September 28, 2015 | aspundir | Leave a comment रामकथा साहित्य का पर्यवेक्षण रामयुग के सम्बन्ध में जानकारी का आधिकारिक स्रोत यद्यपि “वाल्मीकि रामायण” है, तथापि रामकथा का वर्णन न केवल संस्कृत साहित्य, वरन् भारत की अन्य भाषाओं के साहित्य में भी हुआ है, साथ ही अन्य देशों में भी रामकथा का प्रचलन मिलता है । संस्कृत में रामकथा यद्यपि राम का उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मण्डल के अनुवाक 86 में मन्त्र रामायण प्रकरण में भी मिलता है । ‘श्रीरामतापनी उपनिषद’ में भी राम का वर्णन है, परन्तु रामकथा का विशद् वर्णन पद्मपुराण, ब्रह्मपुराण, श्रीमद्-भागवतपुराण आदि पुराणों के साथ-साथ महाभारत के वनपर्व में भी मिलता है । इसके अलावा संस्कृत साहित्य में रामकथा पर आधारित अनेक ग्रन्थों की रचना हुई है । कृष्णामाचार्य ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर’ में ऐसे 54 महाकाव्यों की सूची दी है, जो रामकथा पर आश्रित हैं । इसी प्रकार उन्होंने रामकथा पर आधारित अनेक रुपकों एवं चम्पू साहित्य का भी उल्लेख किया है । कालिदास कृत रघुवंश, भट्टि कृत रावणवध, अभिनन्द कृत रामचरित, क्षेमेन्द्र कृत रामायण मंजरी, माधव भट्ट कृत राघव पाण्डवीय, रघुनाथ कृत रामायणसार, कुमारदास कृत जानकी हरण, धीरनाभ कृत कुन्दमाला, राजशेखर कृत बालरामायण, शक्तिभद्र कृत आश्चर्य चूड़ामणि, मुरारी कृत अनर्घराघव, दामोदरमिश्र कृत महानाटक, जयदेव कृत प्रसन्न राघव, रामभद्र कृत जानकी परिणय, महादेव कृत अद्भुत दर्पण, भोज कृत रामायण चम्पू, अनन्ताचार्य कृत चम्पूराघव, दिवाकर कृत अमोघ राघव इत्यादि उल्लेखनीय है । संस्कृत साहित्य में उपर्युक्त की तुलना में निम्नलिखित का रामकथा के वर्णन के सम्बन्ध में निशेष महत्त्व हैः- १॰ योगवशिष्ठः- इसे ‘वासिष्ठ रामायण’, ‘आर्ष रामायण’, ‘ज्ञान-वासिष्ठ’, ‘महारामायण’ इत्यादि नामों से जाना जाता है । महर्षि वसिष्ठ द्वारा रचित होने के कारण इसे उपर्युक्त नामों से जाना जाता है । इसमें ‘वाल्मीकि रामायण’ से अधिक श्लोक होने के कारण इसे ‘महारामायण’ की संज्ञा मिली है । इसमें महर्षि वसिष्ठ के आध्यात्मिक एवं दार्शनिक उपदेश हैं । इसमें 27687 श्लोक तथा 6 प्रकरण हैं । डॉ॰ बी॰एल॰ आत्रेय के अनुसार इसका रचनाकाल सातवीं शताब्दी है । २॰ अध्यात्म रामायणः- रामानन्द सम्प्रदाय में अध्यात्म रामायण का विशेष महत्त्व है । इसे वेदव्यास रचित माना जाता है, क्योंकि यह ब्रह्माण्डपुराण का एक भाग माना जाता है । कतिपय विद्वानों के अनुसार इसकी रचना रामानन्द जी ने की थी । वस्तुतः निश्चयात्मक रुप से इसके रचयिता के बारे में कहा नहीं जा सकता । रचनाकाल भी अस्पष्ट है । इसे 16वीं शताब्दी से पूर्व का ग्रन्थ माना जाता है । तुलसीकृत रामचरितमानस तथा एकनाथ की मराठी रामायण पर इसका विशेष प्रभाव है । इसमें रामकथा का उल्लेख मिलता है । कई स्थानों पर यह कथा वाल्मीकि रामायण से भिन्न है । ३॰ अद्भुत रामायणः- रामकथा के अद्भुत प्रसंगों के कारण यह रामायण ‘अद्भूत रामायण’ के नाम से लोकविश्रुत है । इसमें सीताजी को मन्दोदरी की पुत्री, सीता के द्वारा कालीरुप धारण कर विश्रवा मुनि के पुत्र सहस्रस्कन्ध रावण का पुष्कर में वध करना जैसे प्रसंग दिए गए हैं । ४॰ आनन्द रामायणः- आनन्द रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि को माना गया है, परन्तु यह ‘अध्यात्मरामायण’ के उपरान्त लिखी गई है, क्योंकि इस पर अध्यात्मरामायण का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । इसमें 12252 श्लोक हैं और यह 9 काण्डों में विभक्त है । ५॰ तत्त्वसंग्रह रामायणः- इस रामायण की रचना 17वीं शताब्दी मे ब्रह्मानन्द ने की थी । ब्र्हमानन्द ने ‘रामायण तत्त्वदर्पण’ नामक ग्रन्थ भी लिखा है । ६॰ भुशुण्डी रामायणः- इसे आदिरामायण, महारामायण आदि भी कहा जाता है । इस पर श्रीमद्-भागवत् की कृष्ण कथा का प्रभाव परिलक्षित होता है । ७॰ मन्त्र रामायणः- इसके रचनाकार नीलकंठ हैं । नीलकंठ ने मन्त्र भागवत की भी रचना की है । ८॰ रामविजयः- रामविजय की रचना 1800 ई॰ के लगभग रघुनाथ उपाध्याय ने की थी । ९॰ रामलिंगामृतः- 18 सर्गों में विभक्त इस ग्रन्थ की रचना 1608 ई॰ में काशी में अद्वैत ने की थी । १०॰ राघवोल्लासः- इसकी रचना काशी ही में अद्वैत नामक सन्यासी ने की थी । ११॰ उदारराघवः- इसकी रचना 14वीं शताब्दी के मध्य में साकल्यमल्ल (मल्लाचार्य) ने की थी । १२॰ श्रीरामकर्णामृतम्- इसकी रचना शंकर भगवत् पाद ने की है । इसमें चार आश्वास एवं 452 श्लोक हैं । जैन साहित्य में रामकथा जैन साहित्य में भी रामकथा का वर्णन मिलता है । ऐसे प्रमुख जैन-ग्रन्थ निम्नानुसार हैं – १॰ पउमचरियः- पउमचरिय प्राकृत भाषा का ग्रन्थ है । इसकी रचना विमलसूरि ने 60 ई॰ के लगभग की थी । २॰ पद्मचरित (पद्मपुराण) – यह संस्कृत भाषा में रचित है । इसकी रचना रविषेण ने 577 में की थी । ३॰ त्रिषष्टिलक्षण महापुराणः- इसमें 63 शलाका पुरुषों का जीवन वृत्त दिया गया है । इसके दो भाग हैं । आदिपुराण और उत्तरपुराण । आदिपुराण की रचना जिनसेन ने की थी तथा उत्तरपुराण की रचना जिनसेन के शिष्य गुणभद्र ने की थी । यह ग्रन्थ नवीं शताब्दी का है । ४॰ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित तथा सीतारावणकथानकम्- इन दोनों ग्रन्थों की रचना हेमचन्द्र ने की थी । इनमें भी रामकथा का उल्लेख मिलता है । ५॰ रामदेवपुराणः- इसकी रचना 15 वीं शताब्दी में जिनदास ने की थी, इसे ‘जिनदास रामायण’ भी कहा जाता है । बोद्धग्रन्थों में रामकथा बोद्धग्रन्थों में रामकथा का उल्लेख हुआ है । इनमें सर्वप्रमुख दशरथ जातक नामक ग्रन्थ है । अन्य भाषाओं में रामकथा १॰ रामचरितमानसः- इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास ने 1580 ई॰ में अयोध्या में अवधि-बृज मिश्रित हिन्दी भाषा में की थी । इसमें 7 काण्ड, 9009 चौपाइयाँ, 1142 दोहे, 88 सोरठे, 182 छन्द, 35 श्लोक हैं । उत्तर-भारत में रामचरितमानस वाल्मीकि कृत रामायण से भी अधिक लोकप्रिय है । २॰ प्रेमरामायणः- प्रेमरामायण रामचरितमानस पर पद्यात्मक संस्कृत टीका है । इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य रामू द्विवेदी ने की थी । इसका दूसरा नाम ‘बुध-बोधिनी’ है । ३॰ भावार्थ रामायणः- इस रामायण की रचना मराठी भाषा में संत शिरोमणि एकनाथ जी ने की थी । महाराष्ट्र में भावार्थ रामायण को वही सम्मान प्राप्त है, जो उत्तर भारत में तुलसी कृत रामचरितमानस को है । मराठी साहित्य में रामदासजी का साहित्य भी रामकथा पर आधारित है । उनके ग्रन्थ दासबोध। आत्माराम इत्यादि में रामकथा का वर्णन मिलता है । इनके अतिरिक्त मोरोपंत कृत अष्टोत्तरशतरामायण। श्रीधर कृत रामविजय, रामदास कृत लघुरामायण इत्यादि भी उल्लेखनीय है । ४॰ विलंकारामायणः- विलंकारामायण उड़िया भाषा में रचित है । इसकी रचना शारलादास ने 15वीं शताब्दी में की थी । इसमें रावण से बलवान् विलंकेश का उल्लेख भी मिलता है । ५॰ जगमोहनरामायणः- जगमोहनरामायण उड़िया भाषा की रामायण है । इसकी रचना बलरामदास ने की थी । ६॰ विचित्र रामायणः- विचित्र रामायण की रचना उड़िया भाषा में विश्वान खुंटिया ने की है । उड़िया भाषा में उपर्युक्त रामायणों के अतिरिक्त चिकिटि राकेन्द्र कृत ‘चिकिटि रामायण’ पीताम्बर कृत ‘दाण्डी रामायण’, श्रीकृष्णचन्द्र पट्टनायक कृत ‘रामायण’ इत्यादि भी उल्लेखनीय है । ७॰ कृत्तिवास रामायणः- यह रामायण बांग्ला भाषा में है । इसकी रचना महाकवि कृत्तिवास ने 15वीं शताब्दी में की थी । ८॰ रंगनाथ रामायणः- इस रामायण की रचना तेलगु भाषा में सन् 1380 में गोलबुद्धराज ने की थी । ९॰ रामावतार चरितः- इसे प्रकाश रामायण या तकनीकी रामायण भी कहा जाता है । इसकी रचना दिवाकर प्रकाश भट्ट ने 19वीं शताब्दी में की थी । यह कश्मीरी भाषा में रामकथा पर आधारित साहित्य में विष्णुप्रताप रामायण, शंकर रामायण, आनन्द रामावतार चरित, शर्मा रामायण, ताराचन्द रामायण, अमर रामायण, रामगीता इत्यादि भी उल्लेखनीय है । १०॰ कम्ब रामायणः- तमिल के प्रसिद्ध कम्बन ने तमिल भाषा में कम्ब रामायण की रचना 12वीं शताब्दी में की थी । इसे रामावतारम् भी कहा जाता है । इसमें छह काण्ड हैं । उत्तरकाण्ड नहीं है । काण्डों को पटल में विभक्त किया गया है । ११॰ तोरवे रामायणः- कन्नड़ भाषा की तोरवे रामायण का प्रणयन महाकवि बत्तलेश्वर ने तोरवे गाँव में की थी । इनका समय 15वीं-16वीं शताब्दी माना जाता है । इसमें लगभग 5000 पद्य हैं । दक्षिण भारत में तोरवे रामायण का प्रचलन सर्वाधिक है । १२॰ असमिया रामायणः- 14वीं शताब्दी से 16 शताब्दी के मध्य माधव कंदली ने असमिया भाषा में रामायण की रचना की थी । असमिया भाषा में माधव कंदली कृत रामायण के अलावा अनन्त कंदली कृत रामायण, दुर्गावर कृत गीति रामायण, अनन्त ठाकुर कृत कीर्तनिया रामायण, रघुनाथ महंत कृत अद्भुत रामायण, रघुनाथ महंत कृत शत्रुंजय रामायण, असमिया कृत्तिवास कृत अंगद