September 7, 2015 | aspundir | Leave a comment शाबर-मन्त्र-साधना में गुरु-तत्त्व आदि-गुरु तो भगवान् सदाशिव ही हैं। उन्हीं के अवतार-स्वरुप ‘नव-नाथ’ ही ‘शाबर-मन्त्र-विज्ञान’ के प्रचारक लौकिक गुरु माने गये हैं। इन नाथों के सम्बन्ध में निम्न पद्यात्मक साहित्य का मनन अपेक्षित है। १॰ नव-नाथ-माला ‘आदि-नाथ’ महेश आकाश-रुप छाय रहे । ‘उदय-नाथ’ पार्वती पृथ्वी-रुप भाए हैं । ‘सत्य-नाथ’ ब्रह्मा जी जिनका है जल-रुप । वही तो कृपा कर सृष्टि को रचाए हैं । विष्णु ‘सन्तोष-नाथ’ तेज खाँडा खड्ग-स्वरुप । राज्पाट-अधिकारी वही तो कहाए हैं । अचल ‘अचम्भेनाथ’ जिनका है शेष-रुप । पृथ्वी का भार सब शीश पर उठाए हैं । गज-बली ‘कन्थभ-नाथ’ सिद्धि देता हार । हस्ति-रुपी घाड़ गण-पति कहलाए हैं । ज्ञान-पारखी चन्द्रमा-सिद्ध हैं ‘चौरंगी-नाथ’ । अठार भार वनस्पति में वही समाए हैं । माया-पति दादा-गुरु कृपालु ‘मत्स्येन्द्र-नाथ’ । सब ही को अन्न-धन-कपड़ा पुराए हैं । गुरु तो ‘गोरक्ष-नाथ’ स्वयं ज्योति-स्वरुप जो । विश्व भर योग-शक्ति उदार फैलाए हैं । बड़े हैं जो भाग्य-वन्त जिन योग प्राप्त किया । नव-नाथ ‘नव-नाथ’ गुरु-गण गाए हैं । नाथ ये त्रिलोक ‘नव-नाथ’ को नमन कर । नव-नाथ-नाम शुभ मेरे मन भाए हैं । ।।दोहा।। श्री ‘नव-नाथ’ को चुनऊँ, दीजिए शुभ आशीष । आप ही मम सर्वस्व हैं, आपहि हैं मम ईश ।। करें कृपा मुझ दीन पर, करूँ सुयश गुण-गान । ‘नव-नाथ-माला’ शुभ गुनूँ, कीजिए बुद्धि प्रदान ।। जिसके पठन-श्रवण से, मिटे त्रिविध भव-ताप । अचल मोक्ष-पद-पावहीं, जपिहैं जो चित लाय ।। २॰ नव-नाथ-स्वरुप ‘आदि-नाथ’ सदा-शिव हैं, जिनका आकाश-रुप, ‘उदय-नाथ’ पार्वती पृथ्वी-रुप जानिए । ‘सत्य-नाथ’ ब्रह्मा जी जल-रुप मानिए , विष्णु ‘सन्तोष-नाथ’ तिनका है तेज-रुप । अचल हैं ‘अचम्भे-नाथ’ जिनका है शेष-रुप, गज-बली ‘कन्थभ-नाथ’ हस्ति-रुप जानिए । ज्ञान-पारखी जो सिद्ध हैं वह ‘चौरंगीनाथ’ , अठार भार वनस्पति चन्द्र-रुप जानिए । दादा-गुरु ‘श्रीमत्स्येन्द्र-नाथ’ जिनका है माया-रुप , गुरु ‘श्रीगोरक्ष-नाथ’ ज्योति-रुप जानिए । बाल हैं त्रिलोक, ‘नव-नाथ’ को नमन करुँ, नाथ जी ये बाल को अपना ही जानिए ।। ३॰ नव-नाथ-चरित ।।दोहा।। ‘आदि-नाथ’ आकाश-सम, सूक्ष्म रुप ॐकार । तीन लोक में हो रहा, आपनि जय-जय-कार ।।१ ।।चौपाई।। जय-जय-जय कैलाश-निवासी, यो-भूमि उतर-खण्ड-वासी । शीश जटा सु-भुजंग विराजै, कानन कुण्डल सुन्दर साजे ।।