September 1, 2015 | aspundir | Leave a comment वर्ष-गाँठ (जन्म-दिन) कैसे मनाएँ ? (१) आत्म-शोधनः- प्रातःकाल स्नान आदि करके नवीन वस्त्र धारण करे। पूजा-स्थान में अपने सम्मुख पहले से स्थापित ‘पञ्च-पात्र’ के जल में, निम्न मन्त्र से ‘अंकुश-मुद्रा’ द्वारा ‘सूर्य-मण्डल’ से तीर्थों का आवाहन करे- ॐ गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वति ! नर्मदे सिन्धु कावेरि ! जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।। फिर ‘पञ्च-पात्र’ से बाँएँ हाथ की हथेली में जल लेकर निम्न-लिखित मन्त्र पढते हुए, उस जल को दाएँ हाथ की मध्यमा-अनामिका अँगुलियों से अपने ऊपर छिडके- ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं, स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। (२) आचमनः- ‘आत्म-शोधन’ करने के बाद ‘पञ्च-पात्र’ से पुनः दाएँ हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करे- १॰ ॐ आत्म-तत्त्वं शोधयामि स्वाहा। २॰ ॐ विद्या-तत्त्वं शोधयामि स्वाहा। ३॰ ॐ शिव-तत्त्वं शोधयामि स्वाहा। इस प्रकार तीन बार आचमन करने के बाद दाहिने हाथ की जूठी हथेली को स्वच्छ करे। (३) संकल्पः- ‘आचमन’ करने के बाद पुनः ‘पञ्च-पात्र’ से दाएँ हाथ में जल, अक्षत, पुष्प आदि लेकर ‘संकल्प’ पढ़े- ॐ तत्सत् अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय-प्रहरार्द्धे श्वेत-वराह-कल्पे, जम्बू-द्वीपे, भरत-खण्डे, अमुक-प्रदेशे, अमुक-पुण्य-क्षेत्रे, कलि-युगे, कलि-प्रथम-चरणे, अमुक-सम्वत्सरे, अमुक-मासे, अमुक-पक्षे, अमुक-तिथी, अमुक-वासरे, अमुक-गोत्रोत्पन्नो, अमुक-नाम-शर्मा-वर्मा-दासोऽहं, शुभ-वर्ष-वृद्धौ, सकल-मंगल-सम्वलित-दीर्घायुष्य-कामो, मार्कण्डेयादि-पूजनं करिष्ये। यह कहकर जल-अक्षत-पुष्प आदि अपने सम्मुख छोड़ दे। (४) कलश-स्थापना, गणेश, वरुण, षोडश मातृकाओं एवं नव-ग्रह-पूजनः- ‘संकल्प’ करने के बाद यदि सम्भव हो, तो ‘स्वस्ति-पाठ-सहित कलश की स्थापना’ करे। भगवान् गणेश, वरुण, षोडश-मातृकाओं, नव-ग्रहों की पूजा करे। (५) चिरञ्जीवी मार्कण्डेय पूजनः- पहले दोनों हाथ जोड़ कर ‘चिरञ्जीवी मार्कण्डेय’ का ध्यान करे- द्वि-भुजं जटिलं सौम्यं, सु-वृद्धं चिर-जीविनम्। दण्डाक्षा-सूत्र-हस्तं च, मार्कण्डेयं विचिन्तयरे।। ध्यान करने के बाद पूजा करे- १॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि। २॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः शिरसि अर्घ्यं समर्पयामि। ३॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः गन्धाक्षतं समर्पयामि। ४॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः पुष्पं समर्पयामि। ५॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः धूपं समर्पयामि। ६॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः दीपं दर्शयामि, ७॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः नैवेद्यं समर्पयामि। ८॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः आचमनीयम् समर्पयामि। ९॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि। १०॰ ॐ मार्कण्डेयाय नमः दक्षिणां समर्पयामि। उक्त प्रकार पूजा करने के बाद चिरञ्जीवी मार्कण्डेय जी को निम्न-लिखित मन्त्र पढते हुए ‘पुष्पाञ्जलि’ प्रदान करे- ॐ आयु-प्रदं ! महा-भाग ! सोम-वंश-समुद्भवम् ! महा-तप ! मुनि-श्रेष्ठ ! मार्कण्डेय ! नमोऽस्तु ते।। इसके बाद दीर्घ आयु की प्राप्ति एवं सभी प्रकार के कष्टों के निवारण हेतु चिरञ्जीवी मार्कण्डेय जी से प्रार्थना करे। यथा- चिर-जीवी यथा त्वं भो ! भविष्यामो तथा मुने ! रुपवान् वित्वांश्चैव, श्रिया युक्तश्च सर्वदा।। मार्कण्डेय ! महा-भाग ! सप्त-कल्पान्त-जीविन ! आयुरिष्टार्थ- सिद्धयर्थमस्माकं वरदो भव।। (६) व्यास, परशुराम, अश्वथामा, कृपाचार्य, बलि, प्रह्लाद, हनुमान और विभीषण की पूजाः- इन सबका पूजन श्रीमार्कण्डेय-पूजा के समान अलग-अलग या एक साथ निम्न प्रकार करे- ॐ व्यास- परशुराम- अश्वथामा- कृपाचार्य- बलि- प्रह्लाद- हनुमान्- विभीषणेभ्यः इदं पाद्यं, एषोऽर्घ्यः, इदमाचनीयं, इदं स्नानीय-जलं, अयं गन्धः, इमेऽक्षताः, इमानी पुष्पाणि, एष धूपः, एष दीपः, इदं नैवेद्यं, इदं आचमनीयं, इदं ताम्बूलं, एषा दक्षिणा समर्पयामि। उक्त प्रकार सबका पूजन कर चुकने पर अन्त में कहे- एमिः गन्धाक्षत-पुष्पैः यथा-कृतार्चनेन ते सर्वे देवाः प्रीयन्तां सन्तुष्टा वरदाश्च भवन्तु। (७) षष्ठी-देवी की पूजाः- इसके बाद ‘ॐ षां षष्ठयै नमः’– इस मन्त्र से दधि और अक्षत द्वारा षष्ठी देवी की पूजा कर प्रार्थना करे। यथा- ॐ मातृ-भूताऽसि भूतानां, ब्रह्मणा निर्मिता पुरा। तन्मनाः पुत्र-वत् कृत्वा, पालयित्वा नमोऽस्तु ते।। प्रार्थना के बाद निम्न मन्त्र पढ़कर तिल-गुड़ मिलाकर दूध पिए- ॐ स-तिलं गुड-सम्मिश्रमञजल्यर्धमितं पयः। मार्कण्डेयाद् वरं लब्ध्वा, पिबाम्यायुर्विवृद्धये।। (८) अभिषेकः- अन्त में नीचे का मन्त्र पढ़कर पञ्च-पात्र से जल लेकर शिर पर अभिषेक करे- ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णोर्हस्ताभ्याम्। अश्विनोर्भैषज्येन तेजसे ब्रह्म-वर्चसायाभि-षिञ्चामि। (९) तिलकः- निम्न मन्त्र पढ़कर तिलक लगाए- ॐ युञ्जन्ति ब्रघ्न मरुषं चरन्तं परितस्थुषः रोचन्ते रोचना दिवि। तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य विश्वमाभासि रोचनम्।। रोचना द्वारा तिलक लग जाने पर माता-पिता, आचार्य आदि सभी गुरु-जनों के चरण-स्पर्श कर उन सबके शुभाशीष प्राप्त करने चाहिए। Related