December 23, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय ६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (मध्यमपर्व — द्वितीय भाग) अध्याय ६ चतुर्विध मास-व्यवस्था एवं मलमास-वर्णन सूतजी बोले — ब्राह्मणों ! अब मैं (विभिन्न प्रकार के) मासों का वर्णन करता हूँ । मास चार प्रकार के होते हैं – चान्द्र, सौर, सावन तथा नाक्षत्र । शुक्ल प्रतिपदा से लेकर अमावास्या तक का मास चान्द्र-मास कहा जाता है । सूर्य की एक संक्रान्ति से दूसरी संक्रान्ति में प्रवेश करने का समय सौर-मास कहलाता है । पूरे तीस दिनों का सावन-मास होता है । अश्विनी से लेकर रेवतीपर्यन्त नाक्षत्र-मास होता है । सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक जो दिन होता है, उसे सावन-दिन कहते हैं । एक तिथि में चन्द्रमा जितना भोग करता हैं, वह चान्द्र-दिवस कहलाता है । राशि के तीसवें भाग को सौर-दिन कहते हैं । दिन-रात को मिलाकर अहोरात्र होता है । किसी भी तिथि को लेकर तीस दिन बाद आनेवाली तिथि तक का समय सावन-मास होता है । प्रायश्चित्त, अन्नप्राशन तथा मन्त्रोपासना में, राजा के कर-ग्रहण में, व्यवहार में, यज्ञ में तथा दिन की गणना आदि में सावन-मास ग्राह्य है । सौर-मास विवाहादि-संस्कार, यज्ञ-व्रत आदि सत्कर्म तथा स्नानादि में ग्राह्य है । चान्द्र-मास पार्वण, अष्टकाश्राद्ध, साधारण श्राद्ध, धार्मिक कार्यों आदि के लिये उपयुक्त है । चैत्र आदि मासों में तिथि को लेकर जो कर्म विहित है, वे चान्द्र-मास से करने चाहिये । सोम या पितृगणों के कार्य आदि में नाक्षत्र-मास प्रशस्त माना गया है । चित्रा नक्षत्र के योग से चैत्री पूर्णिमा होती है, उससे उपलक्षित मास चैत्र कहा जाता है । चैत्र आदि जो बारह चान्द्र-मास हैं, वे तत्-तत् नक्षत्र के योग से तत्-तत् नामवाले होते हैं ।जिस महीने में पूर्णिमा का योग न हो, वह प्रजा, पशु आदि के लिये अहितकर होता है । सूर्य और चन्द्रमा दोनों नित्य तिथि का भोग करते हैं । जिन तीस दिनों में संक्रमण न हो, वह मलिम्लुच, मलमास या अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) कहलाता है, उसमें सूर्य की कोई संक्रान्ति नहीं होती । प्रायः अढाई वर्ष (बत्तीस मास)— के बाद यह मास आता है । इस महीने में सभी तरह की प्रेत-क्रियाएँ तथा सपिण्डन-क्रियाएँ की जा सकती है । परन्तु यज्ञ, विवाहादि कार्य नहीं होते । इसमें तीर्थस्नान, देव-दर्शन, व्रत=उपवास आदि, सीमन्तोन्नयन, ऋतुशान्ति, पुंसवन और पुत्र आदि का मुख-दर्शन किया जा सकता है । इसी तरह शुक्रास्त में भी ये क्रियाएँ की जा सकती हैं । राज्याभिषेक भी मलमास में हो सकता है । व्रतारम्भ, प्रतिष्ठा, चूडाकर्म, उपनयन, मन्त्रोपासना, विवाह, नूतन-गृह निर्माण, गृह-प्रवेश, गौ आदि का ग्रहण आश्रमान्तर में प्रवेश, तीर्थ-यात्रा, अभिषेक-कर्म, वृषोत्सर्ग, कन्या का द्विरागमन तथा यज्ञ-यागादि — इन सबका मलमास में निषेध है । इसी तरह शुक्रास्त एवं उसके वार्धक्य और बाल्यत्व में भी इनका निषेध है । गुरु के अस्त एवं सूर्य के सिंह राशि में स्थित होने पर अधिक मास में जो निषिद्ध कर्म हैं, उन्हें नहीं करना चाहिये । कर्क राशि में सूर्य के आने पर भगवान् शयन करते हैं और उनके तुला राशि में आने पर निद्रा का त्याग करते हैं । (अध्याय ६) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १ से २ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय ३ से ५ Related