शनि-पीड़ा के लिए प्रभाव-पूर्ण उपासनाएँ

१॰ शनिवार, अमावस्या आदि दिनों पर ‘शनि-मन्दिर’ में जाकर आक-पर्ण (मदार के पत्ते) एवं पुष्पों की माला मूर्ति पर चढ़ाएँ । एक या आधा चम्मच तेल भी चढ़ाएँ । अब मूर्ति के सामने बैठकर शान्त-चित्त से निम्न मन्त्र, मूर्ति के भ्रू-मध्य या दाहिनी आँख पर त्राटक-पूर्वक प्रेम-भाव से, ११ बार जपें –
“नीलांजन समाभासम्, रवि-पुत्रं यमाग्रजम् ।
छाया-मार्तण्ड-सम्भूतं, तं नमामि शनैश्वरम् ।।”

अब सूर्य-भगवान् को गायत्री-मन्त्र से एक बार अर्घ्य दें या ‘ॐ ह्रीं सूर्याय नमः’ मन्त्र का यथा-शक्ति जप करें । ‘शनि’ सूर्य-पुत्र हैं । इस प्रकार पिता-पुत्र की उपासना लाभ-प्रद होती है ।

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२॰ यह उपासना एक नाथ-पन्थीय जीवन्मुक्त महात्मा से प्राप्त है । साढ़े-साती काल में यह उपासना भक्ति-पूर्वक करें । ‘आक’ के कुछ पत्ते सुखाकर उसका चूर्ण तैय्यार करके रखें ।
१ इञ्च का चौरस लोहे के टुकड़े पर “ॐ चैतन्य-शनैश्वरम्” यह मन्त्र खुदवा लें । यदि धनाभाव हो, तो कम-से-कम एक काला गोल पत्थर ले आकर उसमें ‘शनिदेव’ की भावना रख, पूजा-स्थान में रखें । ‘भगवान्-शनि’ के प्रति “चैतन्य” की भावना रखनी चाहिए ।
उक्त प्रतिमा को किसी थाली में रखकर उसका पूजन करें । गन्ध, हल्दी-कुंकुम और ११ उड़द के दाने चढ़ाएँ । आक के १०८ पुष्प “ॐ चैतन्य शनीश्वराय नमः” मन्त्र से अर्पित करें । ‘आक’ के ही सूखे पत्तों के चूर्ण की धूप दें । दीप दिखाकर सुख-शान्ति हेतु शनि की प्रार्थना करें । भोजन में उड़द के बड़ों का नैवेद्य देना चाहिए ।
हर शनिवार को उक्त उपासना करें । उपासना-काल में शनिवार को नहीं, गुरुवार को उपवास करें । यह बात ध्यान में रखें । ‘साढ़े-साती’ काल पूर्ण होने के ढाई मास बाद उपासना बन्द करें और प्रतिमा को जलाशय में विसर्जित कर दें ।
उक्त उपासना से शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और साधक का भाग्योदय उपासना काल में सुनिश्चित होने लगता है । इसके आगे की फल-श्रुति प्रकट न करने का संकेत हैं ।

३॰ यह उपासना शान्ति-समाधान हेतु और ‘साढ़े-साती’ पीड़ा के निवारण के लिए भी कर सकते हैं । २१ सोमवार यह उपासना करें –
शिवलिंग का यथा-शक्ति पूजन करें । हो सके, तो जलाभिषेक करें । पाँच श्वेत पुष्प और एक बिल्व-पत्र चढ़ाएँ । शिव-मन्त्र का जप करें । फिर प्रार्थना करें –
“ॐ शंकराय नमः । श्रीकैलाश-पतये नमः । श्रीपार्वती-पतये नमः ।
श्रीविघ्न-हर्ताय नमः । श्रीसुख-दात्रे नमः । ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!”

इस प्रकार प्रार्थना कर शिव-लिंग के सामने एक नारियल और एक मुठ्ठी गेहूँ रखें । नमस्कार कर घर वापस आएँ ।
फल-श्रुतिः- सुख-समाधान की प्राप्ति, शनि-पीड़ा का निवारण ।

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