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महर्षि आश्वलायन-कृत माँ सरस्वती का विशिष्ट पाठ
मंगलाचरणः
ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता। मनो मे वाचि प्रतिष्ठितमाविरावीर्य एधि। वेदस्य म आणीस्थः। श्रुतं मे मा प्रहासीः। अनेनाधीतेनाहो-रात्रान्। सन्दधाम्यमृतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
पहले मन्त्र का विनियोग हाथ में जल लेकर पढ़े-
विनियोगः ॐ अस्य श्रीसरस्वती-दश-श्लोकी-महा-मन्त्रस्य अहमाश्वलायन ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः। श्रीवागीश्वरी देवता। यद्-वागिति बीजं। देवी-वाचमिति शक्तिः। प्रणो-देवीति कीलकं। श्रीवागीश्वरी-देवता-प्रीत्यर्थे विनियोगः।
षडंग-न्यासः ॐ श्रद्धायै नमो हृदयाय नमः। ॐ मेधायै नमः शिरसि स्वाहा। ॐ प्रज्ञायै नमः शिखायै वषट्। ॐ धारणायै नमः कवचाय हुम्। ॐ वाग्-देवतायै नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ महा सरस्वत्यै नमः अस्त्राय फट्।


 ध्यानः
नीहार-हार-घन-सार-सुधा-कराभाम्, कल्याणदां कनक-चम्पक-दाम-भूषाम्।
उत्तुंग-पीन-कुच-कुम्भ-मनोहरांगीम्, वाणीं नमामि मनसा वचसा विभूत्यै।।
श्लोक (१) या वेदान्तार्थ-तत्त्वैक-स्वरुपा परमार्थतः।
नाम-रुपात्मना व्यक्ता, सा मां पातु सरस्वती।।१
प्रथम वेद मन्त्रः ॐ प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती धिनाम वित्र्यवतु।
पहले उक्त मन्त्र का विनियोग पढ़ कर जल छोड़े। यथा-
विनियोगः ॐ प्रणो देवीति मन्त्रस्य भरद्वाज ऋषिः। गायत्री छन्दः। श्रीसरस्वती देवता। ॐ नमः बीज-शक्ति-कीलकानि। अर्थ-सिद्धयर्थे विनियोगः।
अब उक्त प्रथम मन्त्र को पढ़ते हुए हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्र और अस्त्र-छहों अंगों को स्पर्श करे।
श्लोक (२) या सांगोपांग-वेदेषु, चतुर्ष्वैकैन गीयते।
अद्वैता ब्रह्मणः शक्तिः सा मां पातु सरस्वती।।२
द्वितीय वेद मन्त्रः ह्रीं आ नो दिवो बृहतः पर्वतादा सरस्वती यज्ञता गन्तु यज्ञम् हवं देवी जुजुषाणा घृताची ‍घृताची शग्मां नो वाचमुशती श्रृणोतु।
पहले उक्त मन्त्र का विनियोग पढ़ कर जल छोड़े। यथा-
विनियोगः ह्रीं आ नो दिवेति मन्त्रस्य अत्रि ऋषिः। त्रिष्टुप् छन्दः। सरस्वती देवता। ह्रीं बीजं शक्तिः कीलकानि। ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे विनियोगः।
अब उक्त द्वितीय मन्त्र को पढ़ते हुए हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्र और अस्त्र-छहों अंगों को स्पर्श करे।
श्लोक (३) या वर्ण-पद-वाक्यार्थ-स्वरुपेणैव वर्तते।
अनादि-निधनाऽनन्ता, सा मां पातु सरस्वती।।३
विनियोगः श्रीं पावका नः इति मन्त्रस्य मधुच्छन्दा ऋषिः। गायत्री छन्दः। सरस्वती देवता। श्रीं बीजं। शक्तिं कीलकानि। इष्टार्थ-सिद्धयर्थे विनियोगः।
तृतीय वेद मन्त्रः श्रीं पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनी-वती यज्ञं वष्टु धिया वसुः।
पूर्ववत् यह मन्त्र तृतीय श्लोक के बाद पढ़ें। फिर विनियोग पढ़कर जल छोड़ें। तब छहों अंगों को स्पर्श करते हुए मन्त्र को पढ़ें। यही विधि सर्वत्र समझें।
श्लोक (४) अध्यात्ममधिः दैवश्च, देवानां सम्यगीश्वरी।
प्रत्यगास्ते वदन्ती या, सा मां पातु सरस्वती।।४
विनियोगः ब्लूं चोदयित्री मन्त्रस्य मधुच्छन्दा ऋषिः। गायत्री छन्दः। सरस्वती देवता। सौः बीजं। शक्तिं कीलकानि। सरस्वती-सिद्धयर्थे विनियोगः।
