शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [प्रथम-सृष्टिखण्ड] – अध्याय 14
श्री गणेशाय नमः
श्री साम्बसदाशिवाय नमः
चौदहवाँ अध्याय
विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादि की धाराओं से शिवजी की पूजा का माहात्म्य

ऋषिगण बोले — हे महाभाग ! हे व्यासशिष्य ! आप सप्रमाण हमें यह बतायें कि किन-किन पुष्पों से पूजन करने पर भगवान् सदाशिव कौन-कौन-सा फल प्रदान करते हैं ? ॥ १ ॥

सूतजी बोले — हे शौनकादि ऋषियो ! आप आदरपूर्वक सब सुनें । मैं बड़े प्रेम से पुष्पार्पण की विधि बता रहा हूँ ॥ २ ॥ देवर्षि नारद ने भी इसी विधि को विधाता ब्रह्माजी से पूछा था । तब उन्होंने बड़े ही प्रेम से शिव-पुष्पार्पण की विधि बतायी थी ॥ ३ ॥

शिवमहापुराण

ब्रह्माजी बोले — हे नारद ! लक्ष्मी-प्राप्ति की इच्छावाले को कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प से भगवान् शिव की पूजा करनी चाहिये । हे विप्र ! यदि एक लाख की संख्या में इन पुष्पों द्वारा भगवान् शिव की पूजा की जाय, तो सारे पापों का नाश होता है और लक्ष्मी की भी प्राप्ति हो जाती है, इसमें संशय नहीं है ॥ ४-५ ॥ बीस कमलों का एक प्रस्थ बताया गया है और एक सहस्र बिल्वपत्रों का आधा प्रस्थ कहा गया है ॥ ६ ॥ एक सहस्र शतपत्र से आधे प्रस्थ की परिभाषा की गयी है । सोलह पलों का एक प्रस्थ होता है और दस टंकों का एक पल । जब इसी मान से [पत्र, पुष्प आदिको] तुला पर रखे, तो वह सम्पूर्ण अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है और यदि निष्कामभावना से युक्त है, तो वह [इस पूजनसे] शिवस्वरूप हो जाता है ॥ ७-८ ॥

हे मुनीश्वरो ! जो राज्य प्राप्त करने का इच्छुक है, उसको दस करोड़ पार्थिव शिवलिंगों की पूजा के द्वारा भगवान् शंकर को प्रसन्न करना चाहिये ॥ ९ ॥ प्रत्येक पार्थिव-लिंग पर मन्त्रसहित पुष्प, खण्डरहित धान के अक्षत और सुगन्धित चन्दन चढ़ाकर अखण्ड जलधारा से अभिषेक करना चाहिये । तदनन्तर प्रत्येक पार्थिव लिंग पर मन्त्र सहित अच्छे-अच्छे बिल्वपत्र अथवा शतपत्र और कमलपुष्प समर्पित करना चाहिये । प्राचीन ऋषियों ने कहा है कि यदि शिवलिंग पर शंखपुष्पी के फूल चढ़ाये जायँ, तो इस लोक और परलोक में सभी कामनाओं का दिव्य फल प्राप्त होता है ॥ १०-१२ ॥

धूप, दीप, नैवेद्य, अर्घ्य, आरती, प्रदक्षिणा, नमस्कार, क्षमाप्रार्थना और विसर्जन करके जिसने ब्राह्मणभोजन करा दिया, उसे भगवान् शंकर अवश्य ही राज्य प्रदान करते हैं । जो मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बनने का इच्छुक है, वह [उपर्युक्त कही गयी विधिके अनुसार] उसके आधे अर्थात् पाँच करोड़ पार्थिव शिवलिंगों का यथाविधि पूजन करे । कारागार में पड़े मनुष्य को एक लाख पार्थिवलिंगों से भगवान् शंकर की पूजा करनी चाहिये ॥ १३-१५ ॥ यदि रोगग्रस्त हो, तो उसे उस संख्या के आधे अर्थात् पचास हजार पार्थिव लिंगों से शिव का पूजन करना चाहिये । कन्या चाहनेवाले मनुष्य को उसके आधे अर्थात् पच्चीस हजार पार्थिव लिंगों से शिव का पूजन करना चाहिये ॥ १६ ॥

जो विद्या प्राप्त करने की इच्छा रखता है, उसे चाहिये कि वह उसके भी आधे पार्थिव लिंगों से शिव की अर्चना करे । जो वाणी का अभिलाषी हो, उसे घी से शिव की पूजा करनी चाहिये ॥ १७ ॥ अभिचारादि कर्मों में कमलपुष्पों से शिवपूजन का विधान है । सामन्त राजाओं पर विजय प्राप्त करने के लिये एक करोड़ कमल-पुष्पों से शिव का पूजन करना प्रशस्त माना गया है । राजाओं को अपने अनुकूल करने के लिये दस लाख कमलपुष्पों से पूजन करने का विधान है ॥ १८-१९ ॥ यश प्राप्त करने के लिये उतनी ही संख्या कही गयी है और वाहन आदि की प्राप्ति के लिये एक हजार पार्थिव लिंगों की पूजा करनी चाहिये । मोक्ष चाहनेवाले को पाँच करोड़ कमलपुष्पों से उत्तम भक्ति के साथ शिव की पूजा करनी चाहिये ॥ २० ॥

ज्ञान चाहनेवाला एक करोड़ कमलपुष्प से लोककल्याणकारी शिव का पूजन करे और शिव का दर्शन प्राप्त करने का इच्छुक उसके आधे कमलपुष्प से उनकी पूजा करे । कामनाओं की पूर्ति के लिये महामृत्युंजय मन्त्र का जप भी करना चाहिये । पाँच लाख महामृत्युंजय मन्त्र का जप करने पर भगवान् सदाशिव निश्चित ही प्रत्यक्ष हो जाते हैं ॥ २१-२२ ॥ एक लाख के जप से शरीर की शुद्धि होती है, दूसरे लाख के जप से पूर्वजन्म की बातों का स्मरण होता है, तीसरे लाख के जप से सम्पूर्ण काम्य वस्तुएँ प्राप्त होती हैं । चौथे लाख का जप होनेपर भगवान् शिव का दर्शन होता है और जब पाँचवें लाख का जप पूरा होता है, तब भगवान् शिव जप का फल निःसन्देह प्रदान करते हैं । इसी मन्त्र का दस लाख जप हो जाय, तो सम्पूर्ण फल की सिद्धि होती है ॥ २३-२४ ॥

जो मोक्ष की अभिलाषा रखता है, वह एक लाख दर्भो द्वारा शिव का पूजन करे । मुनिश्रेष्ठ ! शिव की पूजा में सर्वत्र लाख की ही संख्या समझनी चाहिये ॥ २५ ॥ आयु की इच्छावाला पुरुष एक लाख दूर्वाओं द्वारा पूजन करे । जिसे पुत्र की अभिलाषा हो, वह धतूरे के एक लाख फूलों से पूजा करे ॥ २६ ॥ लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभदायक माना गया है । अगस्त्य के फूलों से पूजा करनेवाले पुरुष को महान् यश की प्राप्ति होती है ॥ २७ ॥ यदि तुलसीदल से शिव की पूजा करे, तो उपासक को भोग और मोक्ष का फल प्राप्त होता है । लाल और सफेद मदार, अपामार्ग और कह्लार के फूलों द्वारा पूजा करने से प्रताप की प्राप्ति होती है ॥ २८ ॥

अड़हुल के फूलों से की हुई पूजा शत्रुविनाशक कही गयी है । करवीर के एक लाख फूल यदि शिवपूजन के उपयोग में लाये जायँ, तो वे यहाँ रोगों का उच्चाटन करनेवाले होते हैं ॥ २९ ॥ बन्धूक [गुलदुपहरिया]-के फूलों द्वारा [पूजन करनेसे] आभूषण की प्राप्ति होती है । चमेली से शिव की पूजा करके मनुष्य वाहनों को उपलब्ध करता है, इसमें संशय नहीं है । अतसी के फूलों से महादेवजी का पूजन करनेवाला पुरुष भगवान् विष्णु का प्रिय हो जाता है ॥ ३० ॥ शमीपत्रों से [पूजा करके] मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है । बेला के फूल चढ़ाने पर भगवान् शिव अत्यन्त शुभलक्षणा पत्नी प्रदान करते हैं ॥ ३१ ॥ जूही के फूलों से पूजा की जाय, तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती । कनेर के फूलों से पूजा करने पर मनुष्यों को वस्त्र-सम्पदा की प्राप्ति होती है ॥ ३२ ॥
सेंदुआरि या शेफालिका के फूलों से लोक में शिव का पूजन किया जाय, तो मन निर्मल होता है । एक लाख बिल्वपत्रों से पूजन करने पर मनुष्य अपनी सारी कामनाओं को प्राप्त कर लेता है ॥ ३३ ॥ हरसिंगार के फूलों से पूजा करने पर सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होती है । ऋतु में पैदा होनेवाले फूल [यदि शिवकी पूजामें समर्पित किये जायें, तो वे] मोक्ष देनेवाले होते हैं, इसमें संशय नहीं है ॥ ३४ ॥ राई के फूल शत्रुओं के लिये अनिष्टकारी होते हैं । इन फूलों को एक लाख की संख्या में शिव के ऊपर चढ़ाया जाय, तो भगवान् शिव प्रचुर फल प्रदान करते हैं ॥ ३५ ॥ चम्पा और केवड़े को छोड़कर अन्य कोई ऐसा फूल नहीं है, जो भगवान् शिव को प्रिय न हो, अन्य सभी पुष्पों को समर्पित करना चाहिये ॥ ३६ ॥

