भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ११३ से ११४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – ११३ से ११४
सूर्य-मन्दिर निर्माण का फल तथा यमराज का अपने दूतों को सूर्य-भक्तों से दूर रहने का आदेश, घृत तथा दूध से अभिषेक का फल

ब्रह्माजी ने कहा — हे वासुदेव ! जो मनुष्य मिट्टी, लकड़ी अथवा पत्थर से भगवान् सूर्य के मन्दिर का निर्माण करवाता है, वह प्रतिदिन किये गये यज्ञ के फल को प्राप्त करता है। भगवान् सूर्यनारायण को मन्दिर बनवाने पर वह अपने कुल की सौ आगे और सौ पीछे की पीढ़ियों को सूर्यलोक प्राप्त करा देता है । सूर्यदेव के मन्दिर का निर्माण-कार्य प्रारम्भ करते ही सात जन्मों में किया गया जो थोड़ा अथवा बहुत पाप है, यह नष्ट हो जाता है । om, ॐमन्दिर में सूर्य की मूर्ति को स्थापित कर मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है और उसे दोष-फल की प्राप्ति नहीं होती तथा अपने आगे और पीछे के कुलों का उद्धार कर देता है । इस विषय में प्रजाओं को अनुशासित करने वाले यम ने पाशदण्ड से युक्त अपने किंकरों से पहले ही कहा है कि ‘मेरे इस आदेश का यथोचित पालन करते हुए तुमलोग संसार में विचरण करो, कोई भी प्राणी तुम लोगों की आज्ञा का उल्लङ्घन नहीं कर सकेगा । संसार के मूलभूत भगवान् सूर्य को उपासना करने वाले लोगों को तुमलोग छोड़ देना, क्योंकि उनके लिये यहाँ पर स्थान नहीं है । संसार में जो सूर्यभक्त है और जिनका हृदय उन्हीं में लगा हुआ है, ऐसे लोग जो सूर्यकी सदा पूजा किया करते हैं, उन्हें दूरसे ही छोड़ देना । बैठते-सोते, चलते-उठते और गिरते-पड़ते जो मनुष्य भगवान् सूर्यदेव का नाम संकीर्तन करता है, वह भी हमारे लिये बहुत दूरसे ही त्याज्य है । जो भगवान् भास्कर के लिये नित्य-नैमित्तिक यज्ञ करते हैं, उन्हें तुमलोग दृष्टि उठाकर भी मत देखना । यदि तुमलोग ऐसा करोगे तो तुमलोगों की गति रुक जायगी । जो पुष्प-धूप-सुगन्ध और सुन्दर-सुन्दर वस्त्रों के द्वारा उनकी पूजा करते हैं, उन्हें भी तुमलोग मत पकड़ना, क्योंकि वे मेरे पिता के मित्र या आश्रितजन हैं । सूर्यनारायण मन्दिर में उपलेपन तथा सफाई करनेवाले जो लोग हैं, उनके भी कुल की तीन पीढ़ियों को छोड़ देना । जिसने सूर्य-मन्दिर का निर्माण कराया है, उसके कुल में उत्पन्न हुआ पुरुष भी तुमलोगो के द्वारा बुरी दृष्टि से देखने योग्य नहीं है । जिन भगवद्भक्तों ने मेरे पिता की सुन्दर अर्चना की है, उन मनुष्यों को तथा उनके कुल को भी तुम सदा दूर से ही त्याग देना ।’महात्मा धर्मराज यम के द्वारा ऐसा आदेश दिये जानेपर भी एक बार (भूलसे) यम-किंकर उनके आदेश का उल्लङ्घन करके राजा सत्राजित् के पास चले गये । परंतु उस सूर्यभक्त सत्राजित् के तेज से वे सभी यम के सेवक मूर्च्छित होकर पृथ्वीपर वैसे ही गिर पड़े, जैसे मूर्च्छित पक्षी पर्वत पर से भूमि पर गिर पड़ता है । इस प्रकार जो भक्त भगवान् सूर्य के मन्दिर का निर्माण करता-कराता है, वह समस्त यज्ञों को सम्पन्न कर लेता है, क्योंकि भगवान् सूर्य स्वयं ही सम्पूर्ण यज्ञमय हैं ।
ब्रह्माजी बोले — सूर्य की प्रतिष्ठित प्रतिमाको जो घी से स्नान कराता है, वह अपनी सभी कामनाओं को प्राप्त कर लेता है । कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन सूर्यभगवान् को जो घी से स्नान कराता है, उसे सभी पापों से छुटकारा प्राप्त हो जाता है । सप्तमी अथवा षष्टी के दिन सूर्यनारायण को गाय के घी से स्नान कराने से सभी पातक दूर हो जाते हैं । संध्याकाल में घी से स्नान कराने पर तो ज्ञात-अज्ञात सम्पूर्ण पाप दूर हो जाते हैं । सूर्यनारायण सर्व-यज्ञ-रूप हैं और समस्त हव्य-पदार्थो में घी ही उत्तम पदार्थ है, इसलिये उन दोनों का संगम होते ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । सूर्य को दूध से स्नान कराने वाला मनुष्य सात जन्मों तक सुखी, रोगरहित और रूपवान् होता है और अन्त में दिव्यलोक में निवास करता है । जैसे दूध स्वच्छ होता है और रोगादि से मुक्ति देनेवाला है, वैसे ही दूध से स्नान कराने पर अज्ञान हटकर निर्मल ज्ञान प्राप्त होता है । दूध के स्नान से भगवान् सूर्यनारायण प्रसन्न होकर सभी ग्रहों को अनुकूल करते हैं तथा सभी लोगों को पुष्टि और प्रीति प्रदान करते हैं । घी और दूध से तिमिर-विनाशक देवेश सूर्यदेव को स्नान कराने पर उनकी दृष्टिमात्र पड़ते ही मनुष्य सबका प्रिय हो जाता है ।
(अध्याय ११३-११४)

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