चतुर्थ वेद मन्त्रः ब्लूं चोदयित्री सुनृतानां चेतन्ती सुमनीनाम यज्ञं दधे सरस्वती।
श्लोक (५) अन्तरे याऽऽत्मना विश्वं। त्रैलोक्यं या नियच्छति।
रुद्रादित्यादि-रुपस्था, यस्यामावेश तां पुनः।
ध्यायन्ति सर्व-रुपैका, सा मां पातु सरस्वती।।५
विनियोगः सौः महोअर्णः अस्य मन्त्रस्य मधुच्छन्दा ऋषिः। गायत्री छन्दः। सरस्वती देवता। सौः बीजं। शक्तिं कीलकानि। सरस्वती-प्रसन्नार्थे विनियोगः।
पञ्चम वेद मन्त्रः सौः महाअर्णः सरस्वती प्रचेतयति केतुना धियो विश्वा विराजित।
श्लोक (६) या प्रत्यग्-दृष्टिभिर्जीवैः, व्यर्ज्यमाननुभूतये।
व्यापिनी-शक्ति-रुपैका, सा मां पातु सरस्वती।।६
विनियोगः ऐं चत्वारि वाक् इति मन्त्रस्य उतथ्य-पुत्र दीर्घतमा ऋषिः। त्रिष्टुप् छन्दः। सरस्वती देवता। ऐं बीजं। शक्तिः कीलकानी। इष्ट-सिद्धयर्थे विनियोगः।
षष्ठ वेद मन्त्रः ऐं चत्वारि वाक्-परिमिति पदानि, तानि विदुर्ब्राह्मणाः ये मनीषिणः। गुहा त्रीणि निहिताः नेङ्गयन्ति तुरीय-वाचो मनुष्याः वदन्ति।
श्लोक (७) नाम-जात्यादिभिर्भेदैः, अष्टधा या विकिल्पिता।
निर्विकल्पात्मना व्यक्ता, सा मां सरस्वती।।७
विनियोगः क्ली यद् वाग् वदन्तीति मन्त्रस्य भार्गव ऋषिः। त्रिष्टुप् छन्दः। सरस्वती देवता। क्लीं बीजं। शक्तिः कीलकानी। सरस्वत्या-सिद्धयर्थे विनियोगः।
सप्तम वेद मन्त्रः क्ली यद् वाग् वदन्त्यविचेतानि राष्ट्री देवानां निषसाद मन्द्राः चतस्र ऊर्ज दुदुहे पयांसि क्व स्विदस्याः परमं जगाम।
श्लोक (८) व्यक्ता-गिरः सर्वे, वेदाद्या व्याहरन्ति याम्।
सर्व-काम-दुधा धेनुः, सा मां सरस्वती।।८
विनियोगः सौः देवी-वाचमिति मन्त्रस्य भार्गव ऋषिः। त्रिष्टुप् छन्दः। सरस्वती देवता। क्लीं बीजं शक्तिः कीलकानि। सरस्वत्याः प्रसन्नार्थे विनियोगः।
अष्टम वेद मन्त्रः सौः देवी-वाचमजयन्त देवाः तां विश्व-रुपा पशवो वदन्ति। सा नो मन्द्रेष मूर्जं दुहाना धेनुर्वागस्मानुप-सुष्टुतैतु।
श्लोक (९) यां विदित्वाऽखिल-बन्धं, निर्मथ्य-खिल-वर्त्मना।
योगी याति परं स्थानं, सा मां सरस्वती।।९
विनियोगः सं उतत्त्वः इति मन्त्रस्य वृहस्पति ऋषिः। त्रिष्टुप् छन्दः। सरस्वती देवता। सं बीजं शक्तिः कीलकानि। सरस्वती-प्रसन्नार्थे जपे विनियोगः।
नवम वेद मन्त्रः सं उतत्त्वः पश्यन्न ददर्श वाचमुतत्वः श्रृण्वन् न श्रृणोत्येनाम् त्वस्मै तन्वं विसस्रे पत्य उशती सु-वासाः।
श्लोक (१०) नाक-रुपात्मकं सर्वं, यस्यामावेश्य तां पुनः।
ध्यायन्ति ब्रह्म-रुपैका, सा मां सरस्वती।।१०
विनियोगः ऐं अम्वितमे इति मन्त्रस्य गृत्मद् ऋषिः। अनुष्टुप छन्दः। सरस्वती देवता। ऐं बीजं शक्तिः कीलकानि। सरस्वती-प्रसन्नार्थे जपे विनियोगः।
दशम वेद मन्त्रः ऐं अम्वितमे नदी-तमे देवि-तमे सरस्वति! अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब! नस्कृधि।

आश्वलायन ऋषि द्वारा अनुभूत उक्त दस श्लोकों का मन्त्र-युक्त प्रयोग यदि कोई भक्त छः मास तक अर्थात् १८० बार कर ले, तो उसे माँ सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त होगी। स्वप्न में या प्रत्यक्ष दर्शन भी मिल सकता है। प्रायः दस दिन करने के बाद यह अनुष्ठान करने में, विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अतः प्रति मास ‘कुमारी-पूजन अवश्य कर लिया करे।

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