अध्यात्म परम्परा
१ ॐ गुरु जी प्रथमे उत्पत्ति आद्य शून्य, २ आद्य शून्य से अनादि शून्य, ३ अनादि शून्य से योगाशून्य, ४ योगाशून्य से महा-शून्य, ५ महा-शून्य से निरा शून्य, ६ निरा शून्य से आत्म-शून्य, ७ आत्म-शून्य से प्रमाल-शून्य, ८ प्रमाल-शून्य से चेतन-शून्य, ९ चेतन-शून्य से अजोड़ी शून्य, १० अजोड़ी शून्य से ओङ्कार, ११ ओङ्कार से निराकार, १२ निराकार से निरञ्जन, १३ निरञ्जन से निर्भय, १४ निर्भय से अविनाशी, १५ अविनाशी से अविगत, १६ अविगत से निरालम्ब, १७ निरालम्ब से निर्लेप, १८ निर्लेप से निराकार, १९ निराकार से निराधार, २० निराधार से निर्विकार, २१ निर्विकार से निर्विकल्प, २२ निर्विकल्प से प्रीवहन, २३ प्रीवहन से भ्रमन, २४ भ्रमन से मन, २५ मन से मन-कुण्ड सुऋषि, २६ मन-कुण्ड सुऋषि से मार्कण्डेय ऋषि, २७ मार्कण्डेय ऋषि से रोम ऋषि, २८ रोम ऋषि से धौम्य ऋषि, २९ धौम्य ऋषि से विमल ऋषि, ३० विमल ऋषि से दत्तात्रेय, ३१ दत्तात्रेय से पराशर, ३२ पराशर से सारासुर, ३३ सारासुर से भरद्वाज, ३४ भरद्वाज से गौतम ऋषि, ३५ गौतम ऋषि से गर्गाचार्य, ३६ गर्गाचार्य से जड़ भरत, ३७ जड़ भरत से जनक विदेह, ३८ जनक विदेह से शुकदेव ऋषि, ३९ शुकदेव ऋषि से केत ऋषि, ४० केत ऋषि से सवेत ऋषि, ४१ सवेत ऋषि से अहेन्या, ४२ अहेन्या से दुर्वासा ऋषि, ४३ दुर्वासा से वामदेव, ४४ वामदेव से कामदेव, ४५ कामदेव से कर्दम ऋषि, ४६ कर्दम ऋषि से कपिल ऋषि, ४७ कपिल ऋषि से अक्ष मुनि, ४८ अक्ष मुनि से वशिष्ठ मुनि, ४९ वशिष्ठ मुनि से हृषीकेश मुनि, ५० हृषीकेश मुनि से देवमुनि, ५१ देवमुनि से देवाचार्य, ५२ देवाचार्य से सन्मुखाचार्य, ५३ सन्मुखाचार्य से द्रोणाचार्य, ५४ द्रोणाचार्य से महा-आचार्य, ५५ महा-आचार्य से गौडाचार्य, ५६ गौडाचार्य से बालगोविन्दाचार्य, ५७ बालगोविन्दाचार्य से ५८ श्री महन्त शङ्कराचार्य (आदि-शङ्कराचार्य)

शंकराचार्य परम्परा
आद्यगुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म के कल्याणार्थ सम्पूर्ण भारत में पृथक्-पृथक् दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। ये मठ हैं-
१॰ वेदान्त ज्ञानमठ, श्रृंगेरी (दक्षिण भारत)
२॰ गोवर्धन मठ, जगन्नाथपुरी (पूर्वी भारत)
३॰ शारदा (कालिका) मठ, द्वारका (पश्चिम भारत)
४॰ ज्योतिर्पीठ, बद्रिकाश्रम (उत्तर भारत)
शंकराचार्य जी ने इन मठों की स्थापना के साथ-साथ उनके मठाधीशों की भी नियुक्ति की, जो बाद में स्वयं शंकराचार्य कहलाये। प्रत्येक मठ के शंकराचार्य से गुरु-शिष्य परम्परा विकसित हुई और उसी परम्परा से मठाधीश कालान्तर में नियुक्त होते गए। वे भी शंकराचार्य के नाम से जाने गए।
श्रृंगेरी मठ
श्रृंगेरी मठ भारत के दक्षिण भाग में रामेश्वरम् में स्थित है। इस मठ के अन्तर्गत संन्यासियों के सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय आते हैं। इस मठ का महावाक्य “अहं ब्रह्मास्मि” है तथा मठ के अन्तर्गत यजुर्वेद आता है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वर ही थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था। सर्वप्रथम शंकराचार्य जी ने इसी मठ की स्थापना की थी। वर्तमान में इस मठ पर भारती तीर्थस्वामी विराजमान हैं। श्रृंगेरी मठ की शंकराचार्य परम्परा क्रमानुसार निम्नलिखित हैः
१॰ आद्यगुरु शंकराचार्य, २॰ सुरेश्वराचार्य, ३॰ नित्यबोध धनाचार्य, ४॰ ज्ञानधनाचार्य, ५॰ ज्ञानोत्तमाचार्य, ६॰ ज्ञानगिर्याचार्य, ७॰ सिंह गिर्याचार्य, ८॰ ईश्वरतीर्थ, ९॰ नरसिंहतीर्थ, १०॰ विद्याशेखरतीर्थ, ११॰ भारतीकृष्णतीर्थ, १२॰ विद्यारण्य, १३॰ चन्द्रशेखर भारती-१, १४॰ नरसिंह भारती-१, १५॰ चन्द्रशेखर भारती-२, १६॰ पुरुषोत्तम भारती-१, १७॰ शंकरानन्द भारती, १८॰ चन्द्रशेखर भारती-३, १९॰ नरसिंह भारती-२, २०॰ पुरुषोत्तम भारती-२, २१॰ रामचन्द्र भारती, २२॰ नरसिंह भारती-३, २३॰ नरसिंह भारती-४, २४॰ अभिनव नरसिंह भारती-१, २५॰ सच्चिदानन्द भारती-१, २६॰ नरसिंह भारती-५, २७॰ सच्चिदानन्द भारती-२, २८॰ अभिनव सच्चिदानन्द भारती-१, २९॰ अभिनव नरसिंह भारती-२, ३०॰ सच्चिदानन्द भारती-३, ३१॰ अभिनव सच्चिदानन्द भारती-२, ३२॰ नरसिंह भारती-६, ३३॰ सच्चिदानन्द शिवाभिनव नरसिंह भारती, ३४॰ चन्द्रशेखर भारती-४, ३५॰ अभिनव विद्यातीर्थ, ३६॰ भारती कृष्णतीर्थ।

गोवर्धन मठ
गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में उड़ीसा राज्य के पुरी नगर में स्थित है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आद्य शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद हुए। इस मठ के अन्तर्गत आरण्य सम्प्रदाय को रखा गया। इसके अवलम्बन के लिए ऋग्वेद को प्रमुखता प्रदान की गई तथा “प्रज्ञानं ब्रह्म” नामक महावाक्य प्रदान किया है। श्रृंगेरी मठ के पश्चात् शंकराचार्य जी ने इस मठ की स्थापना की थी।
वर्तमान में श्री निश्चलानन्द जी इस मठ के मठाधीश हैः
१॰ पद्मपाद, २॰ शूलपाणि, ३॰ नारायण, ४॰ विद्यारण्य, ५॰ वामदेव, ६॰ पद्मनाभ, ७॰ जगन्नाथ, ८॰ मधुरेश्वर, ९॰ गोविन्द, १०॰ श्रीधर, ११॰ माधवानन्द, १२॰ कृष्णा ब्रह्मानन्द, १३॰ रामानन्द, १४॰ वागीश्वर, १५॰ परमेश्वर, १६॰ श्री गोपाल, १७॰ जनार्दन, १८॰ ज्ञानान्द, १९॰ वृहदारण्य, २०॰ महादेव, २१॰ परमब्रह्मानंद, २२॰ रामानंद, २३॰ सदाशिव, २४॰ हरीश्वरानंद, २५॰ बोधानन्द, २६॰ रामकृष्ण, २७॰ चिद्बोधात्म, २८॰ तत्त्वक्षवर, २९॰ शंकर, ३०॰ वासुदेव, ३१॰ हयग्रीव, ३२॰ स्मृतीश्वर, ३३॰ विद्यानंद, ३४॰ मुकुन्दानंद, ३५॰ हिरण्यगर्भ, ३६॰ नित्यानंद, ३७॰ शिवानंद, ३८॰ योगीश्वर, ३९॰ सुदर्शन, ४०॰ व्योमकेश, ४१॰ दामोदर, ४२॰ योगानंद, ४३॰ गोलकेश, ४४॰ कृष्णानंद, ४५॰ देवानंद, ४६॰ चंद्रचूड, ४७॰ हलायुध, ४८॰ सिद्धसेव्य, ४९॰ तारकात्मा, ५०॰ बोधायन, ५१॰ श्रीधर, ५२॰ नारायण, ५३॰ सदाशिव, ५५॰ विरुपाक्ष, ५६॰ विद्यारण्य, ५७॰ विशेश्वर, ५८॰ विबुधेश्वर, ५९॰ महेश्वर, ६०॰ मधुसूदन, ६१॰ रघूत्तम, ६२॰ रामचन्द्र, ६३॰ योगीन्द्र, ६४॰ महेश्वर, ६५॰ ओंकार, ६६॰ नारायण, ६७॰ जगन्नाथ, ६८॰ श्रीधर, ६९॰ रामचन्द्र, ७०॰ ताम्राक्ष, ७१॰ उग्रेश्वर, ७२॰ उद्दण्ड, ७३॰ सकर्षण, ७४॰ जनार्दन, ७५॰ अखण्डात्मा, ७६॰ दामोदर, ७७॰ शिवानंद, ७८॰ गदाधर, ७९॰ विद्याधर, ८०॰ वामन, ८१॰ शंकर, ८२॰ नीलकंठ, ८३॰ रामकृष्ण, ८४॰ रघूत्तम, ८५॰ दामोदर, ८६॰ गोपाल, ८७॰ मृत्युंजय, ८८॰ गोविन्द, ८९॰ वासुदेव, ९०॰ गंगाधर, ९१॰ सदाशिव, ९२॰ वामदेव, ९३॰ उपमन्यु, ९४॰ हयग्रीव, ९५॰ हरि, ९६॰ रघूत्तम, ९७॰ पुण्डरीकाक्ष, ९८॰ पराशंकर तीर्थ, ९९॰ वेदगर्भ, १००॰ वेदान्त भास्कर, १०१॰ विज्ञानात्मा, १०२॰ शिवानंद, १०३॰ महेश्वर, १०४॰ रामकृष्ण, १०५॰ वृषध्वज, १०६॰ शिद्धबोध, १०७॰ सोमेश्वर, १०८॰ गोपदेव, १०९॰ शंभुतीर्थ, ११०॰ भृगु, १११॰ केशवानंद, ११२॰ विद्यानंद, ११३॰ वेदानंद, ११४॰ बोधानंद, ११५॰ सुतपानंद, ११६॰ श्रीधर, ११७॰ जनार्दन, ११८॰ कामनाशनानंद, ११९॰ हरिहरानंद, १२०॰ गोपाल, १२१॰ कृष्णानंद, १२२॰ माधवानंद, १२३॰ मधुसूदन, १२४॰ गोविन्द, १२५॰ रघूत्तम, १२६॰ वामदेव, १२७॰ हृषीकेश, १२८॰ दामोदर, १२९॰ गोपालानंद, १३०॰ गोविन्द, १३१॰ रघुनाथ, १३२॰ रामचन्द्र, १३३॰ गोविन्द, १३४॰ रघुनाथ, १३५॰ रामकृष्ण, १३६॰ मधुसूदन, १३७॰ दामोदर, १३८॰ रघूत्तम, १३९॰ शिव, १४०॰ लोकनाथ, १४१॰ दामोदर, १४२॰ मधुसूदन तीर्थ, १४३॰ भारती कृष्ण तीर्थ, १४४॰ निरंजनदेव तीर्थ, १४५॰ निश्चलानंद सरस्वती।

शारदा मठ
शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। इस मठ के अन्तर्गत ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम” सम्प्रदाय आते हैं। इसमें सामवेद की प्रमुखता है तथा महावाक्य “तत्त्वमसि” है। शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे। हस्तामलक शंकराचार्य जी के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे। गोवर्धन मठ के पश्चात् शारदा मठ की स्थापना की गई।
१॰ हस्तामलक, २॰ ब्रह्मस्वरुपाचार्य, ३॰ चित्सुखाचार्य, ४॰ सर्वज्ञानाचार्य, ५॰ ब्रह्मानन्द तीर्थ, ६॰ स्वरुपाविज्ञानाचार्य, ७॰ मंगलमूर्त्याचार्य, ८॰ भास्कराचार्य, ९॰ प्रज्ञानाचार्य, १०॰ ब्रह्मज्योत्स्नाचार्य, ११॰ आनंदवीर भावाचार्य, १२॰ कलानिधि तीर्थ, १३॰ चिद्विलासाचार्य, १४॰ विभूत्यानन्दचार्य, १५॰ स्फूर्तिनिलय पाद, १६॰ वरतन्तुपाद, १७॰ योगरुढ़ाचार्य, १८॰ विज्ञानडिण्डिमाचार्य, १९॰ विद्यातीर्थ, २०॰ चिच्छक्तिदाचार्य, २१॰ विज्ञानेश्वरतीर्थ, २२॰ ऋतम्भराचार्य, २३॰ अमरेश्वरगुरु, २४॰ सर्वमुखतीर्थ, २५॰ स्वानन्ददेशिक, २६॰ समररसिक, २७॰ नारायणाश्रम, २८॰ वैकुण्ठाश्रम, २९॰ त्रिविक्रमाश्रम, ३०॰ शशिशेखराश्रम, ३१॰ त्रयम्बकाश्रम, ३२॰ चिदम्बराश्रम, ३३॰ केशवाश्रम, ३४॰ चिदम्बराश्रम, ३५॰ पद्मनाभाश्रम, ३६॰ महादेवाश्रम, ३७॰ सच्चिदानन्दाश्रम, ३८॰ विद्याशंकराश्रम, ३९॰ अभिनव सच्चिदानन्दाश्रम, ४०॰ नृसिंहाश्रम, ४१॰ वासुदेवाश्रम, ४२॰ पुरुषोत्तमाश्रम, ४३॰ ज्ञानार्धनाश्रम, ४४॰ हरिहराश्रम, ४५॰ भावाश्रम, ४६॰ ब्रह्माश्रम, ४७॰ वसनाश्रम, ४८॰ सर्वज्ञानाश्रम, ४९॰ प्रद्युम्नाश्रम, ५०॰ गोविन्दाश्रम, ५१॰ चिदाश्रम, ५२॰ विश्वेश्वराश्रम, ५३॰ दामोदराश्रम, ५४॰ महादेवाश्रम, ५५॰ अनिरुद्धाश्रम, ५६॰ अच्युताश्रम, ५७॰ माधवाश्रम, ५८॰ आनन्दाश्रम, ५९॰ विश्वरुपाश्रम, ६०॰ चिद्घनाश्रम, ६१॰ नृसिंहाश्रम, ६२॰ मनोहराश्रम, ६३॰ प्रकाशानन्द सरस्वती, ६४॰ विशुद्धानन्दाश्रम, ६५॰ वामनेश, ६६॰ केशवाश्रम, ६७॰ मधुसूदनाश्रम, ६८॰ हयग्रीवाश्रम, ६९॰ प्रकाशाश्रम, ७०॰ हयग्रीवाश्रम सरस्वती, ७१॰ धराश्रम, ७२॰ दामोदराश्रम, ७३॰ केशवाशरम, ७४॰ राजराजेश्वरशंकराश्रम, ७५॰ माधव तीर्थ, ७६॰ शान्तानन्द, ७७॰ चन्द्र शेखराश्रम, ७८॰ अभिनव सच्चिदानन्दाश्रम, ७९॰ स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती।

ज्योतिर्मठ
ज्योतिर्मठ उत्तरांचल में बद्रिकाश्रम में स्थित है। इस मठ के अन्तर्गत ‘गिरि’, ‘पर्वत’ एवं ‘सागर’ नामक संन्यासी सम्प्रदाय आते हैं। इस मठ का महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म” है। इस मठ से सम्बन्धित वेद अथर्ववेद है। ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए।
१॰ तोटकाचार्य, २॰ विजय, ३॰ कृष्ण, ४॰ कुमार, ५॰ गरुड, ६॰ शुक्र, ७॰ विन्ध्य, ८॰ विशाल, ९॰ बकुल, १०॰ वामन, ११॰ सुन्दर, १२॰ अरुण, १३॰ निवास, १४॰ आनन्द (सुखानन्द), १५॰ विद्यानन्द, १६॰ शिव, १७॰ गिरि, १८॰ विद्याधर, १९॰ गुणानन्द, २०॰ नारायण, २१॰ उमापति, २२॰ बालकृष्णस्वामी, २३॰ हरिब्रह्म स्वामी, २४॰ हरिस्मरण, २५॰ वृन्दावन स्वामी, २६॰ अनन्त नारायण, २७॰ भवानन्द, २८॰ कृष्णानन्द स्वामी, २९॰ हरिनारायण, ३०॰ ब्रह्मानन्द, ३१॰ देवानन्द, ३२॰ रघुनाथ, ३३॰ पूर्णदेव, ३४॰ कृष्णदेव, ३५॰ शिवानन्द, ३६॰ बालकृष्ण, ३७॰ नारायण उपेन्द्र, ३८॰ हरिश्चन्द्र, ३९॰ सदानन्द, ४०॰ केशवानन्द, ४१॰ नारायणतीर्थ, ४२॰ रामकृष्णतीर्थ, ४३॰ ब्रह्मानन्द सरस्वती, ४४॰ कृष्णबोधाश्रम।

काँची मठ
काँची मठ को भी आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठ के रुप में माना जाता है, किन्तु यह विवादास्पद है। काँची मठ की परम्परा में माना जाता है कि आद्य गुरु शंकराचार्य ने इस मठ की स्थापना की थी और यहीं उन्होंने अपना शरीर त्यागा था। वर्तमान में जयेन्द्र सरस्वती काँची मठ के मठाधीश्वर हैं। वे इस परम्परा के ६९ वें मठाधीश्वरहैं।

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