January 22, 2016 | Leave a comment शत्रु-संहारक शाबर मन्त्र 01 मन्त्रः- “ॐ नमो, आदेश गुरू को ? काला भैंरु-कपिल जटा । भेरू खेले चौराह-चौहट्टा । मद्य-मांस को भोजन करे । जाग जाग से काला भेरू ! मात कालिका के पूत ! साथे जोगी जङ्गम और अवधूत । मेरा वैरी ………. (अमुक) तेरा भक । काट कलेजा, हिया चक्ख । भेजी का भजकड़ा कर । पांसला का दाँतन कर । लोहू का तू कुल्ला कर । मेरे बैरी ……… (अमुक) को मार । मार-मार तू भसम कर डार । वाह-वाह रे काला भेरू ! काम करो बेधड़क-भरपूर । जो तू मेरे वैरी दुश्मन (अमुक) को नहीं मारे, तो मात कालिका का पिया दूध हराम करे । गॉगली तेलन, लूनी चमारन का – कुण्ड-में पड़े । वाचा, बाधा, ब्रह्मा की वाचा, विष्णु की वाचा, शिव-शङ्कर की वाचा, शब्द है सांचा, पिण्ड है काचा । गुरू की शक्ति, मेरी भक्ति । चलो मन्त्र ! इसी वक्त । ॐ हूं फट् ।” विधिः- रात्रि को दस बजे के बाद कडुए तेल का दीपक जला कर बैठे । सामने भैरव की प्रतिमा या चित्र हो । मन्त्र पढ़कर एक नींबू खड़ा काटे । १०८ वार । ऐसा ही ग्यारह दिनों तक करे । १२वें दिन १२ ‘वटुक’ – छोटे-छोटे ब्राह्मण बालको को भोजन कराए और’ उन्हें दक्षिणा दें । रात्रि को हवन करे । सम्भव हो, तो यह हवन श्मशान में सन्ध्या के बाद करे । १३वें दिन सुबह जल्दी श्मशान जाए और उक्त हवन की भस्मी, जो भी चिता वहां अधजली या जली हो, उसमें डाल दे । उस चिता पर कुंकुम, अक्षत, पुष्प एवं कुछ मीठा प्रसाद छोड़कर नमस्कार करके चला आए । Related