शिवजी का राधावतार

एक बार परमकौतुकी लीलामय भगवान् श्रीशिवजी ने पार्वतीजी से कहा — ‘देवि ! यदि मुझपर तुम प्रसन्न हो तो तुम पृथिवीतल पर कहीं पुरुषरूप से अवतार लो और मैं स्त्रीरूप धारण करूँगा । यहाँ जैसे मैं तुम्हारा प्रियतम स्वामी और तुम मेरी प्राणप्यारी भार्या हो, उसी प्रकार वहाँ तुम मेरे स्वामी तथा मैं तुम्हारी पत्नी बनूँगा । बस, यही मेरा अभीष्ट है । तुम मेरी सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हो, इसे भी पूर्ण करो ।’

शक्तिमान् की इच्छा पूर्ण करने के लिये शक्ति देवी ने स्वीकृति दे दी और कहा — ‘नवीन मेघ के समान कान्तिमयी जो मेरी भद्रकाली नाम की मूर्ति है, वही श्रीकृष्ण रूप से पृथिवी पर अवतार लेगी; अब आप भी अपने अंश से स्त्रीरूप धारण कीजिये ।

शिवजी परम सन्तुष्ट होकर बोले — ‘मैं तुम्हारी प्रियकामना से भूतल पर नौ रूपों में प्रकट होऊँगा । हे शिवे ! मैं स्वयं परम प्रेममयी वृषभानुनन्दिनी श्रीराधा के रूप में अवतीर्ण होऊँगा और तुम्हारी प्राणप्रिया होकर तुम्हारे ही साथ विहार करूँगा । इसके अतिरिक्त मेरी आठ मूर्तियाँ आठ रमणियों के रूप में प्रकट होंगी, वे ही मनोहर नयना श्रीरुक्मिणी और सत्यभामा आदि तुम्हारी आठ पटरानियाँ होंगी । इसके अतिरिक्त जो मेरे भैरवगण हैं, वे भी रमणीरूप धारणकर भूमि पर अवतीर्ण होंगे ।’

देवी ने कहा — ‘आपकी इच्छा सफल हो, मैं आपकी – इन सभी मूर्तियों के साथ यथोचित विहार करूँगी । हे प्रभो ! मेरी जया तथा विजया नाम की जो दोनों सखियाँ हैं, वे पुरुषरूप में श्रीदामा और सुदामा होंगी । विष्णु भगवान् के साथ मेरा पहले से निश्चय हो चुका है, वे हलायुधरूप में मेरे बड़े भाई होंगे और सदा मेरे प्रिय कार्यों का साधन करेंगे । उन महाबली का नाम [बल] राम होगा । इस प्रकार मैं तुम्हारा कार्य सिद्धकर अपनी महती कीर्ति की स्थापना करके पुनः भूतल से लौट आऊँगी ।’

इसी निश्चय के अनुसार पृथिवी और ब्रह्माजी की प्रार्थना पर श्रीपार्वतीजी श्रीकृष्णरूप में तथा श्रीशिवजी श्रीराधारूप में प्रकट हुए ।

यह एक कल्प में श्रीराधा-कृष्ण के अवतार का बाहरी रहस्य है । भगवान् और भगवती के अवतार की गूढ अभिसन्धि को तो दूसरा कौन जान सकता है ?
(महाभागवत के आधार पर)

 

 

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