रामायण इत्यादि रामकथा साहित्य भी उल्लेखनीय है । १३॰ गोविन्द रामायणः- सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने ‘दशम ग्रन्थ’ में 24 अवतारों की कथा का सुन्दर काव्यात्मक वर्णन किया है । भगवान् राम का जीवन चरित दशमेश पिता ने ‘रामावतार’ शीर्षक से हिन्दी जगत् को प्रदान किया, जिसे कतिपय विद्वानों ने गोविन्द रामायण भी कहा है । १४॰ राजस्थानी भाषा में रामकथाः- राजस्तानी भाषा में रामकथा पर आधारित साहित्य का प्रणयन प्रचुर मात्रा में हुआ है । जाम्भोजी परम्परा के कवि मेंह ने 1518 ई॰ में 261 छन्दों वाली ‘मेंह रामायण’ की रचना की थी । ईसरदास बारहठ ने 16वीं शताब्दी में रामकथा पर आधारित गुण हरिरस नामक ग्रन्थ निर्मित किया । इसी प्रकार सुन्दरदास ने रामचरित, कृष्णा आढ़ा ने रघुवर जस प्रकाश, माधोदास ने राममंगल एवं रामरक्षा, रामचरण ने रामप्रताप, करणीदान कविया ने सूरजप्रकाश, मंछाराम सेवग ने रघुनाथ रुपक इत्यादि ग्रन्थों की रचना की थी । १५॰ गिरधर रामायणः- गिरधर रामायण गुजराती भाषा की लोकप्रिय रामायण है । इसकी रचना कवि गिरधर ने की थी । इसके अतिरिक्त गुजराती साहित्य में भालण कृत रामचरित एवं रामबालचरित तथा उद्धव कृत उद्धवरामायण भी उल्लेखनीय है । सम्प्रदाय विशेषों में रामकथा आधारित साहित्य सम्प्रदाय विशेष में रामकथा पर आधारित साहित्य सृजन भारी मात्रा में क्षेत्रीय भाषाओं में हुआ है । इन सम्प्रदायों में रामनुज सम्प्रदाय, रामस्नेही सम्प्रदाय, स्वामी नारायण सम्प्रदाय उल्लेखनीय है । वैदेशिक रामकथा साहित्य चीन में 251 ई॰ में किंग कृत लिऊ तऊत्व, 472 ई॰ में त्वांग किंग कृत त्व पाओ तथा 7वीं शताब्दी के लंका सिंहा नामक ग्रन्थ रामकथा पर आधारित है । 9वीं शताब्दी में तुर्किस्तान में खोतानी रामायण का, 3री शताब्दी में तिब्बती रामायण का, 10वीं शताब्दी में मंगोलिया की रामकथा, 10वीं शताब्दी में जापान की रामकथा (साम्बो ऐ कोतोबा कृत) का प्रणयन हुआ था । जापान में ही 12वीं शताब्दी में हेबुत्सु ने नवीन रामकथा की रचना की थी । इंडोनेशिया में रामकथा साहित्य प्रणयन अधिक मात्रा में हुआ है । यहाँ 8वीं शताब्दी से ही इस प्रकार के साहित्य की रचना हुई है । हरिश्रय, रामपुराण, अर्जुनविजय, रामविजय, वीरतन्त्र, कपिपर्व, चरित्र रामायण, ककविन रामायण, जावी रामायण, मिसासुर रामकथा, केचक रामकथा इत्यादि ग्रन्थों का प्रणयन इंडोनेशिया में हुआ है । पड़ोसी देश थाइलैण्ड में रामकियेन, मलेशिया में 13वीं शताब्दी का हकायत श्रीराम और हकायत महाराज रावण नामक ग्रन्थों का प्रणयन हुआ है । लंका में भी जानकी हरण नामक लुंकापति कुमारदास ग्रन्थ की रचना हुई है । इसका रचनाकाल कालिदास के समकालीन माना जाता है । म्यांमार में भी रामकथा साहित्य का प्रचलन दिखाई देता है । यहाँ के उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं – रामवस्तु, महाराम, राम तोन्मयो, रामताज्यी, रामयग्रान, पोन्तवराम इत्यादि । Related