December 23, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय ९ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (मध्यमपर्व — द्वितीय भाग) अध्याय ९ गोत्र-प्रवर आदि के ज्ञान की आवश्यकता सूतजी कहते हैं — ब्राह्मणों ! गोत्र-प्रवर की परम्परा को जानना अत्यन्त आवश्यक होता है, इसलिये अपने-अपने गोत्र या प्रवर को पिता, आचार्य तथा शास्त्र द्वारा जानना चाहिये । गोत्र-प्रवर को जाने बिना किया गया कर्म विपरीत फलदायी होता है । कश्यप, वसिष्ठ, विश्वामित्र, आङ्गिरस, च्यवन, मौकुन्य, वत्स, कात्यायन, अगस्त्य आदि अनेक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि हैं । गोत्रों में एक, दो, तीन, पाँच आदि प्रवर गोत्रों का प्रवर से घनिष्ठ सम्बन्ध है । प्रवर का अर्थ है “श्रेष्ठ“ । अधिक प्रवर वाले उत्तरोत्तर श्रेष्ठ माने गये हैं । प्रवर गोत्र के प्रवर्तक मूल ऋषि के बाद में होने वाले महान व्यक्तियों की ओर संकेत करता है ।प्रवर उन ऋषियों के नाम होते हैं, जो वैदिक, नित्य नैमित्तिक कर्म एवं कुलाचार के प्रवर्तक हैं । प्रवर के सन्दर्भ में कहा गाय कि प्रवर उतना पुराना नहीं जितना गोत्र । इससे स्पष्ट है कि गोत्र के मूल प्रवर्तक ऋषियों के बाद उनके बाद के महान व्यक्ति है । होते हैं । समान गोत्र में विवाहादि सम्बन्धों का निषेध है । अपने गोत्र-प्रवरादि का ज्ञान शास्त्रान्तरों से कर लेना चाहिये । गोत्र-प्रवर-निर्णय पर ‘गोत्र-प्रवर-निबन्ध-कदम्ब’ आदि कई स्वतन्त्र निबन्ध ग्रन्थ हैं । मत्स्यपुराण के अध्याय १९५-२०५ तक में विस्तार से यह विषय आया है तथा स्कन्दपुराण के माहेश्वरखण्ड एवं ब्रह्माखण्ड में भी इस पर विचार किया गया है। वास्तव में देखा जाय तो सारा जगत महामुनि कश्यप से उत्पन्न हुआ है । अतः जिन्हें अपने गोत्र और प्रवर का ज्ञान नहीं है, उन्हें अपने पिताजी से ज्ञात कर लेना चाहिये । यदि उन्हें मालुम न हो तो स्वयं को काश्यप गोत्रीय सबके लिये एकमात्र परमात्मा ही परमकल्याणार्थ ध्येय-ज्ञेय हैं और कश्यपनन्दन सूर्य के रूप में प्रत्यक्ष रूप से वे संसारका पालन, संचालन-उष्मा तथा प्रकाश के रूप में फिर वायु-प्राण के रूप में जीवन बने हैं । इसीलिये सभी वैष्णव और संन्यासी अपने को अच्युत-गोत्रीय ही मानते हैं । प्राचीन परम्परा के अनुसार वेदाध्ययन में वैदिक शाखा, सूत्र, ऋषि, गोत्र और प्रवर का ज्ञान आवश्यक था । यह विषय आश्वलायन गृह्यसूत्र में भी निर्दिष्ट है । मानकर उनका प्रवर लगाकर शास्त्रानुसार कर्म करना चाहिये ।(अध्याय ९) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १ से २ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय ३ से ५ 5. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय ६ 6. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय ७ से ८ Related