December 23, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय १८ से १९ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (मध्यमपर्व — तृतीय भाग) अध्याय – १८ से १९ एकाह-प्रतिष्ठा तथा काली आदि देवियों की प्रतिष्ठा-विधि सूतजी ने कहा — ब्राह्मणों ! कलियुग में अल्प सामर्थ्यवान् व्यक्ति देवता आदि की प्रतिष्ठा एक दिन में भी कर सकता है । जिस दिन प्रतिष्ठा करनी हो उसी दिन विद्वान् ब्राह्मण घृताधिवास कराये । जब सूर्य भगवान् उतरायण के हो, तब प्रतिष्ठादि कार्य करने चाहिये । शरत्काल व्यतीत हो जाने पर वसन्त ऋतु में यज्ञ का आरम्भ करना चाहिये । नारायण आदि मूर्तियों के बत्तीस भेद हैं । गजानन आदि देवताओं की प्रतिष्ठा विहित काल में ही करनी चाहिये । बुद्धिमान् मनुष्य नित्यक्रिया से निवृत्त होकर आभ्युदयिक कर्म करे । अनन्तर ब्राह्मणों को भोजन कराये । फिर यज्ञ-गृह में प्रवेश करे । वहाँ प्रत्येक कुम्भ के ऊपर भगवान् गणेश, नवग्रह तथा दिक्पाल का विधिवत् पूजन करे । वेदी पर भगवान् विष्णु और उनके परिवार का पूजन करे । सर्वप्रथम भगवान् विष्णु को विभिन्न तीर्थ, समुद्र, नदियों आदि के जल, पञ्चामृत, पञ्चगव्य, सप्त-मृत्तिकामिश्रित जल, तिल के तेल, कषाय-द्रव्य और पुष्पोदक से स्नान कराये । तुलसी, आम्र, शमी, कमल तथा करवीर के पत्र-पुष्पों से उनकी पूजा करे । इसके बाद मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा सम्पन्न करे । तत्पश्चात् विधिपूर्वक हवन करे । ब्राह्मणों को दक्षिणा द्वारा संतुष्टकर पूर्णाहुति प्रदान करे । ब्राह्मणो ! अब मैं काली आदि महाशक्तियों की प्रतिष्ठा एवं अधिवासन की संक्षिप्त विधि बतला रहा हूँ । प्रतिष्ठा के पूर्व दिन देवी की प्रतिमा का अधिवासन कर आभ्युदयिक श्राद्ध करे । सर्वप्रथम भगवती की प्रतिमा को कमलयुक्त जल से, फिर पञ्चगव्य से स्नान कराये । कुम्भ के ऊपर भगवती दुर्गा की अर्चना करे । तदनन्तर मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा करे । बिल्व-पत्र और बिल्व-फलों से सौ आहुतियाँ दे । दक्षिणा में सुवर्ण प्रदान करे । भगवती कालिका और तारा की प्रतिमाओं का अलग-अलग अर्चन करे । भगवती को नाना प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से तीन दिन तक स्नान कराये और नैवेद्य अर्पण करे । ताँबे के कलश पर तीन दिन तक प्रातःकाल में देवी की अर्चना करे फिर कन्याओं द्वारा सुगन्धित जल से भगवती को स्नान कराये । आठवें दिन भी रात्रि में विशेष पूजन करे एवं पायस-होम करे ।आगमों के अनुसार शिवलिङ्ग की प्रतिष्ठा में तीन ब्राह्मणों को भोजन कराये और विशेषरूप से भगवान् की प्रतिमा का अधिवासन करे । नित्य-क्रिया करके आभ्युदयिक श्राद्ध करे । दूसरे दिन प्रातः आचार्य का वरण करे । विधि के अनुसार प्रतिमा को स्नान कराकर शिवलिङ्ग का परिवार के साथ पूजन करे । विधिपूर्वक तिलमयी या स्वर्णमयी अथवा साक्षात् गौ का दान करे । हवन की समाप्ति पर शुद्ध घृत से वसुधारा प्रदान करे । इसी तरह सूर्य, गणेशा, ब्रह्मा आदि देवताओं तथा वाराही एवं त्रिपुरादेवी और भुवनेश्वरी महामाया, अम्बिका, कामाक्षी, इन्द्राक्षी तथा अपराजिता आदि महाशक्तियों की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा भी विधिपूर्वक करनी चाहिये और रात्रि-जागरण का महान् उत्सव करना चाहिये । देवी की प्रतिष्ठा में कुमारी-पूजन भी करना चाहिये । (अध्याय १८-१९) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय १ 5. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २ से ३ 6. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय ४ से ८ 7. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय ९ से ११ 8. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय १२ से १३ 9. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय १४ से १७ Related