भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६५
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – ६५
रहस्य-सप्तमी-व्रत के दिन त्याज्य पदार्थ का निषेध तथा व्रत का विधान एवं फल

ब्रह्माजी ने कहा – दिण्डिन् ! अब मैं रहस्य-सप्तमी व्रत का विधान कह रहा हूँ । इस व्रत के करने से अपने से आगे आनेवाली सात पीढ़ी तथा पीछे की भी सात पीढ़ी के कुलों का उद्धार हो जाता है । जो इस व्रत का नियम से पालन करता है, उसे धन, पुत्र, आरोग्य, विद्या, विनय, धर्म तथा अप्राप्य वस्तु की भी प्राप्ति हो जाती है ।
इस व्रत के नियम इस प्रकार हैं – सब में मैत्रीभाव रखते हुए भगवान् सूर्यका चिन्तन करता रहे । मनुष्य को व्रत के दिन न तेल का स्पर्श करना चाहिये, न नीला वस्त्र धारण करना चाहिये तथा न आँवले से स्नान करना चाहिये । किसीसे कलह तो करे ही नहीं ।om, ॐ इस दिन नीला वस्त्र धारण करके जो सत्कर्म करता हैं, वह निष्फल होता है । जो ब्राह्मण इस व्रत के दिन एक बार नीला वस्त्र धारण कर ले तो उसे उचित है कि स्वयं की शुद्धि के लिये उपवास करके पञ्चगव्य प्राशन करे, तभी वह शुद्ध होता है । यदि अज्ञानवश नील वृक्ष की लकड़ी से कोई ब्राह्मण दन्तधावन कर लेता है तो वह दो चान्द्रायण व्रत करनेसे शुद्ध होता है । इस दिन रोमकूप में नीले रंग के प्रवेश करनेमात्र से ही तीन कृच्छ्र चान्द्रायण व्रत करनेसे शुद्धि होती है । जो व्यक्ति प्रमादवश नील वृक्ष के उद्यान में चला जाता है वह पञ्चगव्य प्राशन से ही शुद्ध होता है । जहाँ नील एक बार बोयी जाती है, वह भूमि बारह वर्ष तक अपवित्र रहती है ।

रहस्य-सप्तमी-व्रत के दिन जो तेल का स्पर्श करता है, उसकी प्रिय भार्या नष्ट हो जाती है, अतः तैल का स्पर्श नहीं करना चाहिये । इस तिथि को किसीके साथ द्रोह और क्रूरता भी करना उचित नहीं है । इस दिन गीत गाना, नृत्य करना, वीणादि वाद्ययन्त्र बजाना, शव देखना, व्यर्थ में हँसना, स्त्री के साथ शयन करना, द्युत-क्रीडा, रोना, दिनमें सोना, असत्य बोलना, दुसरे के अनिष्ट का चिन्तन करना, किसी भी जीव को कष्ट देना, अत्यधिक भोजन करना, गली-कुचों में घूमना, दम्भ, शोक, शठता तथा क्रूरता – इन सबका प्रयत्नपूर्वक परित्याग कर देना चाहिये ।

इस व्रत का आरम्भ चैत्र मास से करना चाहिये । व्रत करनेवाले मनुष्य को चाहिये कि वह चैत्रादि मासों में धाता, अर्यमा, मित्र, वरुण, इन्द्र, विवस्वान्, पर्जन्य, पूषा, भग, त्वष्टा, विष्णु तथा भास्कर – इन द्वादश सूर्यों का क्रमशः पूजन करे । प्रत्येक सप्तमी के दिन भोजक ब्राह्मण को घी के साथ भोजन कराकर उसे घृतसहित पात्र, एक माशा सुवर्ण और दक्षिणा देनी चाहिये । यदि भोजक न मिल सके तो श्रेष्ठ ब्राह्मण को ही भोजक की भाँती भोजन कराकर वही वस्तुएँ दान में देनी चाहिये ।

हे दिण्डिन् ! इसप्रकार मैंने सप्तमी के इस माहात्म्य का वर्णन किया, जिसके श्रवणमात्र से भी सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और सूर्यलोक की प्राप्ति होती है ।

सुमन्तु बोले – राजन् ! इतना कहकर ब्रह्माजी अन्तर्धान हो गए और दिण्डी भी उनके द्वारा बताये गये इस व्रत के अनुसार सूर्यनारायण का पूजन करके अपने मनोवाञ्छित फल को प्राप्त करने में सफल हुए और भगवान् सूर्य के अनुचर हो गए ।
(अध्याय ६५)
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1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3

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4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

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6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५

9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६

10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७

11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८

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17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६

18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७

19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८

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21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१

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24. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४

25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५

26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८

27. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९

28. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४० से ४५

29. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४६

30. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४७

31. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४८

32. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४९

33. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५० से ५१

34. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५२ से ५३

35. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५४

36. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५५

37. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५६-५७

38. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५८

39. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५९ से ६०

40. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय  ६१ से ६३

41. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६४

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