हे सत्तम ! अब इसके अनन्तर शंकर के पूजन में धान्यों का प्रमाण तथा [उनके अर्पण का] फल-यह सब प्रेमपूर्वक सुनिये ॥ ३७ ॥ हे विप्र ! महादेव के ऊपर परम भक्ति से अखण्डित चावल चढ़ाने से मनुष्यों की लक्ष्मी बढ़ती है ॥ ३८ ॥ साढ़े छः प्रस्थ और दो पलभर चावल संख्या में एक लाख हो जाते है । ऐसा लोगों का कहना है ॥ ३९ ॥ रुद्रप्रधान मन्त्र से पूजा करके भगवान् शिव के ऊपर बहुत सुन्दर वस्त्र चढ़ाये और उसीपर चावल रखकर समर्पित करे, तो उत्तम है ॥ ४० ॥ तत्पश्चात् उसके ऊपर गन्ध, पुष्प आदि के साथ एक श्रीफल चढ़ाकर धूप आदि निवेदन करे, तो पूजा का पूरा-पूरा फल प्राप्त होता है ॥ ४१ ॥

प्रजापति देवता से चिह्नांकित दो चाँदी के रुपये अथवा माषसंख्या से उपदेष्टा को दक्षिणा देनी चाहिये अथवा यथाशक्ति जितनी दक्षिणा हो सके, उतनी दक्षिणा बतायी गयी है ॥ ४२ ॥ वहाँ शिव के समीप बारह ब्राह्मणों को भोजन कराये । इससे मन्त्रपूर्वक सांगोपांग लक्षपूजा सम्पन्न होती है । जहाँ सौ मन्त्र जपने की विधि हो, वहाँ एक सौ आठ मन्त्र जपने का विधान बताया गया है ॥ ४३१/२ ॥

एक लाख पल तिलों का अर्पण पातकों का नाश करनेवाला होता है । ग्यारह पल (६४ माशा)-में एक लाख की संख्या में तिल होते हैं । [अतः इस परिमाण के अनुसार] तिल द्वारा अपने कल्याण के लिये पूर्व की भाँति पूर्वोक्त विधि से शिव की पूजा करनी चाहिये ॥ ४४-४५ ॥ इस अवसर पर मनुष्य को ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये । इससे महापातकजन्य दुःख निश्चित ही दूर हो जाता है ॥ ४६ ॥ इसी प्रकार एक लाख यव से भी की गयी शिव की पूजा उत्तम कही गयी है । साढ़े आठ प्रस्थ और दो पल (साढ़े आठ सेर तेरह माशा) यव प्राचीन परिमाण के अनुसार संख्या में एक लाख यव के बराबर होते हैं । मुनियों ने यव के द्वारा की गयी पूजा को स्वर्ग का सुख प्रदान करनेवाली बताया है ॥ ४७-४८ ॥ फलप्राप्ति के इच्छुक लोगों को (यवपूजा करनेके पश्चात्) ब्राह्मणों के लिये प्रजापति देवता के द्रव्यभूत चाँदी के रुपये भी दक्षिणारूप में देना चाहिये । गेहूँ से भी की गयी शिवपूजा प्रशस्त है । यदि एक लाख गेहुँ से शिव की पूजा की जाय, तो उसकी सन्तति की अभिवृद्धि होती है । विधानतः आधा द्रोण (आठ सेर) परिमाण में गेहूँ की संख्या एक लाख होती है । शेष विधान विधिपूर्वक करने चाहिये ॥ ४९-५० ॥

