॥ मृत्युञ्जय मन्त्र – अन्य मन्त्र ॥

नवाक्षरी मृत्युञ्जय – ॐ जूं सः पालय पालय ।

दशाक्षरीमृत्युञ्जय मन्त्र – ॐ जूं सः मां पालय पालय ।
(किसी अन्य के लिये ‘मां’ के स्थान पर रोगी का नाम द्वितीया विभक्ति का एक वचन बनाकर जोड़ देना चाहिये)

द्वादशाक्षरीमृत्युञ्जय मन्त्रः – ॐ जूं सः पालय पालय सः जू ॐ । इन सभी मंत्रों के ऋष्यादि त्र्यक्षरी मन्त्र के समान है।

अन्य साध्य प्रयोग मन्त्र –
ॐ हौं जूं सः ( अमुकं ) जीवय-जीवय पालय-पालय सः जूं हौं ॐ ॥

॥ पौराणिक मृत्युञ्जय मन्त्र ॥
ॐ मृत्युञ्जय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम् ।
जन्ममृत्युजराव्याधिपीड़ितं कर्मबन्धनैः ॥

॥ द्वात्रिंशदक्षर त्र्यम्बक मन्त्र प्रयोगः ॥
(आयु एवं पुष्टिकर्ता) मन्त्रोयथा –
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

द्वितीयप्रकाराः –
(पतिसुख प्राप्ति में बाधा निवृत्ति हेतु) जिन कन्याओं का विवाह नहीं हो पा रहा है अथवा पति से किसी विवाद के कारण मातापिता के घर रह रही है वे इस द्वितीय मन्त्र का जाप कर लाजा होम मधुत्रय से करे तो वाञ्छित पति को प्राप्त करें ।
मन्त्रो यथा –
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पतिवेदनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुतः ॥

अर्थात् हे त्र्यम्बक ! शिव आपका पूजन यजन करते हैं, जो कन्यायें विवाह नहीं होने के कारण या अन्य विवाद के कारण पतिवेदना से पीड़ित है वे वाञ्छित वर एवं उच्चकुल में उत्पन्न पुष्ट सुगंधित (यशवान) पति को प्राप्त कर माता-पिता के बंधन से मुक्त हो जाये जैसे पका हुआ खरबूजा बेल से अलग हो जाता है ।

विलोमाक्षर त्र्यम्बक मंत्रः –
ॐ त्त्तामृमायक्षीर्मुत्योमृ न् नान्धब वमिकरुर्वाउ ।
म्नर्धव ष्टिपुन्धिंगंसु हेमजाय कंम्बयत्र् ॥

इसके आगे-पीछे लोम विलोम ॐ कार व्याहृति आदि बीजों को लगाकर भी जप किया जा सकता है ।
तांत्रिक विधानों में मन्त्रो में विशेष चैतन्यता लाने के विविध उपाय है उनमें विलोम मन्त्र का जाप भी है । जिस प्रकार सीढ़ियों द्वारा छत के ऊपर पहुँच गये परन्तु नीचे आने के लिये पुन: छत से नीचे (विलोम क्रम) आना पड़ेगा इससे ऊपर नीचे के धरातल से पूर्ण सामञ्जस्य होगा । इसे पूर्ण एक आवृत्ति कहते है ।
जिस तरह कुण्ड़लनी शक्ति को मूलाधार चक्र से उठाकर सहस्रार में ले जाकर पुनः सहस्रार से मूलाधार चक्र में लाना इस तरह आवृत्ति क्रम हुआ इस तरह बार-बार अभ्यास करना ही पूर्ण योगाभ्यास साधना है । ऐसा ही क्रम मन्त्र साधना में है । इस तरह त्र्यम्बक मन्त्र के निम्न भेद हुये –
१. ३२ अक्षर के मंत्र का लोम पाठ किया जाय ।
२. ३२ अक्षर के विलोमाक्षर मंत्र का जप किया जाय ।
अक्षर सः विलोम करने में बाधा आती है तो विलोम के अन्य साधारण प्रयोग इस प्रकार है –
१. पहले नीचे की पंक्ति उसके बाद उपर वाली पंक्ति पढ़ें ।
२. विलोम पाद क्रम से । मन्त्र ३२ अक्षर का है । इससे ८-८ अक्षर का एकएक पद हुआ । अतः चतुर्थ, तृतीय, द्वितीय एवं चरण को पढ़ने से पाद विलोम क्रम हुआ । मंत्र यथा –
ॐ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् उर्वारुकमिव बन्धनात् ।
सुगंधिं पुष्टिवर्धनं त्र्यम्बकं यजामहे ॥

३. लोम मन्त्र उसके बाद विलोम मन्त्र सहित पढ़ने से ६४ अक्षर से १ आवृत्ति हुई ।
४. लोम मन्त्र उसके बाद विलोम मन्त्र पश्चात् पुनः लोम मन्त्र सहित ९६ अक्षर पढ़ने पर एक आवृत्ति होगी ।

 

 

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