May 25, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ युगलसरकार-प्रार्थना ॥ सारसागरानाथौ पुत्रमित्रगृहाकुलात् । गोप्तारौ मे युवामेव प्रपन्नभयभञ्जनौ ॥ योऽहं ममास्ति यत्किञ्चिदिह लोके परत्र च । तत् सर्वं भवतोरद्य चरणेषु समर्पितम् ॥ अहमस्म्यपराधानामालयस्त्यक्तसाधनः । अगतिश्च ततो नाथौ भवन्तावेव मे गतिः ॥ तवास्मि राधिकाकान्त कर्मणा मनसा गिरा । कृष्णकान्ते तवैवास्मि युवामेव गतिर्मम ॥ शरणं वां प्रपन्नोऽस्मि करुणानिकराकरौ । प्रसादं कुरुतं दास्यं मयि दुष्टेऽपराधिनि ॥ इत्येवं जपता नित्यं स्थातव्यं पद्यपञ्चकम् । अचिरादेव तद्दास्यमिच्छता मुनिसत्तम ॥ श्रीलाड़िलीजी एवं लालजी ! आप दोनों शरणागतवत्सल हैं । आप ही हमारे स्वामी एवं रक्षक हैं । पुत्र, मित्र, गृह आदि के बखेड़ों से भरे संसार-सागर से आप ही हमें बचा सकते हैं । इस लोक में अथवा परलोक में जो कुछ मेरा है और जो कुछ मैं हूँ, आप दोनों के श्रीचरणकमलों में समर्पित है । मैं अपराधों का खजाना हूँ ।सारे साधन मैंने छोड़ दिये हैं । मेरी स्वामिनी और स्वामी ! मुझ निरुपाय को एकमात्र आप दोनों का ही सहारा है । श्रीराधारमण ! मैं कर्म, मन और वाणी से आपका हूँ । श्रीकृष्णप्राणाधिके राधिके ! मैं आपका ही हूँ । बस, केवल आप दोनों ही हमारे आश्रय हैं । हे करुणामय ! मैं आप दोनों की शरण आया हूँ । यद्यपि मैं दुष्ट और अपराधी हूँ, फिर भी आप कृपा करके मुझे यह वरदान दीजिये कि मैं निरन्तर आपकी सेवामें संलग्न रहूँ । भगवान् शंकर कहते है – देवर्षि नारद ! जो शीघ्र-से-शीघ्र श्रीयुगलसरकार की सेवा के लिये लालायित हों, उन्हें नित्य प्रति उपर्युक्त पञ्चपद्यात्मिका प्रार्थना करते रहना चाहिये । [ पद्मपुराण] Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe