December 23, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय १२ से १३ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (मध्यमपर्व — तृतीय भाग) अध्याय – १२ से १३ मण्डप, महायूप और पौंसले आदि की प्रतिष्ठा-विधि सूतजी कहते हैं — द्विजगणो ! अब मैं यागादि के निमित निर्मित होनेवाले मण्डपकी प्रतिष्ठा-विधि बतलाता हूँ । वह मण्डप शिलामय हो या काष्ठमय अथवा तृण-पत्रादिसे निर्मित हो । ऐसी स्थितिमें अधिवासनके प्रारम्भमें शुभ-लग्न-मुहर्त में घट स्थापन करे । उस कलशपर सूर्य, सोम और विष्णुकी अर्चना करे । ‘आपो हि ष्ठा० ‘ (यजु० ११ । ५०) इस मन्त्र द्वारा कुशोदक से तथा ‘आप्यायस्व० ‘ (यजु० १३ । ११४) इस मन्त्रद्वारा सुगन्ध-जलसे प्रोक्षण करे । ‘गन्धद्वारा० ‘ (श्रीसूक्त ९) इस ऋचासे चन्दन, सिन्दुर, आलता और अञ्जन समर्पण करे । फिर दूसरे दिन प्रातः वृद्धि-श्राद्ध करे । शुभ लक्षणवाले मण्डपमें दिक्पालकी स्थापना करे । मध्यमें वेदी के ऊपर मण्डल चित्रित करे । उसमें सूर्य, सोम, विष्णु की तथा कलश पर गणेदा, नवग्रह आदिकी पूजा करे । सूर्यके लिये १०८ बार पायस होम करे। विष्णु और सोमका उद्देश्य कर बारह आहुतियाँ एवं पायस-बलि दे । वास्तु-देवताका पूजन कर और उनको अर्घ्य देकर विधिवत् आहुति प्रदान करे, फिर उस मण्डलको संकल्पपूर्वक योग्य ब्राह्मणके लिये समर्पित कर दे । उसे विधिवत् दक्षिणा दे और सूर्यके लिये अर्घ्य प्रदान करे । तृण-मण्डपमें विशेषरूपसे वासुदेवके साथ भगवान् सूर्यकी पूजा करे । एक घटके ऊपर वरदायक भगवान् गणेशजीकी पूजा कर विसर्जन करे । ईशानकोणमें यूप स्थापित कर सभी दिशाओं में ध्वजा फहराये ।ब्राह्मणो ! अब में चार हाथसे लेकर सोलह हाथके प्रमाणमें निर्मित महायूपकी एवं पौंसला तथा कुएँ आदिकी प्रतिष्ठा-विधि बता रहा हूँ । इनकी प्रतिष्ठा में गर्ग-त्रिरात्र यज्ञ करना चाहिये । पौंसले के पश्चिम भाग में श्वेत कुम्भ पर भगवान् वरुण को स्थापित कर ‘गायत्री मन्त्र’ तथा ‘आपो हि ष्ठा० ‘ (यजु० ११ । ५०) इन मन्त्रों से उन्हें स्नान कराना चाहिये । उसके बाद गन्ध, तेल, पुष्प और धूप आदि से मन्त्रपूर्वक उनकी अर्चना कर उन्हें वस्त्र, नैवेद्य, दीप तथा चन्दन आदि निवेदित करना चाहिये । प्रतिष्ठा के अन्त में श्राद्ध कर एक ब्राह्मण-दम्पति को भोजन कराना चाहिये । आठ हाथ का एक मण्डप बनाकर उसमें कलश की स्थापना करे । उस पर नारायण के साथ वरुण, शिव, पृथ्वी आदि का तत्-तत् मन्त्रों से पूजन करे, उसके बाद स्थालीपाक-विधान से हवन के लिये कुशकण्डिका करे । भगवान् वरुण का पूजन कर स्रुवा द्वारा उन्हें ‘वरुणस्य० ‘ (यजु० ४ । ३६) इत्यादि मन्त्रों से दस आहुतियाँ प्रदान करे । अन्य देवताओं के लिये क्रमशः एक-एक आहुति दे । उसके बाद स्विष्टकृत् हवन करे और अग्नि की सप्तजिह्वाओं के नाम से चरु हवन करे । तदनन्तर सभी को नैवेद्य और बलि प्रदान करे । इसके पश्चात् संकल्प-वाक्य पढ़कर कुप का उत्सर्जन कर दे । ब्राह्मणों को पयस्विनी गाय एवं दक्षिणा प्रदान करे । यदि छोटे कूप की प्रतिष्ठा करनी हो तो गणेश तथा वरुणदेवता की कलश के ऊपर विधिवत् पूजा करनी चाहिये । लाल सूत्र से कलश को वेष्टित करना चाहिये । यूप स्थापित करने के पश्चात् संकल्पपूर्वक कूप का उत्सर्जन करना चाहिये । ब्राह्मणों को विधिवत् सम्मानपूर्वक दक्षिणा देनी चाहिये । (अध्याय १२-१३) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय १ 5. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २ से ३ 6. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय ४ से ८ 7. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय ९ से ११ Related