August 7, 2019 | Leave a comment ॥ महाकालस्तुतिः ॥ ॥ ब्रह्मोवाच ॥ नमोऽस्त्वनन्तरूपाय नीलकण्ठ नमोऽस्तु ते । अविज्ञातस्वरूपाय कैवल्यायामृताय च ॥ १ ॥ नान्तं देवा विजानन्ति यस्य तस्मै नमो नमः । यं न वाचः प्रशंसन्ति नमस्तस्मै चिदात्मने ॥ २ ॥ योगिनो यं हृदःकोशे प्रणिधानेन निशचलाः । ज्योतीरूपं प्रपश्यन्ति तस्मै श्रीब्रह्मणे नमः ॥ ३ ॥ कालात्पराय कालाय स्वेच्छया पुरुषाय च । गुणत्रयस्वरूपाय नमः प्रकृतिरूपिणे ॥ ४ ॥ विष्णवे सत्त्वरूपाय रजोरूपाय वेधसे । तमोरूपाय रुद्राय स्थितिसर्गान्तकारिणे ॥ ५ ॥ नमो नमः स्वरूपाय पञ्चबुद्धीन्द्रियात्मने । क्षित्यादिपञ्चरूपाय नमस्ते विषयात्मने ॥ ६ ॥ नमो ब्रह्माण्डरूपाय तदन्तर्व्तिने नमः । अर्वाचीनपराचीनविश्वरूपाय ते नमः ॥ ७ ॥ अचिन्त्यनित्यरूपाय सदसत्पतये नमः । नमस्ते भक्तकृपया स्वेच्छाविष्कृतविग्रह ॥ ८ ॥ तव निःश्वसितं वेदास्तव वेदोऽखिलं जगत् । विश्वभूतानि ते पादः शिरो द्यौः समवर्तत ॥ ९ ॥ नाभ्या आसीदन्तरिक्षं लोमानि च वनस्पतिः । चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यस्तव प्रभो ॥ १० ॥ त्वमेव सर्व त्वयि देव सर्वं सर्वस्तुतिस्तव्य इह त्वमेव । ईश त्वया वास्यमिदं हि सर्वं नमोऽस्तु भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥ ११ ॥ ॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे ब्रह्मखण्डे महाकालस्तुतिः सम्पूर्णा ॥ ब्रह्माजी बोले-हे नीलकण्ठ! आपके अनन्त रूप हैं, आपको बार-बार नमस्कार है । आपके स्वरूपका यथावत् ज्ञान किसीको नहीं है, आप कैवल्य एवं अमृतस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ॥ १ ॥ जिनका अन्त देवता नहीं जानते, उन भगवान शिवको नमस्कार है, नमस्कार है । जिनकी प्रशंसा (गुणगान) करनेमें वाणी असमर्थ है, उन चिदात्मा शिवको नमस्कार है ॥ २ ॥ योगी समाधिमें निश्चल होकर अपने हृदयकमलके कोषमें जिनके ज्योतिर्मय स्वरूपका दर्शन करते हैं, उन श्रीब्रह्मको नमस्कार है ॥ ३ ॥ जो कालसे परे, कालस्वरूप, स्वेच्छासे पुरुषरूप धारण करनेवाले, त्रिगुणस्वरूप तथा प्रकृतिरूप हैं, उन भगवान शंकरको नमस्कार है ॥ ४ ॥ हे जगत् की स्थिति, उत्पत्ति और संहार करनेवाले, सत्त्वस्वरूप विष्णु, रजोरूप ब्रह्मा और तमोरूप रुद्र ! आपको नमस्कार है ॥ ५ ॥ बुद्धि, इन्द्रियरूप तथा पृथ्वी आदि पंचभूत और शब्द-स्पर्शादि पंच विषयस्वरूप! आपको बार-बार नमस्कार है ॥ ६ ॥ जो ब्रह्माण्डस्वरूप हैं और ब्रह्माण्डके अन्तः प्रविष्ट हैं तथा जो अर्वाचीन भी हैं और प्राचीन भी हैं एवं सर्वस्वरूप हैं, उन्हें नमस्कार है, नमस्कार है ॥ ७ ॥ अचिन्त्य और नित्य स्वरूपवाले तथा सत्-असत्के स्वामिन्! आपको नमस्कार है । हे भक्तोंके ऊपर कृपा करनेके लिये स्वेच्छासे सगुण स्वरूप धारण करनेवाले! आपको नमस्कार है ॥ ८ ॥ हे प्रभो! वेद आपके निःश्वास हैं, सम्पूर्ण जगत् आपका स्वरूप है । विश्वके समस्त प्राणी आपके चरणरूप हैं, आकाश आपका सिर है ॥ ९ ॥ हे नाथ! आपकी नाभिसे अन्तरिक्षकी स्थिति है, आपके लोम वनस्पति हैं । भगवन्! आपके मनसे चन्द्रमा और नेत्रोंसे सूर्यकी उत्पत्ति हुई है ॥ १० ॥ हे देव! आप ही सब कुछ हैं, आपमें ही सबकी स्थिति है । इस लोकमें सब प्रकारको स्तुतियोंके द्वारा स्तवन करनेयोग्य आप ही हैं । हे ईश्वर! आपके द्वारा यह सम्पूर्ण विश्वप्रपंच व्याप्त है, आपको पुनः-पुनः नमस्कार है ॥ ११ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दमहापुराणके ब्रह्मखण्डमें महाकालस्तुति सम्पूर्ण हुई ॥ Related