August 11, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ महाशास्ता (हरिहरपुत्र) मंत्र प्रयोगः ॥ जिस तरह वास्तुपुरुष की उत्पति अंधकदैत्य व शिव के बीच युद्ध समय में दोनों के पसीने की बूंदे भूमि पर गिरी उससे हुई इसी तरह किसी अन्यप्रकरण में यह हरि एवं हर का मानस है पुत्र एवं इसकी गणना विशेष शिवगणों में की जाती है । अय्यप्पा स्वामी मोहिनी रूपी विष्णु एवं शिव की सन्तान हैं जिन्हें महाशास्ता भी कहा जाता है । वै नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं । इसका प्रयोग शत्रुनाश व पुत्र लाभ हेतु तथा साधना के विघ्नों को दूर करने हेतु किया जाता हैं । Mahashasta (१) पुत्रलाभार्थ मंत्र – “ॐ ह्रीं हरिहरपुत्राय पुत्र लाभाय शत्रुनाशाय मदगजवाहनाय महाशास्ताय नमः ।” विनियोगः- ॐ अस्य श्री महाशास्ता मंत्रस्य अर्द्धनारीश्वर ऋषिः । अनुष्टुप् छंदः महाशास्तादेवता, हृीं बीजं, श्रीं शक्तिः । इष्टार्थं सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । षडङ्गन्यासः करन्यासः अङ्गन्यासः ह्रीं हरिहरपुत्राय अंगुष्ठाभ्यां नमः । हृदयाय नमः । पुत्रलाभाय तर्जनीभ्यां नमः । शिरसे स्वाहा । शत्रुनाशाय मध्यमाभ्यां नमः । शिखायै वषट् । मदगजवाहनाय अनामिकाभ्यां नमः । कवचाय हुं । महाशास्ताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । नेत्रत्रयाय वौषट् । नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अस्त्राय फट् । ध्यानम् आश्यामकोमल विशाल विचित्रितंतु वासोवसानमहणोत्पल दान हस्तम् । उत्तुङ्ग- रक्तमुकुटं कुटिलार्द्रकेशं शास्तारमिष्ट वरदं शरणं प्रपद्ये ॥ पुत्रलाभ हेतु मृत्तिका मूर्ति बनाकर पूजा करे मोदक व पक्वान्न का भोग लगाये, पंचमेवा चढावे । सवालक्ष जप से पुरश्चरण करे । पलाश समिद् से होम करे । खीरान्न घृत युक्त तिलादि से हवन करें । (२) अरिष्ट एवं विध्ननाश हेतु – इस मंत्र प्रयोग में ‘शास्ता’ को अश्वारूढ बताया है । शास्तारं मृगयाश्रान्तं अश्वारूढं गणवृत्तं । पानीयार्थं वनादेत्य शास्त्रे ते रैवते नमः ॥ इस मंत्र का उल्लेख प्राचीन मंत्रमहोदधि में है वर्तमान प्रचलित पुस्तकों में नहीं हैं । मंत्र में ‘मृगया श्रान्तमश्वारूढं’ हैं । शास्ता से अर्थ शासन करने वाले से होता है । भावार्थ – पालन करने हेतु वन से प्रकट हुये तेजोमय रूप अश्वारूढ गणों से वेष्टित दुष्टो के संहार से परिश्रत सुदृढ शासन करने वाले हे महाशास्ते आपको नमस्कार है । विनियोगः- ॐ अस्य श्री महाशास्ता मंत्रस्य रैवत ऋषिः, पंक्ति छंदः, महाशास्ता देवता, सर्वाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः । करन्यास हेतु ८-८ अक्षरों से अंगुष्ठ से अनामिका तक न्यास करें । इसके बाद मूलमंत्र (कनिष्ठा का नहीं करें) करतल न्यास करें । अङ्गन्यास हेतु भी ८-८ अक्षरों से शिर से कवचन्यास तक करे फिर नेत्र न्यास को छोड़कर पुनः मूलमंत्र से अस्त्रन्यास करे । ध्यानम् – साध्यं स्वपाशेन विवन्ध्यगाढंनिपातयन्तुं खलु साधकस्य । पादाब्जयोर्दण्डधरं त्रिनेत्रं शास्तारमभीष्ट सिद्ध्यै ॥ पुरश्चरण में एक लाख जप कर तिलों से दशांश होम करे । पलाश व विल्व समिध से होम करे । ऑदुम्बर समिध भी उपयुक्त है । शास्तागायत्री – ॐ भूताधिपाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नः शास्ता प्रचोदयात् ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe