January 20, 2016 | aspundir | Leave a comment विद्वेषण का सफल-तम मन्त्र यह प्रयोग दो घनिष्ठ प्रेमियों के मध्य शत्रुता उत्पन्न कराता है । शान्तिक-पौष्टिक कर्मो को छोडकर शेष सभी कर्म, तन्त्र में, ‘अभि-चार’-कर्मो की श्रेणी में आते हैं । ‘विद्वेषण’ भी अभिचार-कर्म होने के कारण निन्दनीय माना गया है क्योकि ये कर्म लोक-हित में नहीं, अपितु स्वार्थ-सिद्धि में उपयोग किए जाते हैं, किन्तु ये ही कर्म यदि लोक-हित-भावना के उद्देश्य से उपयोग में लाए जाएँ, तो प्रशंसनीय भी हैं । निंदनीय प्रयोग, जिसमें स्वयं का स्वार्थ हो, करनेवाले को किसी-न-किसी रुप में हानि भी अवश्य होती है, किन्तु यह भी स्पष्ट है कि आत्म-रक्षा की भावना से ऐसे प्रयोगो के करने मैं किसी भी प्रकार का दोष नहीं । मन्त्रः- “राई-राई तू है महा-माई, जारी है जखीरी छाई । अमुका-अमुक में होवे लड़ाई ।।” विधिः- होली, दीपावली अथवा ग्रहण-काल मे इस मन्त्र की ३१ मालाएं जप लें, मन्त्र सिद्ध हो जाएगा । जब प्रयोग करना हो, तो श्मशान में रात्रि में जाकर जलती हुई चिता पर राई में सरसों का तेल मिलाकर १०८ आहुतियाँ मन्त्र पढ़कर दें । अमुका – अमुक के स्थान पर उन दो व्यक्तियों के नाम लें, जिनमें विद्वेषण (लड़ाई) करानी है । Related