ग्रह-बाधा-शान्ति मन्त्र
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं दह दह।”
विधि- सोम-प्रदोष से ७ दिन तक, माल-पुआ व कस्तुरी से उक्त मन्त्र से १०८ आहुतियाँ दें। इससे सभी प्रकार की ग्रह-बाधाएँ नष्ट होती है।

देव-बाधा-शान्ति-मन्त्र
“ॐ सर्वेश्वराय हुम्।”
विधि- सोमवार से प्रारम्भ कर नौ दिन तक उक्त मन्त्र का ३ माला जप करें। बाद में घृत और काले तिल से आहुति दे। इससे दैवी बाधाएँ दूर होती है और सुख-शान्ति प्राप्ति होती है।

रोग-मुक्ति या आरोग्य-प्राप्ति मन्त्र
“मां भयात् सर्वतो रक्ष, श्रियं वर्धय सर्वदा। शरीरारोग्यं मे देहि, देव-देव नमोऽस्तु ते।।”
विधि- ‘दीपावली’ की रात्री या ‘ग्रहण’ के समय उक्त मन्त्र का जितना हो सके, उतना जप करे। कम से कम १० माला जप करे। बाद में एक बर्तन में स्वच्छ जल भरे। जल के ऊपर हाथ रखकर उक्त मन्त्र का ७ या २७ बार जप करे। फिर जप से अभिमन्त्रित जल को रोगी को पिलाए। इस तरह प्रतिदिन करने से रोगी रोग मुक्त हो जाता है। जप विश्वास और शुभ संकल्प-बद्ध होकर करें।

रोग से मुक्ति हेतु-
“ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षिय मामृतात्
स्वः भूर्भुवः सः जूं ॐ हौं ॐ।।”
विधि- शुक्ल पक्ष में सोमवार को रात्रि में सवा नौ बजे के पश्चात् शिवालय में भगवान् शिव का सवा पाव दूध से दुग्धाभिषेक करें। तदुपरान्त उक्त मन्त्र की एक माला जप करें। इसके बाद प्रत्येक सोमवार को उक्त प्रक्रिया दोहरायें तथा दो मुखी रुद्राक्ष को काले धागे में पिरोकर गले में धारण करने से शीघ्र फल प्राप्त होगा।

रोग निवारणार्थ औषधि खाने का मन्त्र
‘‘ॐ नमो महा-विनायकाय अमृतं रक्ष रक्ष, मम फलसिद्धिं देहि, रूद्र-वचनेन स्वाहा’’
किसी भी रोग में औषधि को उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर लें, तब सेवन करें। औषधि शीघ्र एवं पूर्ण लाभ करेगी।

सर्व-रोग-नाशक मन्त्र
‘‘अच्युतानन्त गोविन्द, नामोच्चारण भेषजात्।
नश्यन्ति सकलाः रोगाः, सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।’’
सर्वप्रथम आश्विन मास में धनवन्तरि-त्रयोदशी को स्नान कर शुद्ध आसन पर बैठकर घी का दीपक जलाकर उक्त मन्त्र का एक लाख अट्ठाईस हजार ‘जप’ कर सिद्ध करें।
तत्पश्चात् रोगी का हाथ अपने हाथ में लेकर मन्त्र का जाप करें। एक घण्टा बीतते-बीतते रोगी को आराम होगा। अभिमन्त्रित जल, औषधि आदि दें।

भोजन पचाने का मन्त्र
1. ‘‘अगस्त्यं कुम्भकर्णं च, शनिं च बड़वानलम्।
आहारं पाचनार्थाय, समरेत् भीमं च पंचकम्।।’’
भोजनोपरांत उक्त मंत्र को पढ़ते हुए 7 बार हाथ पेट पर फेरें। इससे गैस्ट्रिक रोग में लाभ होता है तथा भोजन आसानी से पच जाता है।
2. ‘‘अज्र हाथ वज्र हाथ, भस्म करे सब पेट का भात।
दुहाई हजरत शाह कुतुब आलम पण्डवा की।।’’
उक्त मंत्र पढ़ते हुए 11 बार पेट पर हाथ फेरें।

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