(एक लाख) मूँग से पूजन किये जाने पर भगवान् शिव सुख देते हैं । साढ़े सात प्रस्थ और दो पल (साढ़े सात सेर तेरह माशा भर) मूँग संख्या में एक लाख होती है-ऐसा प्राचीन लोगों ने कहा है । इसमें ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये ॥ ५१-५२ ॥ प्रियंगु (काकुन)-के द्वारा धर्माध्यक्ष परमात्मा शिव की पूजा करने पर धर्म, अर्थ और काम की अभिवृद्धि होती है । वह पूजा सभी सुखों को देनेवाली है । प्राचीन लोगों ने कहा है कि एक प्रस्थ में एक लाख प्रियंगु होते हैं । इसके अनन्तर बारह ब्राह्मणों को भोजन कराना बताया गया है ॥ ५३-५४ ॥

राई से की गयी शिवपूजा शत्रुविनाशक कही गयी है । बीस पल (३० माशा) भर सरसों के एक लाख दाने हो जाते हैं । उन एक लाख सरसों के दानों से की गयी शिव की पूजा निश्चित ही शत्रु के लिये घातक होती है – ऐसा कहा गया है । अरहर की पत्तियों से शिवजी को सुशोभित करके उनका पूजन करना चाहिये ॥ ५५-५६ ॥

शिव की पूजा करने के पश्चात् एक गौ और एक बैल का दान करना चाहिये । मरीचि (काली मिर्च)-से की गयी शिव की पूजा शत्रु का नाश करनेवाली बतायी गयी है । अरहर की पत्तियों से रँग करके शिव की पूजा करनी चाहिये । यह पूजा नाना प्रकार के सुख एवं सभी अभीष्ट फलों को देनेवाली है ॥ ५७-५८ ॥

हे मुनिसत्तम! [शिवपूजामें] इस प्रकार से प्रयुक्त धान्यों का परिमाण तो हमने आपलोगों को बता दिया है । हे मुनीश्वर ! अब प्रेमपूर्वक एक लाख पुष्पों का परिमाण भी सुनें ॥ ५९ ॥

सूक्ष्म मान को प्रदर्शित करनेवाले व्यासजी ने एक प्रस्थ में शंखपुष्पी के पुष्पों की संख्या एक लाख बतायी है ॥ ६० ॥ ग्यारह प्रस्थ में चमेली के फूलों का मान एक लाख कहा गया है । इतना ही जूही के फूलों का मान है और उसका आधा राई के फूलों का मान होता है ॥ ६१ ॥ मल्लिका [मालती]-के लाख फूलों का पूर्ण मान बीस प्रस्थ है । तिल के पुष्पों का मान मल्लिका के मान की अपेक्षा एक प्रस्थ कम होता है ॥ ६२ ॥ कनेर के पुष्पों का मान तिल के पुष्पों के मान का तिगुना कहा गया है । पण्डितों ने निर्गुण्डी के पुष्पों का भी उतना ही मान बताया है ॥ ६३ ॥ केवड़ा, शिरीष तथा बन्धुजीव (दुपहरिया)-के एक लाख पुष्पों का मान दस प्रस्थ के बराबर होता है ॥ ६४ ॥ इस तरह अनेक प्रकार के मान को दृष्टि में रखकर सभी कामनाओं की सिद्धि के लिये तथा मुक्ति प्राप्त करने के लिये कामनारहित होकर शिव की पूजा करनी चाहिये । ६५ ॥

अब मैं जलधारा-पूजा के महान् फल को कह रहा हूँ, जिसके श्रवणमात्र से ही मनुष्यों का कल्याण हो जाता है ॥ ६६ ॥

भक्तिपूर्वक सदाशिव की विधिवत् पूजा करने के पश्चात् उन्हें जलधारा समर्पित करे ॥ ६७ ॥ [सन्निपातादि] ज्वर में होनेवाले प्रलाप की शान्ति के लिये भगवान् शिव को दी जानेवाली कल्याणकारी जलधारा शतरुद्रिय मन्त्र से, एकादश रुद्र से, रुद्रमन्त्रों के जप से, पुरुषसूक्त से, छः ऋचावाले रुद्रसूक्त से, महामृत्युंजयमन्त्र से, गायत्रीमन्त्र से अथवा शिव के शास्त्रोक्त नामों के आदि में प्रणव और अन्त में नमः पद जोड़कर बने हुए मन्त्रों द्वारा अर्पित करनी चाहिये ॥ ६८-७० ॥

