भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४९
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नम:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – ४९
श्रीसूर्यनारायण के नित्यार्चन का विधान

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – साम्ब ! अब हम सूर्यनारायण के पूजन का विधान बताते हैं, जिसके करने से सम्पूर्ण पाप और विघ्न नष्ट हो जाते हैं तथा सभी मनोरथों की सिद्धि होती है और पुण्य भी प्राप्त होता है । प्रातःकाल उठकर शौच आदि से निवृत्त हो नदी के तट पर जाकर आचमन करे तथा सूर्योदय के समय शुद्ध मृत्तिका का शरीर पर लेपन कर स्नान करे । पुनः आचमन कर शुद्ध वस्त्र धारण करे और सप्ताक्षर मन्त्र – ‘ॐ खखोल्काय स्वाहा’ से सूर्यभगवान् को अर्ध्य दे तथा हृदय में मन्त्र का ध्यान करे एवं सूर्य-मन्दिर में जाकर सूर्य की पूजा करे । सर्वप्रथम श्रद्धापूर्वक पूरक, रेचक और कुम्भक नामक प्राणायाम कर वायवी, आग्नेयी, माहेन्द्री और वारुणी धारणा करके भूत-शुद्धि की रीति से शरीरका शोषण, दहन, स्तम्भन एवं प्लावन करके अपने शरीर की शुद्धि कर ले । अपने शुद्ध हृदय में भगवान् सूर्य की भावना कर उन्हें प्रणाम करे । स्थूल, सूक्ष्म शरीर तथा इन्द्रियों को अपने-अपने स्थानों में उपन्यस्त करे । ‘ॐ खः स्वाहा हृदयाय नमः , ॐ खं स्वाहा शिरसे स्वाहा, ॐ उल्काय स्वाहा शिखायै वषट् , ॐ याय स्वाहा कवचाय हुम्, ॐ स्वाँ स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट् , ॐ हाँ स्वाहा अस्त्राय फट् ।’om, ॐ

– इन मन्त्रों से अङ्गन्यास कर पूजन-सामग्री का मूल-मन्त्र से अभिमन्त्रित जल द्वारा प्रोक्षण करे । फिर सुगन्धित पुष्पादि उपचारों से सूर्यभगवान् का पूजन करे । सूर्यनारायण की पूजा दिन के समय सूर्य-मूर्ति में और रात्रि के समय अग्नि में करनी चाहिये । प्रभातकाल में पूर्वाभिमुख, सायंकाल में पश्चिमाभिमुख तथा रात्रि में उत्तराभिमुख होकर पूजन करने का विधान है । ‘ॐ खखोल्काय स्वाहा’ इस सप्ताक्षर मूल मन्त्र से सूर्यमण्डल के बीच षट्दल–कमल का ध्यान कर उसके मध्य में सहस्र किरणों से देदीप्यमान भगवान् सूर्यनारायण की मूर्ति का ध्यान करे । फिर रक्त-चन्दन, करवीर आदि रक्त-पुष्पों, धूप, दीप, अनेक प्रकार के नैवेद्य, वस्त्राभूषण आदि उपचारों से पूजन करे अथवा रक्त-चन्दन से ताम्रपात्र में षट्दल-कमल बनाकर उसके मध्य में सभी उपचारों से भगवान् सूर्यनारायण का पूजन करे । छहों द्लों मे षडङ्ग-पूजन कर उत्तर आदि दिशाओं में सोमादि आठ ग्रहों का अर्चन करे और अष्टदिक्पालों तथा उनके आयुधों का भी तत्तद् दिशाओं में पूजन करे । नाम के आदि में ‘प्रणव’ (ॐ) लगाकर नाम को चतुर्थी-विभक्ति-युक्त करके अन्त में नमः कहे – जैसे ‘ॐ सोमाय नमः’ इत्यादि । इस प्रकार नाममन्त्रों से सबका पूजन करे । अनन्तर व्योम-मुद्रा, रवि-मुद्रा, पद्म-मुद्रा, महाश्वेत-मुद्रा और अस्त्र-मुद्रा दिखाये । ये पाँच मुद्राएँ पूजा, जप ध्यान, अर्घ्य आदि के अनन्तर दिखानी चाहिये ।

इस प्रकार एक वर्षतक भक्ति-पूर्वक तन्मयता के साथ भगवान् सूर्यनारायण का पूजन करने से अभीष्ट मनोरथों कि प्राप्ति होती है और बाद में मुक्ति भी प्राप्त होती है । इस विधि से पूजन करने पर रोगी रोग से मुक्त हो जाता है, धनहीन धन प्राप्त करता हैं, राज्य-भ्रष्ट को राज्य मिल जाता है तथा पुत्रहीन पुत्र प्राप्त करता है । सूर्यनारायण का पूजन करनेवाला पुरुष प्रज्ञा, मेधा तथा सभी समृद्धियों से सम्पन्न होता हुआ चिरंजीवी होता है । इस विधि से पूजन करने पर कन्या को उत्तम वर की, कुरूपा स्त्री को उत्तम सौभाग्य की तथा विद्यार्थी को सद्विद्या की प्राप्ति होती है । ऐसा सूर्यभगवान् ने स्वयं अपने मुख से कहा है । इस प्रकार सूर्यभगवान् का पूजन करने से धन, धान्य, संतान, पशु आदि की नित्य अभिवृद्धि होती है । मनुष्य निष्काम हो जाता है तथा अन्त मे उसे सद्गति प्राप्त होती है ।
(अध्याय ४९)

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1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3

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4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६

6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५

9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६

10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७

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17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६

18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७

19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८

20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३०

21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१

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25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५

26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८

27. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९

28. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४० से ४५

29. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४६

30. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४७

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