October 7, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण — कैलाससंहिता — अध्याय 05 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण कैलाससंहिता पाँचवाँ अध्याय संन्यासदीक्षाहेतु मण्डलनिर्माणकी विधि ईश्वर बोले- भूमिके गन्ध, वर्ण, रस आदिकी भलीभाँति परीक्षाकर वहाँ अपने मनके अनुकूल स्थानपर वस्त्रका विशाल चँदोवा लगाकर दर्पणतलके तुल्य [सम तथा स्निग्ध] पृथ्वीतलपर दो हाथ प्रमाणके चौकोर मण्डलका निर्माण करे ॥ १-२ ॥ ताड़का पत्ता लेकर उसीके समान लम्बे एवं चौड़े स्थानमें बराबर तेरह भाग करे । उस ताड़पत्रको वहीं रखकर पश्चिमकी ओर मुख करके बैठे और रँगा हुआ सुदृढ़ धागा लेकर उसे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण- चारों दिशाओंमें लपेटे । हे देवदेवेशि ! इस प्रकार करनेसे उस मण्डलके एक सौ उनहत्तर कोष्ठक हो जायँगे उसके मध्यका कोष्ठक कर्णिका है, उसके बाहरके आठ कोष्ठक आठ दल कहे जाते हैं ॥ ३-६ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ सभी दलोंको श्वेत वर्णका बनाये । कर्णिकाको पीले रंगसे रँगना चाहिये और उसके चारों ओर लाल रंगका वृत्त बनाकर हे सुरेश्वरि ! [उस अष्टदल ] कमलके दलोंके दाहिनी ओरसे आरम्भ करके दलोंके सन्धिस्थानको क्रमसे लाल तथा काले रंगसे रँगना चाहिये ॥ ७-८ ॥ कर्णिकामें प्रणवार्थको प्रकाशित करनेवाला यन्त्र लिखे। पुनः नीचेकी ओर पीठ और उसके ऊपर श्रीकण्ठ लिखकर उसके ऊपर अमरेश, मध्यमें महाकाल और महाकालके मस्तकके समीप दण्ड लिखकर फिर ईश्वरको लिखे । श्याम रंगसे पीठ और पीत रंगसे श्रीकण्ठको चित्रित करे | अमरेश और महाकालको क्रमशः लाल तथा काले रंगसे चित्रित करे । बुद्धिमान् को चाहिये कि दण्डको धूमवर्ण तथा ईश्वरको धवलवर्णका बनाये । इस प्रकार रंग भरकर बनाये गये यन्त्रको सद्योजात मन्त्रसे वेष्टित कर दे ॥ ९–१२ ॥ हे ईश्वरि! उस मन्त्रसे उठे हुए नादसे ईशानका भेदन करे और आग्नेय आदिके क्रमसे उनकी बाह्य पंक्तियोंको ग्रहण करे ॥ १३ ॥ हे सुन्दरि ! उन कोणोंके चार कोष्ठकोंको श्वेत तथा लाल धातुओंसे रँगकर चार द्वारोंकी परिकल्पना करे। उनके बगलके दोनों कोष्ठकोंको पीले रंगसे परिपूर्ण करना चाहिये ॥ १४-१५ ॥ आग्नेय कोण कोष्ठके मध्यभागमें पीतवर्णवाले चौकोर स्थानमें लालरंगके अष्टदल कमलका निर्माण करना चाहिये और उसकी कर्णिकाको पीले रंगसे रँगना चाहिये ॥ १६ ॥ तत्पश्चात् सावधान होकर उसके मध्यमें बिन्दुयुक्त हकार लिखे। उस कमलके नैर्ऋत्यकोणवाले कोष्ठकमें चौकोर [वृत्तवाला] रक्तवर्णका अष्टदल कमल बनाये और उसकी कर्णिकाओंमें पीला रंग भर दे । उसमें शवर्गके तीसरे अक्षर ‘स’ को छठे स्वर ‘ऊ’ से युक्त करके ‘सू’ लिखे ॥ १७-१८ ॥ हे भद्रे ! बिन्दु – नादसे युक्त चौदहवाँ स्वर ‘औं’- इस श्रेष्ठ बीजमन्त्रको पद्मके मध्यमें लिखे ॥ १९ ॥ इसी प्रकार पद्मके ईशानकोणवाले कोष्ठकमें भी रक्तवर्णका वैसा ही कमल बनाये और उसमें कवर्गके तीसरे अक्षर ‘ग’ को पंचम स्वरसे युक्त करके ‘गु’ लिखे। उस वर्णके कण्ठभागमें बिन्दु लिखे । हे पार्वति ! हे शिवे ! इसकी बाहरवाली तीन पंक्तियोंमें पूर्वादि दिशाके क्रमसे चारों ओरके पाँच कोष्ठ ग्रहण करे और उसके मध्यमें कर्णिकाको पीला करे एवं वृत्तको रक्तवर्णका कर दे ॥ २०–२२ ॥ इसकी विधि जाननेवालेको चाहिये कि कमलदलोंको लाल बनाये और दलोंके बाहरवाले छिद्रोंको काले रंगसे भर दे। आग्नेय आदि चारों कोनोंको सफेद रंगसे परिपूर्ण करे । पूर्वकी ओर छ: बिन्दुसे युक्त षट्कोणको काले रंगसे लिखे ॥ २३-२४ ॥ दक्षिण कोष्ठकमें रक्तवर्ण त्रिकोण, उत्तरकोष्ठकमें श्वेताभ अर्धचन्द्र, पश्चिम कोष्ठकमें पीतवर्ण चतुरस्र अंकित करके क्रमशः चार बीज लिखे । पूर्वकोष्ठकमें शुक्लवर्ण बिन्दु, दक्षिणकोष्ठकमें कृष्णवर्ण उकार, उत्तरकोष्ठकमें रक्तवर्ण मकार और पश्चिम कोष्ठकमें पीतवर्ण अकार लिखे । हे सुन्दरि ! सबसे ऊपरकी पंक्तिसे नीचेवाली पंक्तिमें पीला, श्वेत, लाल और काला – ये चारों रंग भरे ॥ २५ – २८ ॥ उसके नीचे श्वेत, श्याम, पीत एवं रक्त रंगसे रँगे । हे वरानने! नीचेके त्रिकोणमें लाल, सफेद और पीला रंग भरे । हे ईश्वरि ! इस प्रकार दक्षिणसे प्रारम्भकर उत्तर दिशातक चित्रण करे । उसकी बाहरी पंक्तिमें पूर्वसे मध्यभागतक पीला, लाल, काला, श्याम, श्वेत, पीतवर्ण चित्रित करे । हे प्रिये ! रक्त, श्याम, श्वेत, लाल, कृष्ण, लाल—ये छ: रंग कहे गये हैं । आग्नेयकोणसे आरम्भकर [ वायुकोणपर्यन्त ] इन रंगोंका क्रमशः प्रयोग करे । हे महेशानि ! दक्षिणसे लेकर पूर्वपर्यन्त ये सब बताये गये हैं। हे ईश्वरि ! वैसे ही नैर्ऋत्यदिशासे लेकर आग्नेयदिशापर्यन्त जानना चाहिये, उसी रीतिसे पश्चिमदिशासे लेकर दक्षिणदिशापर्यन्त भी कहा गया है । हे महादेवि ! वायव्यसे लेकर नैर्ऋत्यदिशातक यह क्रम कह दिया । इसी प्रकार परमेशानि! पूर्वसे लेकर पश्चिम दिशातक कहा गया । हे अम्बिके! उत्तरसे लेकर वायव्यतक यह क्रम जानना चाहिये । हे पार्वति ! इस प्रकार मैंने मण्डलकी विधि आपसे कह दी । जितेन्द्रिय यतिको चाहिये कि स्वयं इस प्रकार मण्डल लिखकर ब्रह्ममें तत्पर हो सौरपूजा करे ॥ २९ – ३६ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत छठी कैलाससंहितामें संन्यासमण्डलविधिवर्णन नामक पाँचवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ५ ॥ Please follow and like us: Related