व्यापार वृद्धि
१॰ व्यवसाय प्रारम्भ करने से पूर्व पत्नी या माता द्वारा यथासंभव भगवान की पूजा कराए, उसके पश्चात् पेड़े का प्रसाद बांटें तथा नौकरों को एक-एक रुपया बांटें। ऐसा नियमपूर्वक प्रत्येक शुक्रवार को करते रहें।
२॰ यदि ग्राहक कम आते हैं अथवा आते ही न हों तो यह अचूक प्रयोग करें। सोमवार को सफेद चन्दन को नीले डोरे में पिरो लें तथा २१ बार दुर्गा सप्तशती के निम्न मन्त्र से अभिमंत्रित करें-
“ॐ दुर्गे! स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।
दारिद्र्य-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या,
सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।।”

अब अभिमन्त्रित चंदन को पूजा स्थल पर स्थापित कर दें या कैश-बॉक्स में स्थापित कर दें।
३॰ व्यवसाय स्थल पर श्रीयंत्र का विशाल रंगीन चित्र लगा लें, जिससे सबको दर्शन होते रहें।
४॰ व्यवसाय को नजर-टोक लगी हो अथवा किसी ने तांत्रिक प्रयोग कर दिया हो तो U आकार में काले घोड़े की पुरानी नाल चौखट पर इस प्रकार लगा दें, जिससे सबकी नजर उस पर पड़े।
५॰ व्यवसाय स्थल पर प्रवेश करने से पूर्व अपना नासिका स्वर देखें-जिस नासिका से श्वास चल रहा हो, वही पाँव प्रथम अंदर रखें। यदि दाहिनी नासिका से श्वास चल रहा हो तो अत्यन्त शुभ रहता है।

न्यायालय में विजय
१॰ तीन साबुत काली मिर्च के दाने तथा थोड़ी-सी देसी शक्कर मुंह में चबाते हुए निकल जाएं (जिस दिन न्यायालय जाना हो) अनुकूलता रहेगी।
२॰ जिस नासिका से श्वास चल रहा हो, वही पाँव प्रथम बाहर रखें। यदि दाहिनी नासिका से श्वास चल रहा हो तो अत्यन्त शुभ रहता है।
३॰ गवाह मुकर रहा हो या जज विपरीत हो तो विधिपूर्वक हत्थाजोड़ी साथ ले जाने से चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न होता है।

रोग शान्ति
१॰ घर के सदस्यों की संख्या + घर आये अतिथियों की संख्या + दो-चार अतिरिक्त गुड़ की बनी मीठी रोटियां, प्रत्येक माह कुत्ते तथा कौए इत्यादि को खिलानी चाहिए। इससे साध्य तथा असाध्य दोनों ही प्रकार के रोगों की शांति होती है। यह रोटी तन्दूर या अग्नि पर ही बनाएं, तवे आदि पर नहीं।
२॰ प्रत्येक शनिवार को प्रातः पीपल को तीन बार स्पर्श करके शरीर पर हाथ फेरना तथा जल, कच्चा दूध तथा गुड़ (तीनों किसी लोटे में डाल कर) पीपल पर चढ़ाना भी लाभकारी होता है।
३॰ दवा आदि से रोग नियंत्रित न हो रहा हो तब-
शनिवार को सूर्यास्त के समय हनुमानजी के मन्दिर जाकर हनुमान जी को साष्टांग दण्डवत् करें तथा उनके चरणों का सिन्दूर घर ले आयें। तत्पश्चात् निम्न मंत्र से उस सिन्दूर को अभिमन्त्रित करें- “मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।”
अब उस सिन्दूर को रोगी के माथे पर लगा दें।
४॰ जो व्यक्ति प्रायः स्वस्थ रहता हो, जिसे कोई विशेष रोग न हुआ हो, उस व्यक्ति का वस्त्र रोगी को पहनाने से तुरन्त स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है।

दुर्घटना से रक्षा
१॰ वाहन में विधिवत् प्राण प्रतिष्ठित वाहन-दुर्घटना-नाशक “मारुति-यन्त्र” स्थापित करें।
२॰ जिस नासिका से स्वर चल रहा हो, थोड़ा-सा श्वास ऊपर खींचकर वही पांव सर्वप्रथम वाहन पर रखें।
३॰ वाहन पर बैठते समय सात बार इष्टदेव का स्मरण करते हुए स्टेयरिंग को स्पर्श करें तथा स्पर्शित हाथ माथे से लगाएं।
४॰ घर से निकलते समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करने चाहिए।
५॰ अपनी और अपने वाहन की सुरक्षा के लिए आठ छुहारे लाल कपड़े में बांधकर अपनी गाड़ी या जेब में रखें।
६॰ वाहन दुर्घटना के लिए एक सरलतम उपाय यह है कि घर से बाहर जाते समय श्रद्धापूर्वक बोलें कि “बजरंगा ले जायेगा ते बजरंगा ले आयेगा”

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