२ डिमक-डिमक-डिम डमरु बाजे, ताल मृदंग मधुर ध्वनि गाजे । ताण्डव नृत्य किया शिव जब ही, चौदह सूत्र प्रकट भे तब ही ।।३ शब्द-शास्त्र का किया प्रकाशा, योग-युक्ति राखे निज पासा । भेद तुम्हारा सबसे न्यारा, जाने कोई जानन-हारा ।।४ योगी-जन तुमको अति प्यारे, जरा-मरण के कष्ट निवारे । योग प्रकट करने के कारण, ‘गोरक्ष’ स्वरुप किया धारण ।।५ ब्रह्म-विष्णु को योग बताया, नारद ने निज शीश नवाया । कहाँ तलक कर वरनूँ गाथा, आदि-अनादि हो आदि-नाथा ।।६ ।।दोहा।। ‘उदय-नाथ’ तुम पार्वती, प्राण-नाथ भी आप । धरती-रुप सु-जानिए, मिटे त्रिविध भव-ताप ।।७ ।।चौपाई।। जय-जय-जय ‘उदय’-मातृ भवानि, करो कृपा निज बालक जानी । पृथ्वी-रुप क्षमा तुम करती, दुर्गा-रुप असुर-भय हरती ।।८ आदि-शक्ति का रुप तुम्हारा, जानत जीव चराचर सारा । अन्नपूर्णा बन के जग पाला, धन्यो रुप सुन्दरी बाला ।।९ ब्रह्मा-विष्णु भी शीश नमाएँ, नारद-शारद मिल गुण गाएँ । योग-युक्ति में तुम सहकारी, तुझे सदा पूजें नर-नारी ।।१० योगी-जन पर कृपा तुम्हारी, भक्त-भीड़-भय-भञ्जन-हारी । मैं बालक तुम मातृ हमारी, भव-सागर से तुरतहिं तारी ।।११ कृपा करो मो पर महरानी, तुम सम न कोइ दूसर दानी । पाठ करै जो ये चित लाई, ‘उदय-नाथ’ जी होंइ सहाई ।।१२ ।।दोहा।। ‘सत्य-नाथ’ हैं सृष्टि-पति, जिनका है जल-रुप । नमन करत हैं आपको, स-चराचर के भूप ।।१३ ।।चौपाई।। जय-जय-जय ‘सत्य-नाथ’ कृपाला, दया करो हे दीन-दयाला । करके कृपा यह सृष्टि रचाई, भाँति-भाँति की वस्तु बनाई ।।१४ चार वेद का किया उचारा, ऋषि-मुनि मिल के किया विचारा । सनत् सनन्दन-सनत्कुमारा, नारद-शारद गुण-भण्डारा ।।१५ जग हित सबको प्रकटित कीन्हा, उत्तम ज्ञान योगी-पद दीन्हा । पाताले भुवनेश्वर सुन्दर, सत्य-धाम-पथ धाम मनोहर ।।१६ कुरु-क्षेत्रे पृथूदक सुन्दर, ‘सत्य-नाथ’ योगी कहलाए । आपन महिमा अगम अपारा, जानत है त्रिभुवन सारा ।।१७ आशा-तृष्णा निकट न आए, माया-ममता दूर नसाए । ‘सत्य-नाथ’ का जो गुण गाएँ, निश्चय उनका दर्शन पाएँ ।।१८ ।।दोहा।। विष्णु तो ‘सन्तोष-नाथ’, खाँड़ा खड्ग-स्वरुप । राज-सम दिव्य तेज है, तीन लोक का भूप ।।१९ ।।चौपाई।। जय-जय-जय श्री स्वर्ग-निवासी, करो कृपा मिटे काम फाँसी । सुन्दर रुपे विष्णु-तन धारे, स-चराचर के पालन हारे ।।२० सब देवन में नाम तुम्हारा, जग-कल्याण-हित लेत अवतारा । जग-पालन का काम तुम्हारा, भीड़ पड़े सब देव उबारा ।।२१ योग-युक्ति ‘गोरक्ष’ से लीन्ही, शिव प्रसन्न हो दीक्षा दीन्ही । शंख-चक्र-गदा-पद्म-धारी, कान में कुण्डल शुभ-कारी ।।