December 21, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (मध्यमपर्व — प्रथम भाग) अध्याय १ गृहस्थाश्रम एवं धर्म की महिमा जयति भुवनदीपो भास्करो लोककर्ता जयति च शितिदेहः शार्ङ्गधन्वा मुरारिः । जयति च शशिमौली रुद्रनामाभिधेयो जयति सकलमौलीर्भानुमांश्चित्रभानुः ॥ ‘संसार की सृष्टि करनेवाले भुवन के दीपस्वरुप भगवान् भास्कर की जय हो । श्याम शरीरवाले शार्ङ्गधनुर्धारी भगवान् मुरारि की जय हो । मस्तक पर चन्द्रमा धारण किये हुए भगवान् रूद्र की जय हो । सभी के मुकुटमणि तेजोमय भगवान् चित्रभानु (सूर्य) की जय हो ।’ एक बार पौराणिकों में श्रेष्ठ रोमहर्षण सूतजी से मुनियों ने प्रणामपूर्वक पुराण-संहिता के विषय में पूछा । सूतजी मुनियों के वचन सुनकर अपने गुरु सत्यवती-पुत्र महर्षि वेदव्यास को प्रणाम कर कहने लगे । मुनियों ! मैं जगत् के कारण ब्रह्म-स्वरुप को धारण करनेवाले श्रीहरि को प्रणाम कर पाप का सर्वथा नाश करनेवाली पुराण की दिव्य कथा कहता हूँ, जिसके सुनने से सभी पाप-कर्म नष्ट हो जाते हैं और परमगति प्राप्त होती है । द्विजगण ! भगवान् विष्णु के द्वारा कहा गया भविष्यपुराण अत्यन्त पवित्र एवं आयुष्यप्रद है । अब मैं उसके मध्यम-पर्व का वर्णन करता हूँ, जिसमें देव-प्रतिष्ठा आदि इष्टापूर्त-कर्मों का वर्णन है । उसे आप सुनें — इस मध्यमपर्व में धर्म तथा ब्राह्मणादि की प्रसंशा, आपद्धर्म का निरूपण, विद्या-माहात्म्य, प्रतिमा-निर्माण, प्रतिमा-स्थापना, प्रतिमा का लक्षण, काल-व्यवस्था, सर्ग-प्रतिसर्ग आदि पुराण का लक्षण अमरकोष आदि प्राचीन कोशों में पुराण के पांच लक्षण माने गये हैं : सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म), वंश (देवता व ऋषि सूचियां), मन्वन्तर (चौदह मनु के काल), और वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित)। ‘सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वंतराणि च । वंशानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम् ॥’, भूगोल का निर्णय, तिथियों का निरूपण, श्राद्ध, संकल्प, मन्वन्तर, मुमूर्षु (मरनेवाला), मरणासन्न के कर्म, दान का माहात्म्य, बहुत, भविष्य, युग-धर्मानुशासन, उच्च-नीच-निर्णय, प्रायश्चित्त आदि विषयों का भी समावेश है ।मुनियों ! तीनों आश्रमों का मूल एवं उत्पत्ति का स्थान गृहस्थाश्रम ही है । अन्य आश्रम इसी से जीवित रहते हैं, अतः गृहस्थाश्रम सबसे श्रेष्ठ है । गार्हस्थ्य-जीवन ही धर्मानुशासित जीवन है । धर्म-रहित होने पर अर्थ और काम उसका परित्याग कर देते हैं । धर्म से ही अर्थ और काम उत्पन्न होते हैं, मोक्ष भी धर्म से ही प्राप्त होता हैं, अतः धर्म का ही आश्रयण करना चाहिये । धर्म, अर्थ और काम यही त्रिवर्ग हैं । प्रकारान्तर से ये क्रमशः त्रिगुण अर्थात् सत्त्व, रज और तमोगुणात्मक हैं । सात्त्विक अथवा धार्मिक व्यक्ति ही सच्ची उन्नति करते हैं, राजस मध्य स्थान को प्राप्त करते हैं । जघन्यगुण अर्थात् तामस व्यवहारवाले निम्न भूमि को प्राप्त करते हैं । जिस पुरुष में धर्म से समन्वित अर्थ और काम व्यवस्थित रहते हैं, वे इस लोक में सुख भोगकर मरने के अनन्तर मोक्ष को प्राप्त करते हैं, इसलिये अर्थ और काम को समन्वित कर धर्म का आश्रय ग्रहण करे । ब्रह्मवादियों ने कहा है कि धर्म से ही सब कुछ प्राप्त हो जाता है । स्थावर-जङ्गम अर्थात् सम्पूर्ण चराचर विश्व को धर्म ही धारण करता है । धर्म में धारण करने की जो शक्ति हैं, वह ब्राह्मी शक्ति है, वह आद्यन्तरहित है । कर्म और ज्ञान से धर्म प्राप्त होता है — इसमें संशय नहीं । अतः ज्ञान-पूर्वक कर्मयोग का आचरण करना चाहिये । प्रवृत्तिमूलक और निवृत्तिमूलक के भेद से वैदिक कर्म दो प्रकार के हैं । ज्ञानपूर्वक त्याग संन्यास है, संन्यासियों के कर्म निवृत्तिपरक हैं और गृहस्थों के वेद—शास्त्रानुकूल कर्म प्रवृत्तिपरक हैं । अतः प्रवृत्ति के सिद्ध हो जाने पर मोक्षकामी को निवृत्ति का आश्रय लेना चाहिये, नहीं तो पुनः-पुनः संसार में आना पड़ता है ।शम, दम, दया, दान, अलोभ, विषयों का त्याग, सरलता या निश्छलता, निष्क्रोध, अनसूया, तीर्थयात्रा, सत्य, संतोष, आस्तिकता, श्रद्धा, इन्द्रियनिग्रह, देवपूजन, विशेषरूप से ब्राह्मणपूजा, अहिंसा, सत्यवादिता, निन्दा का परित्याग, शुभानुष्ठान, शौचाचार, प्राणियों पर दया — ये श्रेष्ठ आचरण सभी वर्णों के लिये सामान्य रूप से कहे गये हैं । श्रद्धामूलक कर्म ही धर्म कहे गये हैं, धर्म श्रद्धाभाव में ही स्थित हैं, श्रद्धा ही निष्ठा है, श्रद्धा ही प्रतिष्ठा है और श्रद्धा ही धर्म की जड़ है । विधिपूर्वक ग्रहस्थधर्म का पालन करनेवाले ब्राह्मणों को प्रजापतिलोक, क्षत्रियों को इन्द्रलोक, वैश्यों को अमृतलोक और तीनों वर्णों की परिचर्यापूर्वक जीवन व्यतीत करनेवाले शूद्रों को गन्धर्वलोक की प्राप्ति होती है । (अध्याय १) See Also :- भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe