December 3, 2018 | aspundir | Leave a comment ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) प्रतिपत्कल्प – निरूपण में ब्रह्माजी की पूजा-अर्चा की महिमा राजा शतानीक ने कहा — ब्रह्मन् ! आप प्रतिपदा तिथि में किये जाने वाले कृत्य, ब्रह्माजी के पूजन की विधि और उसके फल का विस्तारपूर्वक वर्णन करें । सुमन्तु मुनि बोले — हे राजन् ! पूर्व-कल्प में स्थावर-जङ्गमात्मक सम्पूर्ण जगत के नष्ट हो जाने पर सर्वत्र जल – ही – जल हो गया । उस समय देवताओं में श्रेष्ठ चतुर्मुख ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्होंने अनेक लोकों, देवगणों तथा विविध प्राणियों की सृष्टि की । प्रजापति ब्रह्मा देवताओं के पिता अन्य जीवों के पितामह हैं, इसलिए इनकी सदा पूजा करनी चाहिये । ये ही जगत् की सृष्टि, पालन तथा संहार करनेवाले हैं । इनके मन से रुद्रका, वक्षःस्थल से विष्णु का आविर्भाव हुआ । इनके चारों मुखों से अपने छः अङ्गों के साथ चारों वेद प्रकट हुए । सभी देवता, दैत्य, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, नाग आदि इनकी पूजा करते है । यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्ममय है और ब्रह्म में स्थित हैं, अतः ब्रह्माजी सबसे पूज्य हैं । राज्य, स्वर्ग और मोक्ष – ये तीनों पदार्थ इनकी सेवा करने से प्राप्त हो जाते हैं । इसलिए सदा प्रसन्नचित्त से यावज्जीवन नियम से ब्रह्माजी की पूजा करनी चाहिये । जो ब्रह्माजी की सदा भक्ति से पूजा करता हैं, वह मनुष्य-स्वरुप में साक्षात् ब्रह्मा ही है । ब्रह्माजी की पूजा से अधिक पुण्य किसी में न समझकर सदा ब्रह्माजी का पूजन करते रहना चाहिये । जो ब्रह्माजी का मन्दिर बनवाकर उसमें विधि-पूर्वक ब्रह्माजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करता हैं, वह यज्ञ, तप, तीर्थ, दान आदि के फलों से करोड़ों गुना अधिक फल प्राप्त करता हैं । ऐसे पुरुष के दर्शन और स्पर्श से इक्कीस पीढ़ी का उद्धार हो जाता है । ब्रह्माजी की पूजा करने वाला पुरुष बहुत काल तक ब्रह्मलोक में निवास करता है । वहाँ निवास करने के पश्चात् वह ज्ञानयोग के माध्यम से मुक्त हो जाता है अथवा भोग चाहने पर मनुष्यलोक में चक्रवर्ती राजा अथवा वेद – वेदाङ्गपारङ्गत कुलीन ब्राह्मण होता है । किसी अन्य कठोर तप और यज्ञों की आवश्यकता नहीं है, केवल ब्रह्माजी की पूजा से ही सभी पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं । जो ब्रह्माजी के मन्दिर में छोटे जीवों की रक्षा करता हुआ सावधानीपूर्वक धीरे-धीरे झाड़ू देता है तथा उपलेपन करता है, वह चान्द्रायण-व्रत का फल प्राप्त करता है । एक पक्ष तक ब्रह्माजी के मन्दिर में जो झाड़ू लगाता है, वह सौ करोड़ युग से भी अधिक ब्रह्मलोक में पूजित होता है और अनन्तर सर्व-गुण-संपन्न, चारों वेदों का ज्ञाता धर्मात्मा राजा के रूप में पृथ्वी पर आता है । भक्ति-पूर्वक ब्रह्माजी का पूजन न करने तक ही मनुष्य संसार में भटकता है । जिस तरह मानव का मन विषयों में मग्न होता है, वैसे ही यदि ब्रह्माजी में मन निमग्न रहे तो ऐसा कौन पुरुष होगा जो मुक्ति नही प्राप्त कर सकता । “समासक्तं यथा चित्तं जन्तोर्विषयगोचरे । यद्येवं ब्रह्माणि न्यस्तं को न मुच्येत बन्धनात् ॥” (ब्राह्मपर्व १७ । ४०) ब्रह्माजी के जीर्ण एवं खण्डित मन्दिर का उद्धार करने वाला प्राणी मुक्ति प्राप्त करता है । ब्रह्माजी के समान न कोई देवता है न गुरु, न ज्ञान है और न कोई तप ही है । प्रतिपदा आदि सभी तिथियों में भक्ति-पूर्वक ब्रह्माजी की पूजा कर पूर्णिमा के दिन विशेषरूप से पूजा करनी चाहिये तथा शङ्ख, घण्टा, भेरी आदि वाद्य-ध्वनियों के साथ आरती एवं स्तुति करनी चाहिये । इस प्रकार व्यक्ति जितने पर्वों पर आरती करता हैं, उतने हजार युग तक ब्रह्मलोक