भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४८
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – ४८
श्रीकृष्ण-साम्ब-संवाद तथा भगवान् सूर्यनारायण कि पूजन-विधि

राजा शतानीक ने कहा – ब्राह्मणश्रेष्ठ ! भगवान् सूर्यनारायण का माहात्म्य सुनते-सुनते मुझे तृप्ति नहीं हो रही है, इसलिये सप्तमी-कल्प का आप पुनः कुछ और विस्तार से वर्णन करें ।

सुमन्तु मुनि बोले – राजन ! इस विषय में भगवान् श्रीकृष्ण और उनके पुत्र साम्ब का जो परस्पर संवाद हुआ था, उसीका मैं वर्णन करता हूँ, उसे आप सुने ।om, ॐ

एक समय साम्ब ने अपने पिता भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा – ‘पिताजी ! मनुष्य संसार में जन्म-ग्रहणकर कौन-सा कर्म करे, जिससे उसे दुःख न हो और मनोवाञ्छित फलों को प्राप्त कर वह स्वर्ग प्राप्त करे तथा मुक्ति भी प्राप्त कर सके । इन सबका आप वर्णन करें । मेरा मन इस संसार में अनेक प्रकारकी आधि-व्याधियों को देखकर अत्यन्त उदास हो रहा है, मुझे क्षणमात्र भी जीने की इच्छा नहीं होती, अतः आप कृपाकर ऐसा उपाय बतायें कि जितने दिन भी इस संसार में रहा जाय, ये आधि-व्याधियाँ पीडित न कर सकें और फिर इस संसार में जन्म न हो अर्थात् मोक्ष प्राप्त हो जाय ।’

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – वत्स ! देवताओं के प्रसाद से, उनके अनुग्रह से तथा उनकी आराधना करने से यह सब कुछ प्राप्त हो सकता हैं । देवताओं की आराधना ही परम उपाय है । देवता अनुमान और आगम-प्रमाणों से सिद्ध होते हैं । विशिष्ट पुरुष विशिष्ट देवता की आराधना करे तो वह विशिष्ट फल प्राप्त कर सकता हैं ।

साम्ब ने कहा – महाराज ! प्रथम तो देवताओं के अस्तित्व में ही संदेह है, कुछ लोग कहते हैं देवता हैं और कुछ कहते हैं कि देवता नहीं हैं, फिर विशिष्ट देवता किन्हें समझा जाय ?

भगवान् श्रीकृष्ण बोले – वत्स ! आगम से, अनुमान से और प्रत्यक्ष से देवताओं का होना सिद्ध होता हैं ।

साम्ब ने कहा – यदि देवता प्रत्यक्ष सिद्ध हो सकते हैं तो फिर उनके साधन के लिये अनुमान और आगम-प्रमाण कि कुछ भी अपेक्षा नहीं है ।

श्रीकृष्ण बोले – वत्स ! सभी देवता प्रत्यक्ष नहीं होते । शास्त्र और अनुमान से ही हजारों देवताओं का होना सिद्ध होता है ।

साम्ब ने कहा – पिताजी ! जो देवता प्रत्यक्ष हैं और विशिष्ट एवं अभीष्ट फलों को देनेवाले हैं, पहले आप उन्हीं का वर्णन करें । अनन्तर शास्त्र तथा अनुमानसे सिद्ध होनेवाले देवताओं का वर्णन करें ।

श्रीकृष्ण ने कहा – प्रत्यक्ष देवता तो संसार के नेत्रस्वरूप भगवान् सूर्यनारायण ही हैं, इनसे बढकर दूसरा कोई देवता नहीं है । सम्पूर्ण जगत् इन्हीं से उत्पन्न हुआ है एवं अन्त मे इन्हीं में विलीन भी हो जायगा ।(प्रत्यक्षं देवता सूर्यो जगच्चक्षुर्दिवाकरः । तस्मादभ्यधिका काचिद्देवता नास्ति शाश्वती ॥ यस्मादिदं जगज्जातं लयं यास्यति यत्र च । (ब्राह्मपर्व ४८ । २१-२२)