२२ शेषनाग की सेज बिछाई, निज भक्तन के होत सहाई । ऋषि-मुनि-जन के काज सँचारे, अधम दुष्ट पापी भी तारे ।।२३ देवासुर-संग्राम छिड़ाए, मार असुर-दल मार भगाए । ‘सन्तोष-नाथ’ की कृपा पाएँ, जो चित लाय पाठ यह गाएँ ।।२४ ।।दोहा।। शेष रुप है आपका, अचल ‘अचम्भेनाथ’ । आदि-नाथ के आप प्रिय, सदा रहें उन साथ ।।२५ ।।चौपाई।। जय-जय-जय योगी अचलेश्वर, सकल सृष्टि धारे शिव ऊपर । अकथ अथाह आपकी शक्ति, जानो पावन योग की युक्ति ।।२६ शब्द-शास्त्र के आप नियन्ता, शेषनाग तुम हो भगवन्ता । बाल यती है रुप तुम्हारा, निद्रा जीत क्षुधा को मारा ।।२७ नाम तुम्हारा बाल गुन्हाई, टिल्ला शिवपुरी धाम सुहाई । सागर मथन की हुइ तैयारी, देव दैत्यकी सेना भारी ।।२८ पर-दुख-भञ्जन पर-हित काजा, नेति आप भये सिद्ध राजा । सागर मथा अमृत प्रकटाया, सब देवन को अमर बनाया ।।२९ यतियों में भी नाम तुम्हारा, योगियों में सिद्ध-पद धारा । नित ही बाल-स्वरुप सुहाए, अचल अचम्भेनाथ कहाए ।।३० ।।दोहा।। ‘गज-बलि’ गज के रुप हैं, गण-पति ‘कन्थभ-नाथ’ । देवों में हैं अग्र-तम, सब ही जोड़ें हाथ ।।३१ ।।चौपाई।। जय-जय-जय श्रीकन्थभ देवा, हो कृपा मैं करूँ नित सेवा । मोदक हैं अति तुमको प्यारे, मूषक-वाहन परम सुखारे ।।३२ पहले पूजा करे तुम्हारी, काज होंय शुभ मंगल-कारी । कीन्हि परीक्षा जब त्रिपुरारी, देखि चतुरता भये सुखारी ।।३३ ऋद्धि-सिद्धि चरणों की दासी, आप सदा रहते वन-वासी । जग हित योगी-भेष बनाये, कन्थभ नाथ सु-नाम धराये ।।३४ कन्थ कोट में आसन कीन्हा, चमत्कार राजा को दीन्हा । सात बार तो कोट गिराए, बड़े-बड़े भूपनहिं नमाये ।।३५ वसुनाथ पर कृपा तुम्हारी, करी तपस्या कूप में भारी । भैक कापड़ी शिष्य तुम्हारे, करो कृपा हर विघ्न हमारे ।।३६ ।।दोहा।। ज्ञान-पारखी सिद्ध हैं, चन्द्र चौरंगि नाथ । जिनका वन-पति रुप है, उन्हें नमाऊँ माथ ।।३७ ।।चौपाई।। जय-जय-जय श्री सिद्ध चौरंगी, योगिन के तुम नित हो संगी । शीतल रुप चन्द्र अवतारा, सदा बरसो अमृत की धारा ।।३८ वनस्पति में अंश तुम्हारे, औषधि के सुख भये सुखारे । शालिवान है वंश तुम्हारा, बालपने योगी तन धारा ।।३९ अति सुन्दर तव सुन्दरताई, सुन्दरि रानी देख सुभाई । गुरु-शरण में रानी आई, हाथ जोड़ यह विनय सुनाई ।।४० शिष्य आपका मुझे चाहिए, नहीं तो प्राण तन में बहिए । सुनकर गुरु जी करुणा कीन्हीं, जब तुझे यही आज्ञा दीन्हीं ।।४१ रानी संग चले मति पाई, जाय महल में ध्यान लगाई । रानी ने तब शीश नमाया, हुए अदृश्य भेद नहीं पाया ।।