ध होने पर भी इस दस कुलों में विवाह का सम्बन्ध स्थापित नही करना चाहिये – जो संस्कारों से रहित हो, जिनमें पुरुष-संतति न होती हो, जो वेद के पठन-पाठन से रहित हो, जिनमे स्त्री-पुरुषों के शरीरों पर बहुत लम्बे केश हो, जिनमें अर्श (बवासीर), क्षय (राजयक्ष्मा), मन्दाग्नि, मिरगी, श्वेत दाग और कुष्ठ – जैसे रोग होते हों। ब्रह्माजी ने ऋषियों से पुनः कहा – ये सब उत्तम लक्षण जिस कन्या में हों और जिसका आचरण भी अच्छा हो उस कन्या से विवाह करना चाहिये। स्त्री के लक्षणों की अपेक्षा उसके सदाचार को ही अधिक प्रशस्त कहा गया है। जो स्त्री सुंदर शरीर तथा शुभ लक्षणों से युक्त भी है, किंतु यदि वह सदाचार-सम्पन्न (उत्तम आचरण युक्त) नहीं है तो वह प्रशस्त नहीं मानी गयी है। अतः स्त्रियों में आचरण की मर्यादा को अवश्य देखना चाहिये। Content is available only for registered users. Please login or register ऐसे सल्लक्षणों तथा सदाचार से सम्पन्न सुकन्या से विवाह करने पर ऋद्धि, वृद्धि तथा सत्कीर्ती प्राप्त होती है। (अध्याय- ५) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४ Related