सत्य आदि युगों और काल की गणना इन्हीं से सिद्ध होती है । ग्रह, नक्षत्र, योग, करण, राशि, आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अग्नि, अश्विनीकुमार, इन्द्र, प्रजापति, दिशाएँ, भूः, भुवः, स्वः – ये सभी लोक और पर्वत, नदी, समुद्र, नाग तथा सम्पूर्ण भूतग्राम की उत्पत्ति के एकमात्र हेतु भगवान् सूर्यनारायण ही हैं । यह सम्पूर्ण चराचर-जगत् इनकी ही इच्छा से उत्पन्न हुआ है । इनकी ही इच्छा से स्थित है और सभी इनकी ही इच्छा से अपने-अपने व्यवहार में प्रवृत्त होते हैं । इन्हीं के अनुग्रह से यह सारा संसार प्रयत्नशील दिखायी देता है । सूर्यभगवान् के उदय के साथ जगत् का उदय और उनके अस्त होने के साथ जगत् अस्त होता है । इनसे अधिक न कोई देवता हुआ और न होगा । वेदादि शास्त्रों तथा इतिहास-पुराणादि में इनका परमात्मा, अंतरात्मा आदि शब्दों से प्रतिपादन किया गया हैं । ये सर्वत्र व्याप्त हैं । इनके सम्पूर्ण गुणों और प्रभावों का वर्णन सौ वर्षों में भी नहीं किया जा सकता । इसीलिये दिवाकर, गुणाकर, सबके स्वामी, सबके स्रष्टा और सबका संहार करने वाले भी ये ही कहे गये हैं । ये स्वयं अव्यय हैं ।

जो पुरुष सूर्य-मण्डल की रचना कर प्रातः, मध्याह्न और सायं उनकी पूजा कर उपस्थान करता हैं, वह परमगतिको प्राप्त करता है । फिर जो प्रत्यक्ष सूर्यनारायण का भक्तिपूर्वक पूजन करता हैं, उसके लिये कौन-सा पदार्ध दुर्लभ है और जो अपनी अन्तरात्मा में ही मण्डलस्थ भगवान् सूर्य को अपनी बुद्धि द्वारा निश्चित कर लेता है तथा ऐसा समझकर वह इनका ध्यानपूर्वक पूजन, हवन तथा जप करता हैं, वह सभी कामनाओं को प्राप्त करता हैं और अन्त में इनके लोक को प्राप्त होता है । इसलिये हे पुत्र ! यदि तुम संसार में सुख चाहते हो और भुक्ति तथा मुक्ति की इच्छा रखते हो तो विधिपूर्वक प्रत्यक्ष देवता भगवान् सूर्य की तन्मयता से आराधना करो । इससे तुम्हें आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक कोई भी दुःख नहीं होंगे । जो सूर्यभगवान् की शरण में जाते हैं, उनको किसी प्रकार का भय नहीं होता और उन्हें इस लोक तथा परलोक में शाश्वत सुख प्राप्त होता है । स्वयं मैंने भगवान् सूर्य की बहुत काल तक यथाविधि आराधना की है, उन्हीं की कृपासे यह दिव्य ज्ञान मुझे प्राप्त हुआ है । इससे बढकर मनुष्यों के हित का और कोई उपाय नहीं हैं ।
(अध्याय ४८)

See Also :-

1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3

3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४

4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६

6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५

9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६

10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७

11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८

12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९

13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २०

14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१

15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२

16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३

17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६

18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७

19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८

20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३०

21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१

22. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३२

23. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३३

24. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४

25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५

26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८

27. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९

28. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४० से ४५

29. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४६

30. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४७

Please follow and like us:
Pin Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.