प्रचलित शाबर मन्त्र
विषैले जन्तुओं का विष-निवारण
(क) “एरई हाविल हासी बहु-सर रहीम ।।”
विधि –
पीतल की थाली की पेन्दी पर उक्त मन्त्र एक पंक्ति मे पूरा लिखे । इसी तरह दूसरी और तीसरी पंक्ति में भी लिखे ।

पुन: ”जै गुरुदेव” कहकर यह थाली विष-ग्रस्त व्यक्ति की पीठ पर सटा दे । यदि शरीर में विष रहेगा, तो थाली चिपक जायगी, अन्यथा गिर जायगी । चिपकने पर थाली विष चूसना प्रारम्भ कर देगी और अधि-कांश विष चूसकर गिर जायगी । तब पुन: थाली को पूर्व-वत् अभि-मन्त्रित कर चिपका दे । यह क्रिया तीन बार करे । विष पूर्णत: समाप्त हो जायगा ।

(ख) “पर्वत ऊपर सुरही गाय । ओकरा गोबरे बिन्दुकी बिआय ।। बिच्छी चढ़े डाढ़े – डाढ़े, मन्त्र चले पाते-पाते । दुहाई अमा माई की, काली माई की ।।”
विधि —
मन्त्र पढ़ते हुए ‘दूब’ (घास) की एक चुटकी फुनगी (मुलायम पत्ती) तलहथी में लेकर उसमें चूना मिलाकर लुगदी बना ले और उसे बिच्छू से दंशित स्थान के नीचे जोड़ पर चिपका दे । विष उतर कर दूब तक आ जायगा । पुन: नई लुगदी बनाकर उसके नीचे के जोड़ पर चिपकाए । ऐसा बार – बार करे । विष समाप्त हो जायगा ।

(ग) “पर्वत ऊपर सोरही गाय । ओकरे खुरी बिच्छी बिआय ।। आठ काठ नौ पोर । बिच्छी उतरे पोरे-पोर ।। ईश्वर महादेव की दुहाई, बान तोहार ।।”
विधि –
उक्त मन्त्र पढ़कर डङ्क लगे हुए स्थान पर फूंक मारे ।

बाई-पीड़ा (वात-दर्द) निवारण मन्त्र
मन्त्रः- “बाई झारो पोरे – पोरे । बाई झारो जङ्ग से । बाई चले-हट ।”
विधि-
रोगी को जमीन पर बैठाकर उसके दोनों हाथ जमीन पर चिपका दे । अब उक्त मन्त्र पढ़ते हुए रोगी के दोनों हाथों के बीच से अपनी उँगली से आगे की ओर रेखा खींचे । रोगी का हाथ भी आगे की ओर सरकता जायगा । मन्त्र पढ़ते हुए रेखा खींचता रहे । ‘बाई’ वात-पीड़ा ठीक हो जायगी ।

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