सुख और सन्तान की वृद्धि के लिये जलधारा द्वारा पूजन उत्तम होता है । उत्तम भस्म धारण करके उपासक को प्रेमपूर्वक नाना प्रकार के शुभ एवं दिव्य द्रव्यों द्वारा शिव की पूजा करनी चाहिये और शिव पर उनके सहस्रनाम मन्त्रों से घृत की धारा गिरानी चाहिये । ऐसा करने पर वंश का विस्तार होता है, इसमें संशय नहीं है ॥ ७१-७२ ॥ इस प्रकार यदि दस हजार मन्त्रों द्वारा शिवजी की पूजा की जाय तो प्रमेह रोग की शान्ति होती है और उपासक को मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है । यदि कोई नपुंसकता को प्राप्त हो तो वह घी से शिवजी की भली-भाँति पूजा करे । इसके पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराये, साथ ही उसके लिये मुनीश्वरों ने प्राजापत्यव्रत का भी विधान किया है ॥ ७३ ॥

यदि बुद्धि जड़ हो जाय, तो उस अवस्था में पूजक को केवल शर्करा-मिश्रित दुग्ध की धारा चढ़ानी चाहिये । ऐसा करने पर उसकी बृहस्पति के समान उत्तम बुद्धि हो जाती है । जबतक दस हजार मन्त्र न हो जायँ, तबतक दुग्धधारा द्वारा भगवान् शिव का पूजन करते रहना चाहिये ॥ ७४-७५ ॥

जब शरीर में अकारण ही उच्चाटन होने लगे, जी उचट जाय, जहाँ कहीं भी प्रेम न रहे, दुःख बढ़ जाय और अपने घर में सदा कलह होने लगे, तब पूर्वोक्त रूप से दूध की धारा चढ़ाने से सारा दुःख नष्ट हो जाता है ॥ ७६-७७ ॥ शत्रुओं को सन्तप्त करने के लिये पूर्ण प्रयत्न के साथ भगवान् शंकर के ऊपर तेल की धारा अर्पित करनी चाहिये । ऐसा करने पर निश्चित ही कर्म की सिद्धि होती है ॥ ७८ ॥ सुगन्धित तेल की धारा अर्पित करने पर भोगों की वृद्धि होती है । यदि मधु की धारा से शिव की पूजा की जाय, तो राजयक्ष्मा का रोग दूर हो जाता है । शिवजी के ऊपर ईख के रस की धारा चढ़ायी जाय, तो वह भी सम्पूर्ण आनन्द की प्राप्ति करानेवाली होती है ॥ ७९-८० ॥

गंगाजल की धारा तो भोग और मोक्ष दोनों फलों को देनेवाली है । ये सब जो-जो धाराएँ बतायी गयी हैं, इन सबको मृत्युंजय मन्त्र से चढ़ाना चाहिये, उसमें भी उक्त मन्त्र का विधानतः दस हजार जप करना चाहिये और ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये ॥ ८१-८२ ॥

हे मुनीश्वर ! जो आपने पूछा था, वह सब मैंने आपको बता दिया । संसार में सदाशिव की यह पूजा समस्त कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ और सफल है ॥ ८३ ॥ भक्तिपूर्वक यथाविधि स्कन्द और उमा के सहित भगवान् शम्भु की पूजा करके भक्त जो फल प्राप्त करता है, उसे जैसा सुना है, वैसा ही कह रहा हूँ ॥ ८४ ॥ वह इस लोक में पुत्र-पौत्र आदि के साथ समस्त सुखों का उपभोग करके अन्त में सभी सुखों को देनेवाले शिवलोक को जाता है ॥ ८५ ॥ वह भक्त वहाँ करोड़ों सूर्य के समान देदीप्यमान तथा सभी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले विमानों पर गान-वाद्ययन्त्रों से युक्त रुद्रकन्याओं से घिरकर बैठे हुए शिवरूप में प्रलयपर्यन्त क्रीड़ा करता है । तदनन्तर अविनाशी परम ज्ञान को प्राप्त करके मोक्ष को पा लेता है ॥ ८६ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के प्रथम खण्ड में सृष्टि-उपाख्यान में शिवपूजनवर्णन नामक चौदहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १४ ॥

 

 

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