४२ ।।दोहा।। माया-रुपी आप हैं, दादा मछन्द्रनाथ । रखूँ चरण में आपके, करो कृपा मम नाथ ।।४३ ।।चौपाई।। जय-जय-जय अलख दया-सागर, मत्स्य में प्रकट जय करुणाकर । अमर कथा श्री शिवहिं सुनाई, गौरी के जो मन को भाई ।।४४ सूक्ष्म वेद जो शिवहि सुनाया, गर्भ में आपने वह पाया । जाकर अपना शीश नवाया, उमा महेश सु-वचन सुनाया ।।४५ जीव जगत का कर कल्याणा, ले आशीष चले भगवाना । सिंहल द्वीप सु-राज चलाया, सारे जग में यश फैलाया ।।४६ कदली-वन में किया निवासा, योग-मार्ग का किया प्रकाशा । माया-रुपहि आप सुहाएँ, जग को अन-धन-वस्त्र पुराएँ ।।४७ दादा पद है आपन सुन्दर, करें कृपा निज भक्त जानकर । महिमा आपकी महा भारी, कहि न सके मति मन्द हमारी ।।४८ ।।दोहा।। शिव गोरक्ष शिव-रुप हैं, घट-घट जिनका वास । ज्योति-रुप में आपने, किया योग प्रकाश ।।४९ ।।चौपाई।। जय-जय-जय गोरक्ष गुरुज्ञानी, तोग-क्रिया के तुम हो स्वामी । बालरुप लघु जटा विराजै, भाल चन्द्रमा भस्म तन साजै ।।५० शिवयोगी अवधूत निरञ्जन, सुर-नर-मुनि सब करते वन्दन । चारों युग के आपहि योगी, अजर अमर सुधा-रस भोगी ।।५१ योग-मार्ग का किया प्रचारा, जीव असंख्य अभय कर जारा । राजा कोटि निभाने आए, देकर योग सब शिष्य बनाए ।।५२ तुम शिव गोरख राज अविनाशी, गोरक्षक उत्तरापथ-वासी । विश्व-व्यापक योग तुम्हारा, ‘नाथ-पन्थ’ शिव-मार्ग उदारा ।।५३ शिव गोरक्ष के शरण जो आएँ, होय अभय अमर-पद पाएँ । जो गोरख का ध्यान लगाएँ, जरा-मरण नहिं उसे सताएँ ।।५४ ।।दोहा।। माला यह नव-नाथ की, कण्ठ करे जो कोइ । कृपा होय नव-नाथ की, आवागमन न होइ ।।५५ नव-नाथ-माला सु-रची, तुच्छ मती अनुसार । त्रुटि क्षमा करें योगि-जन, कर लेना स्वीकार ।।५६ नहिं विद्या में निपुण हूँ, नहिं है ज्ञान विशेष । योगी-जन गुरु-पूजा को, करता हूँ आदेश ।।५७ ।।पाठ-विधि और फलादेश।। कर स्नान शुद्ध प्राणायाम करै बैठ कर, आम पीपल आदि की समिधा जलाइए । धूनी की पूजा कर प्रेम सहित, गोकुल धूप करें, नव-नाथ-माला का पाठ नित्य सुनाइए ।। एक सौ आठ बार माला पठन करे, नव-नाथ-माला प्रेम से फिराइए । अष्ट-सिद्धि नव-निधि मुक्ता-माल प्राप्त हो, माला के प्रताप में मोक्ष-फल पाइए ।। आशा और तृष्णा निकट नहीं आएँगी, जरा-मरण आधि-व्याधि तुझे न सताएँगी । नव-नाथ-माला के पठन-प्रभाव से, भूत-प्रेत-चोर आदि कभी न डराएँगे । बाल ये त्रिलोक नव-नाथ के आशिष से, होइगी जो इच्छा शीघ्र वही फल पाएँगे ।। Related