में निवास और आनन्द का उपभोग करता है । कपिला गौ के पञ्चगव्य और कुशा के जल से वेदमन्त्रों के द्वारा ब्रह्माजी को स्नान कराना ब्राह्म-स्नान कहलाता है । अन्य स्नानों से सौ गुना पुण्य इसमें अधिक होता है । यज्ञ एवं अग्निहोत्रादि के लिये ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को कपिला गौ रखनी चाहिये । ब्रह्माजी की मूर्ति का कपिला गाय के घृत से अभ्यङ्ग करना चाहिये, इससे करोड़ों वर्षों के किये गये पापों का विनाश होता है । यदि प्रतिपदा के दिन कोई एक बार भी घी से स्नान कराता है तो उसके इक्कीस पीढ़ी का उद्धार हो जाता है । सुवर्ण-वस्त्रादि से अलंकृत दस हजार सवत्सा गौ वेदज्ञ ब्राह्मणों को देने से जो पुण्य होता है, वही पूज्य ब्रह्माजी को दुग्ध से स्नान कराने से प्राप्त होता है । एक बार भी दूध से ब्रह्माजी को स्नान करने वाला पुरुष सुवर्ण के विमान से विराजमान हो ब्रह्मलोक में पहुँच जाता है । दही से स्नान कराने पर विष्णुलोक की प्राप्ति होती है । शहद से स्नान कराने पर वीरलोक (इन्द्रलोक)- की प्राप्ति होती है । ईख के रस से स्नान कराने पर सूर्यलोक की प्राप्ति होती है । शुद्धोदक से स्नान कराने पर सभी पापों से मुक्त होकर ब्रह्मलोक में निवास करता है । वस्त्र से छने हुए जल से ब्रह्माजी को स्नान कराने पर वह सदा तृप्त रहता है और सम्पूर्ण विश्व उसके वशीभूत हो जाता है । सर्वौषधियों से स्नान कराने पर ब्रह्मलोक, चन्दन के जल से स्नान कराने पर रुद्रलोक, कमल के पुष्प, नीलकमल, पाटला (लोध्र-लाल), कनेर आदि सुंगधित पुष्पों से स्नान कराने पर ब्रह्मलोक में पूजित होता है । कपूर और अगर के जल से स्नान करानेपर या गायत्री मंत्र से सौ बार जल को अभिमंत्रित कर उस जल से स्नान कराने पर ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है । शीतल जल या कपिला गाय के धारोष्ण दुग्ध से स्नान कराने के अनन्तर घृत से स्नान कराने से सभी पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है । इन तीनों स्नानों को सम्पन्न कर भक्तिपूर्वक पूजा करने से पूजक को अश्वमेध-यज्ञ का फल प्राप्त होता है । मिट्टी के घड़े की अपेक्षा ताँबे के घट से ब्रह्माजी को स्नान कराने पर सौगुना, चाँदी के घट से लाख गुना फल होता है और सुवर्ण-कलश से स्नान कराने पर कोटिगुना फल होता है । ब्रह्माजी के दर्शन से उनका स्पर्श करना श्रेष्ठ है, स्पर्श से पूजन और पूजन से घृतस्नान अधिक फलदायक है । सभी वाचिक और मानसिक पाप घृतस्नान कराने से नष्ट हो जाते है । राजन् ! इस विधि से स्नान कराकर भक्तिपूर्वक ब्रह्माजी की पूजा इस प्रकार करनी चाहिये – पवित्र वस्त्र पहनकर, आसनपर बैठ सम्पूर्ण न्यास करना चाहिये । प्रथम चार हाथ विस्तृत स्थान में एक अष्टदल – कमल का निर्माण करे । उसके मध्य नाना वर्ण-युक्त द्वादशदल – यन्त्र लिखे और पाँच रंगों से उसको भरे । इस प्रकार यन्त्र-निर्माण कर गायत्री के वर्णों से न्यास करे । गायत्री के अक्षरों द्वारा शरीर में न्यास कर देवता के शरीर में भी न्यास करना चाहिये । प्रणव-युक्त गायत्री मंत्र के द्वारा अभिमन्त्रित केशर, अगर, चन्दन, कपूर आदि से समन्वित जल से सभी पूजा-द्रव्यों का मार्जन करना चाहिये । अनन्तर पूजा करनी चाहिये । प्रणव का उच्चारण कर पीठ-स्थापन और प्रणव से ही तेजःस्वरुप ब्रह्माजी का आवाहन करना चाहिये । पद्म पर विराजमान, चार मुखों से युक्त चराचर विश्व की सृष्टि करने वाले श्रीब्रह्माजी का ध्यान कर पूजा करनी चाहिये । जो पुरुष प्रतिपदा तिथि के दिन भक्ति-पूर्वक गायत्री मन्त्र से ब्रह्माजी का पूजन करता हैं, वह चिरकाल तक ब्रह्मलोक में निवास करता है । (अध्याय – १७) Content is available only for registered users. 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