March 28, 2025 | aspundir | Leave a comment शक्ति ध्यान और प्रार्थना सक्तिन की सक्ति सुचि सरिता सिंगार ही की सोभा सील सदन सनेह-रस भोरी हूँ । संतन की सुखद, सुलभ दीन-हीनन की अलभ अलेख कृपा करत करोरी तूँ ॥ रसिक रसेस कृष्णचंद्र अखिलेस रानी भाग सुख संपत्ति सुहाग मति मोरी तूँ । दारुन दरिद्र दुख दीरघ विदारन को दिल दरियाव देवि राधिका किसोरी तूँ ॥ खड्ग-चक्र-गदा-वान-चाप परिघा त्रिसूल-मस्तक, भुसुंडि संख करन विसाली लूँ । सूर्य-चन्द्र-अग्निदिव्य दीपत द्रगन तीन सर्व अंग भूषन विभूषित उजाली तूँ ॥ नीलमनि, मंजुल प्रकास मुख मोद सदा कोकनद कंज पाद दस अरुनाली तूँ । ध्यावै हंसमाली हेतु नास मधु-कैटभ के निद्रित हरी की नींद जाली महाकाली हूँ ॥ अक्ष-स्रक्-परसु-गदा-वान-कुलिस-कमल कुंडिका- धनुष-दंड-सक्ति असि ताजी को । चर्म-संख-घंटा-सुराभाजन-त्रिसूल-पास चक्र ले सुदर्सन भुजान अति भ्राजी को ॥ सुंदर मधुर मृदु मंजुल मनोज चंद मंद होत छवि तैं प्रसन्न मुख राजी को । सेवौ सिंहमर्दिनी प्रचंड भुजदंड बीस दिव्य महालक्ष्मी देवि कमल-विराजी को ॥ सरद-ससांक सम उज्ज्वल अनूप रूप तीन द्रग गौरी तनु राजत रसाला है । करन बिराजै कंज-संख-धनु-बान सूल-घंटा चक्र-मुसल-हलायुध कराला है ॥ अमर-समूह सर्व वंदन करत जाहि हेमगिरि-सिखर विराजी गृह- आला है । प्रनम सरस्वति के पद अरविंद सदा सुंभ आदि दैत्यन्दल- दलिनि बिसाला है ॥ दाम दामिनीकी प्रभा मृगपति-कंध बैठी भव-भय-भंजिनि विभीषन भवानी कौं । कन्यकान करन कराल करबाल खेट सेवै चहुँ ओर चारु चमर ढुरानी कौं ॥ चक्रधरा अलि खेट विसिख बिराजै भुज चाप गुन तर्जनी तैं खैंच दरसानी कौं । भ्राजै अग्निज्वाल भाल धारै चंद्रबाल तीन द्रगन विसाल भज दुर्गा महारानी कौं ॥ स्वाहा-सक्ति संकरि भयंकरि भवानी स्वधा सत्रुप्रलयंकरि सिवे महा चंडिके ॥ क्रोध रत आनन प्रचंड भुज दंडवाली काली विकराली भवजाली भयखंडिके ॥ सिंहनाद निनद हटावै काल मृत्यु महा मुनिमन मंदिर प्रमोद मोद मंडिके । आजा देवि ! आज दिखला जा, दिव्य रूप, जूप खंड खंड करि दे प्रचंड चंड चंडिके ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe