December 21, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय ६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (मध्यमपर्व — प्रथम भाग) अध्याय ६ माता, पिता एवं गुरु की महिमा श्रीसूतजी बोले — द्विजश्रेष्ठ ! चारों वर्णों के लिये पिता ही सबसे बड़ा अपना सहायक है । पिता के समान अन्य कोई अपना बन्धु नहीं है, ऐसा वेदों का कथन है । माता-पिता और गुरु — ये तीनों पथप्रदर्शक हैं, पर इनमें माता ही सर्वोपरि है । भाइयों में जो क्रमशः बड़े हैं, वे क्रम-क्रम से ही विशेष आदर के पात्र हैं । इन्हें द्वादशी, अमावस्या तथा संक्रान्ति के दिन यथारुचि मणियुक्त वस्त्र दक्षिणा के रूप में देना चाहिये, दक्षिणायन और उत्तरायण में, विषुव संक्रान्ति में तथा चन्द्र-सूर्य-ग्रहण के समय यथाशक्ति इन्हें भोजन कराना चाहिये । अनन्तर इन मन्त्रों से इनकी चरण-वन्दना करनी चाहिये, क्योंकि विधिपूर्वक वन्दन करने से ही सभी तीर्थों का फल प्राप्त हो जाते है — “स्वर्गापवर्गप्रदमेकमाद्यं ब्रह्मस्वरूपं पितरं नमामि । यतो जगत् पश्यति चारुरुपं तं तर्पयामः सलिलैस्तिलैर्युतैः ॥ पितरो जनयन्तिह पितरः पालयन्ति च । पितरो ब्रह्मरूपा हि तेभ्यो नित्यं नमो नमः ॥ यस्माद्वीजयते लोकस्तस्माद्धर्मः प्रवर्तते । नमस्तुभ्यं पितः साक्षाद्ब्रह्मरूप नमोऽस्तु ते ॥ या कुक्षिविवरे कृत्वा स्वयं रक्षति सर्वतः । नमामि जननीं देवीं परा प्रकृतिरूपिणिम् ॥ कृच्छ्रेण महता देव्या धारितोऽहं यथोदरे । त्वत्प्रसादाज्जगद्दृष्टं मातर्नित्यं नमोऽस्तु ते ॥ पृथिव्यां यानि तीर्थानि सागरादीनि सर्वशः । वसन्ति यत्र तां नौमि मातरं भूतिहेतवे ॥ गुरुदेवप्रसादेन लब्धा विद्या-यशस्करी । शिवरूप नमस्तस्मै संसारार्णवसेतवे ॥ वेदवेदाङ्गशास्त्राणां तत्त्वं यत्र प्रतिष्ठितम् । आधारः सर्वभूतानामप्रजन्मन् नमोऽस्तु ते ॥ ब्राह्मणों जगतां तीर्थं पावनं परमंयतः । भूदेव हर में पापं विष्णुरुपिन् नमोस्तु ते ॥” (मध्यमपर्व १ । ६ । ६-१४) ‘स्वर्ग और अपवर्ग-रूपी फल को प्रदान करनेवाले एक आद्य ब्रह्मस्वरूप पिता को मैं नमस्कार करता हूँ । जिनकी प्रसन्नता से संसार सुन्दर रूप में दिखायी देता है, उन पिता का मैं तिलयुक्त जलसे तर्पण करता हूँ । पिता ही जन्म देता है, पिता ही पालन करता है, पितृगण ब्रह्मस्वरुप है, उन्हें नित्य पुनः पुनः नमस्कार है । हे पितः ! आपके अनुग्रह से लोकधर्म प्रवर्तित होता है, आप साक्षात ब्रह्मरूप हैं, आपको नमस्कार है । जो अपने उदररूपी विवर में रखकर स्वयं उसकी सभी प्रकार से रक्षा करती है, उन परा प्रकृतिस्वरूपा जननीदेवी को नमस्कार है । मातः ! आपने बड़े कष्ट से मुझे अपने उदरप्रदेश में धारण किया, आपके अनुग्रह से मुझे यह संसार देखने को मिला, आपको बार-बार नमस्कार है । पृथ्वी पर जितने तीर्थ और सागर आदि हैं उन सबकी स्वरूप-भूता आपको अपनी कल्याण-प्राप्ति के लिये मैं नमस्कार करता हूँ । जिन गुरुदेव के प्रसाद से मैंने यशस्करी विद्या प्राप्त की है, उन भवसागर के सेतु-स्वरुप शिवरूप गुरुदेव को मेरा नमस्कार है । अग्रजन्मन् ! वेद और वेदाङ्ग-शास्त्रों के तत्त्व आपमें प्रतिष्ठित हैं । आप सभी प्राणियों के आधार हैं, आपको मेरा नमस्कार है । ब्राह्मण सम्पूर्ण संसार के चलते-फिरते परम पावन तीर्थस्वरूप हैं । अतः हे विष्णुरुपी भूदेव ! आप मेरा पाप नष्ट करें, आपको मेरा नमस्कार है ।’द्विजो ! जैसे पिता श्रेष्ठ है, उसी प्रकार पिता के बड़े-छोटे भाई और अपने बड़े भाई भी पिता के समान ही मान्य एवं पूज्य हैं । आचार्य ब्रह्मा की, पिता प्रजापति की, माता पृथ्वी की और भाई अपनी ही मूर्ति है । पिता मेरुस्वरूप एवं वसिष्ठ स्वरुप सनातन धर्ममूर्ति हैं । ये ही प्रत्यक्ष देवता हैं, अतः इनकी आज्ञा का पालन करना चाहिये । इसी प्रकार पितामह एवं पितामही (दादा-दादी) के भी पूजन-वन्दन, रक्षण, पालन और सेवन की अत्यन्त महिमा है । इनकी सेवा के पुण्यों की तुलना में कोई नहीं हैं, क्योंकि ये माता-पिता के भी परम पूज्य हैं । (अध्याय ६) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय २ से ३ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय ४ 5. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय ५ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe