July 31, 2015 | Leave a comment शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वाला-व्याप्तः ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, श्रीशत्रु-जयार्थे (उच्चाटनार्थे नाशार्थे वा) जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- शिरसि ज्वाला-व्याप्त-ऋषये नमः। मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः, हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः, अञ्जलौ श्रीशत्रु-जयार्थे (उच्चाटनार्थे नाशार्थे वा) जपे विनियोगाय नमः।। कर-न्यासः- ॐ श्रीशत्रु-विध्वंसिनी अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ त्रिशिरा तर्जनीभ्यां नमः। ॐ अग्नि-ज्वाला मध्यमाभ्यां नमः। ॐ घोर-दंष्ट्री अनामिकाभ्यां नमः। ॐ दिगम्बरी कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ रक्त-पाणि करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः। हृदयादि-न्यासः- ॐ रौद्री हृदयाय नमः। ॐ रक्त-लोचनी शिरसे स्वाहा। ॐ रौद्र-मुखी शिखायै वषट्। ॐ त्रि-शूलिनो कवचाय हुम्। ॐ मुक्त-केशी नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ महोदरी अस्त्राय फट्। फट् से ताल-त्रय दें (तीन बार ताली बजाएँ) और “ॐ रौद्र-मुख्यै नमः” से दशों दिशाओं में चुटकी बजाकर दिग्-बन्धन करें। स्तोत्रः- “ॐ शत्रु-विध्वंसिनी रौद्री, त्रिशिरा रक्त-लोचनी। अग्नि-ज्वाला रौद्र-मुखी, घोर-दंष्ट्री त्रि-शूलिनी।।१ दिगम्बरी मुक्त-केशी, रक्त-पाणी महोदरी।” फल-श्रुतिः- एतैर्नाममभिर्घोरैश्च, शीघ्रमुच्चाटयेद्वशी, इदं स्तोत्रं पठेनित्यं, विजयः शत्रु-नाशनम्। सगस्त्र-त्रितयं कुर्यात्, कार्य-सिद्धिर्न संशयः।। विशेषः- यह स्तोत्र अत्यन्त उग्र है। इसके विषय में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए- (क) स्तोत्र में ‘ध्यान’ नहीं दिया गया है, अतः ‘ध्यान’ स्तोत्र के बारह नामों के अनुरुप किया जायेगा। सारे नामों का मनन करने से ‘ध्यान’ स्पष्ट हो जाता है। (ख) प्रथम और अन्तिम आवृति में नामों के साथ फल-श्रुति मात्र पढ़ें। पाठ नहीं होगा। (ग) घर में पाठ कदापि न किया जाए, केवल शिवालय, नदी-तट, एकान्त, निर्जन-वन, श्मशान अथवा किसी मन्दिर के एकान्त में ही करें। (घ) पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं है। सीधे ‘प्रयोग’ करें। प्रत्येक ‘प्रयोग’ में तीन हजार आवृत्तियाँ करनी होगी। Related