December 13, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७२ से ७३ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) अध्याय – ७२ से ७३ जम्बूद्वीप में सूर्यनारायण की आराधना के तीन प्रमुख स्थान दुर्वासा मुनि का साम्ब को शाप देना सुमन्तु मुनि बोले – राजन् ! ब्रह्माजी से इस प्रकार उपदेश प्राप्त कर याज्ञवल्क्य मुनि ने सूर्यभगवान् की आराधना की, जिसके प्रभाव से उन्हें सालोक्य-मुक्ति प्राप्त हुई । अतः भगवान् सूर्य की उपासना करके आप भी उस देवदुर्लभ मोक्ष को प्राप्त कर सकेंगे ।राजा शतानीक ने पूछा – मुने ! जम्बूद्वीप में भगवान् सूर्यदेव का आदि स्थान कहाँ है ? जहाँ विधिपूर्वक आराधना करने से शीघ्र ही मनोवाञ्छित फल की प्राप्ति हो सके । सुमन्तु मुनिने कहा – राजन् ! इस जम्बूद्वीप में भगवान् सूर्यनारायण के मुख्य तीन स्थान हैं । प्रथम इन्द्रवन है, दूसरा मुण्डीर तथा तीसरा तीनों लोकों में प्रसिद्ध कालप्रिय (कालपी) नामक स्थान है । इस द्वीप में इन तीनों के अतिरिक्त एक अन्य स्थान भी ब्रह्माजी ने बतलाया है, जो चन्द्रभागा नदी के तटपर अवस्थित है, जिसको साम्बपुर भी कहा जाता है, वहाँ भगवान् सूर्यनारायण साम्ब की भक्ति से प्रसन्न होकर लोककल्याण के लिये अपने द्वादश रूपों में से मित्र-रूप में निवास करते हैं । जो भक्तिपूर्वक उनका पूजन करता है, उसको वे स्वीकार करते हैं । राजा शतानीक ने पुनः पूछा – महामुने ! साम्ब कौन है ? किसका पुत्र है ? भगवान् सूर्य ने उसके ऊपर अपनी कृपा क्यों की ? यह भी आप बताने की कृपा करें । सुमन्तु मुनि ने कहा – राजन् ! संसार में द्वादश आदित्य प्रसिद्ध हैं, उनमे से विष्णु नाम के जो आदित्य हैं, वे इस जगत् में वासुदेव श्रीकृष्ण रूप में अवतीर्ण हुए । उनकी जाम्बवती नाम की पत्नी से महाबलशाली साम्ब नामक पुत्र हुआ । वह शापवश कुष्ठ-रोग से ग्रस्त हो गया । उससे मुक्त होने के लिये उसने भगवान् सूर्यनारायण की आराधना की और उसीने अपने नाम से साम्बपुर यही नगर आगे चलकर ‘मूलस्थान’ पुनः मुसलिम शासन में ‘मुल्तान’ नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो आज पाकिस्तान में लाहौर के पश्चिम भाग में स्थित है।नामक एक नगर बसाया और यहीं पर भगवान् सूर्यनारायण की प्रथम प्रतिमा प्रतिष्ठापित की । राजा शतानीक ने पूछा – महाराज ! साम्ब के द्वारा ऐसा कौन-सा अपराध हुआ था, जिससे उसे इतना कठोर शाप मिला । थोड़े से अपराध पर तो शाप नहीं मिलता । सुमन्तु मुनि ने कहा – राजन् ! इस वृत्तान्त का वर्णन हम संक्षेप में कर रहे हैं, आप सावधान होकर सुनें । एक समय रूद्र के अवतारभूत दुर्वासा मुनि तीनों लोकों में विचरण करते हुए द्वारकापुरी में आये, परन्तु पीले-पीले नेत्रों से युक्त कृश-शरीर, अत्यन्त विकृत रूप वाले दुर्वासा को देखकर साम्ब अपने सुन्दर स्वरुप के अहंकार में आकर उनके देखने, चलने आदि चेष्टाओं की नकल करने लगे । उनके मुख के समान अपना ही विकृत मुख बनाकर उन्हीं की भाँति चलने लगे । यह देखकर और ‘साम्ब को रूप तथा यौवन का अत्यन्त अभिमान हैं’ यह समझकर दुर्वासा मुनि को अत्यधिक क्रोध हो आया । वे क्रोध से काँपते हुए यह कह उठे – ‘साम्ब ! मुझे कुरूप और अपने को अति रूप-सम्पन्न मानकर तूने मेरा परिहास किया है । जा, तू शीघ्र ही कुष्ठरोग से ग्रस्त हो जायगा ।’ ऐसे ही एक बार पुनः परिहास किये जाने के कारण दुर्वासा मुनि को फिर शाप देना पड़ा और उसी शाप के फलस्वरूप साम्ब से लोहे का एक मुसल उत्पन्न हुआ, जो समस्त यदुवंशियों के विनाश का कारण बना । अतः देवता, गुरु और ब्राह्मण आदि की अवज्ञा बुद्धिमान् पुरुष को कभी नहीं करनी चाहिये । इन लोगों के समक्ष सदैव विनम्र ही बना रहना चाहिये और सदा मधुर वाणी ही बोलनी चाहिये । राजन् ! ब्रह्माजी ने भगवान् शिव के समक्ष जो दो श्लोक पढ़े थे, क्या उनको आपने सुना नहीं है ? “यो धर्मशीलो जितमानरोषो विद्याविनीतो न परोपतापी । स्वदारतुष्टः परदारवर्जितो न तस्य लोके भयमस्ति किंचित् ॥ न तथा शशी न सलिलं न चन्दनं नैव शीतलच्छाया । प्रह्लादयति पुरुषं यथा हिता मधुरभाषिणी वाणी ॥” (ब्राह्मपर्व ७३ । ४७-४८) ‘जो धर्मात्मा है तथा जिसने सम्मान एवं क्रोधपर विजय प्राप्त कर ली है, विद्या से युक्त और विनम्र है, दुसरे को संताप नहीं देता, अपनी स्त्री से संतुष्ट है तथा परायी स्त्री का परित्याग करनेवाला है, ऐसे मनुष्य के लिये संसार में किंचिन्मात्र भी भय नहीं हैं ।’ ‘पुरुष को चन्द्रमा, जल, चन्दन और शीतल छाया वैसा आनन्दित नहीं पर पाते हैं, जैसा आनन्द उसे हितकारी मधुर वाणी सुनने से प्राप्त होता है ।’ राजन् ! इस प्रकार दुर्वासा मुनि के शाप से साम्ब को कुष्ठरोग हुआ था । तदनन्तर उसने भगवान् सूर्यनारायण की आराधना करके पुनः अपने सुन्दर रूप तथा आरोग्य को प्राप्त किया और अपने नाम का साम्बपुर नामक एक नगर बसाकर उसमें भगवान् सूर्य को प्रतिष्ठापित किया । (अध्याय ७२-७३) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४ 4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५ 5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६ 6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७ 7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९ 8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५ 9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६ 10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७ 11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८ 12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९ 13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २० 14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१ 15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२ 16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३ 17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६ 18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७ 19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८ 20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३० 21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१ 22. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३२ 23. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३३ 24. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४ 25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५ 26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८ 27. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९ 28. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४० से ४५ 29. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४६ 30. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४७ 31. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४८ 32. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४९ 33. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५० से ५१ 34. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५२ से ५३ 35. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५४ 36. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५५ 37. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५६-५७ 38. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५८ 39. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५९ से ६० 40. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६१ से ६३ 41. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६४ 42. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६५ 43. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६६ से ६७ 44. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६८ 45. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६९ 46. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७० 47. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७१ Related