December 21, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १७ से १८ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (मध्यमपर्व — प्रथम भाग) अध्याय – १७ से १८ विविध कर्मों में अग्निके नाम तथा होम-द्रव्यों का वर्णन सूतजी बोले — ब्राह्मणों ! अब मैं शास्त्रसम्मत-विधि के अनुसार किये गये विविध यज्ञों में अग्नि के नामों का वर्णन करता हूँ । शतार्ध-होम में पाँच सौ संख्या तक की आहुतिवाले यज्ञों में अग्नि को काश्यप कहा गया है । इसी प्रकार आज्य-होम में विष्णु, तिल-याग में वनस्पति, सहस्र-याग में ब्राह्मण, अयुत-याग में हरि, लक्ष-होम में वह्नि, कोटि-होम में हुताशन, शान्तिक कर्मों में वरुण, मारण-कर्म में अरुण, नित्य-होम में अनल, प्रायश्चित्त में हुताशन तथा अन्न-यज्ञ में लोहित नाम कहा गया है । देवप्रतिष्ठा मे लोहित, वास्तुयाग, मण्डप तथा पद्मक-याग में प्रजापति, प्रपा-याग में नाग, महादान में हविर्भुक्, गोदान में रुद्र, कन्यादान में योजक तथा तुला-पुरुष-दान में धाता रूप से अग्निदेव स्थित रहते हैं । इसी प्रकार वृषोत्सर्ग अग्नि का सूर्य, वैश्वदेव-कर्म में पावक, दीक्षा-ग्रहण में जनार्दन, उत्पीडन में काल, शवदाह में कव्य, पर्णदाह में यम, अस्थिदाह में शिखण्डिक, गर्भाधान में मरुत्, सीमन्त में पिङ्गल, पुंसवन में इन्द्र, नामकरण में पार्थिव, निष्क्रमण में हाटक, प्राशन में शुचि, चूडाकरण में षडानन, व्रतोपदेश में समुद्भव, उपनयन में वीतिहोत्र, समावर्तन में धनञ्जय, उदर में जठर, समुद्र में वडवानल, शिखा में विभु तथा स्वरादि शब्दों में सरीसृप नाम है । अश्वाग्नि का मन्थर, रथाग्नि का जातवेदस्, गजाग्नि का मन्दर, सूर्याग्नि का विन्ध्य, तोयाग्नि का वरुण, ब्राह्मणाग्नि का हविर्भुक्, पर्वताग्नि का नाम क्रतुभुक् है । दावाग्नि को सूर्य कहा जाता है । दीपाग्नि का नाम पावक, गृह्याग्नि का धरणीपति, घृताग्नि को नल और सूतिकाग्नि का नाम राक्षस है ।जिन द्रव्यों का होम में उपयोग किया जाता है, उनका निश्चित प्रमाण होता है । प्रमाण के बिना किया गया द्रव्यों का होम फलदायक नहीं होता । अतः शास्त्र अनुसार प्रमाण का परिज्ञान कर लेना चाहिये । घी, दूध, पञ्चगव्य, दधि, मधु, लाजा, गुड़, ईख, पत्र-पुष्प, सुपारी, समिध्, व्रीहि, डंठल के साथ जपापुष्प और केसर, कमल, जीवन्ती, मातुलुङ्ग (बिजौरा नींबू), नारियल, कूष्माण्ड, ककड़ी, गुरुच, तिंदुक, तीन पत्तोंवाली दूब आदि अनेक होम-द्रव्य कहे गये हैं । भूर्जपत्र, शमी तथा समिधा प्रादेशमात्र के होने चाहिये । बिल्वपत्र तीन पत्र-युक्त, किंतु छिन्न-भिन्न नहीं होना चाहिये । इनमें शास्त्रनिर्दिष्ट प्रमाण से न्यूनता या अधिकता नहीं होनी चाहिये । अभीष्ट-प्राप्ति के निमित किये जानेवाले शान्ति-कर्म शास्त्रोक्त रीति से सम्पन्न होने चाहिये । (अध्याय १७-१८) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय २ से ३ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय ४ 5. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय ५ 6. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय ६ 7. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय ७ से ८ 8. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय ९ 9. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १० से ११ 10. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १२ 11. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १३ से १५ 12. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १६ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe