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शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [चतुर्थ-कुमारखण्ड] – अध्याय 17
श्री गणेशाय नमः
श्री साम्बसदाशिवाय नमः
सत्रहवाँ अध्याय
पुत्र के वध से कुपित जगदम्बा का अनेक शक्तियों को उत्पन्न करना और उनके द्वारा प्रलय मचाया जाना, देवताओं और ऋषियों का स्तवन द्वारा पार्वती को प्रसन्न करना, शिवजी के आज्ञानुसार हाथी का सिर लाया जाना और उसे गणेश के धड़ से जोड़कर उन्हें जीवित करना

नारदजी बोले — हे ब्रह्मन् ! हे महाप्राज्ञ ! अब आप मुझे बताइये कि सम्पूर्ण समाचार सुन लेने पर महादेवी ने क्या किया ? उसे ठीक-ठीक सुनना चाहता हूँ ॥ १ ॥

ब्रह्माजी बोले — हे मुनिश्रेष्ठ ! उसके बाद जगदम्बा का जो चरित्र हुआ, उसे अब मैं सम्पूर्ण रूप से कह रहा हूँ, सुनिये ॥ २ ॥ गणाधिप उस गणेश के मार दिये जाने पर शिवजी के गणों ने मृदंग एवं पटह बजाये तथा महान् उत्सव किया ॥ ३ ॥ हे मुनीश्वर ! शिवजी भी गणेशजी का शिरश्छेदनकर ज्यों ही दुखी हुए, उसी समय गिरिजादेवी अत्यन्त क्रोधित हो गयीं ॥ ४ ॥

शिवमहापुराण

उन्होंने कहा — हाय, मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ ? मुझे बहुत बड़ा दुःख उत्पन्न हो गया है । इसके मरने से तो मुझे बड़ा क्लेश हुआ, वह दुःख किस प्रकार से दूर हो सकता है ! ॥ ५ ॥ सभी देवताओं तथा गणों ने मेरे पुत्र को मार डाला है । अतः मैं उनका नाश कर दूँगी अथवा प्रलय कर दूँगी ॥ ६ ॥

इस प्रकार दुखी हुई उन सर्वलोक-महेश्वरी ने उसी क्षण कुपित होकर करोड़ों शक्तियों को उत्पन्न किया ॥ ७ ॥ तेज से जाज्वल्यमान उन उत्पन्न हुई शक्तियों ने जगदम्बा पार्वती को नमस्कार कर कहा — हे मातः ! आज्ञा दीजिये ॥ ८ ॥

हे मुनीश्वर ! यह सुनकर शम्भू की शक्ति महामाया प्रकृति ने क्रोध में भरकर उन सभी शक्तियों से कहा — ॥ ९ ॥

देवी बोलीं — हे शक्तियो ! हे देवियो ! तुम सब मेरी आज्ञा से प्रलय कर डालो; इसमें आप सभी को विचार नहीं करना चाहिये ॥ १० ॥ हे सखियो ! तुमलोग देवता, ऋषि, यक्ष, राक्षस और अपने तथा दूसरे सबको हठपूर्वक खा डालो ॥ ११ ॥

ब्रह्माजी बोले — तब पार्वती की आज्ञा पाते ही वे सभी शक्तियाँ क्रोध में भरकर देवता आदि सभी का संहार करने के लिये उद्यत हो गयीं ॥ १२ ॥ जिस प्रकार अग्नि तृणों का संहार कर देती है, उसी प्रकार वे समस्त शक्तियाँ भी संहार करने लगीं ॥ १३ ॥ [शिव के] गणाधिप, विष्णु, ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, यक्षराज, स्कन्द अथवा सूर्य आदि का वे निरन्तर संहार करने लगीं । जहाँ-जहाँ दृष्टि जाती, वहाँ-वहाँ केवल शक्तियाँ ही दिखायी पड़ती थीं ॥ १४-१५ ॥

उस समय कराली, कुब्जका, खंजा, लम्बशीर्षा आदि अनेक शक्तियाँ देवताओं को हाथ से पकड़कर मुख में डालने लगीं ॥ १६ ॥ उस संहार को देखकर हर, ब्रह्मा, हरि तथा इन्द्रादि सभी देवतागण एवं ऋषि इस सन्देह में पड़ गये कि क्या देवी अकाल में ही प्रलय कर देंगी ? इस प्रकार उनमें जीवन की आशा समाप्त-सी हो गयी ॥ १७-१८ ॥ सभी लोगों ने मिलकर कहा कि अब हमें क्या करना चाहिये — सब लोग इसपर विचार करें । इस प्रकार परस्पर विचार करते हुए वे कहने लगे — ॥ १९ ॥

यदि गिरिजादेवी प्रसन्न हो जायँ तो शान्ति हो सकती है अन्यथा करोड़ों उपायों से भी शान्ति सम्भव नहीं है ॥ २० ॥

अनेक प्रकार की लीलाओं को करने में प्रवीण शिवजी भी सबको मोहित करते हुए लौकिक गति का आश्रय लेकर दुःख में पड़ गये ॥ २१ ॥ किंतु सभी देवताओं की कमर उस समय टूट गयी, जब पार्वती के पास जाने का प्रश्न उठा । उन्होंने सोचा कि पार्वती साक्षात् क्रोध की मूर्ति हैं, कोई भी उनके सामने जाने का साहस नहीं कर सकता है ॥ २२ ॥ हे मुने ! उस समय देवता, दानवगण, दिक्पाल, यक्ष, किन्नर, मुनि, विष्णु, ब्रह्मा एवं महाप्रभु शंकर आदि तथा अपना-पराया कोई भी गिरिजा के सामने खड़ा होने में समर्थ नहीं हुआ ॥ २३-२४ ॥ सभी ओर से पार्वती के जलते हुए उस दाहक तेज को देखकर सभी लोग दूर खड़े हो गये ॥ २५ ॥

हे मुने ! उसी समय दिव्य दर्शनवाले आप नारद देवगणों को सुखी करने वहाँ पहुँच गये । पास आकर मुझ ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर को प्रणामकर सबके साथ मिलकर आप कहने लगे कि सोच-विचारकर ही कोई काम करना चाहिये ॥ २६-२७ ॥ उसके बाद सभी देवताओं ने आप महात्मा के साथ मन्त्रणा की कि इस दुःख की शान्ति किस प्रकार होगी; इसके बाद उन्होंने कहा — जबतक गिरिजादेवी कृपा नहीं करेंगी, तबतक दुःख की शान्ति सम्भव नहीं है, इसमें कोई विचार नहीं करना चाहिये ॥ २८-२९ ॥

उसके बाद सभी ऋषि आपको साथ लेकर पार्वती के पास गये और क्रोध शान्त करने के लिये शिवा को प्रसन्न करने लगे ॥ ३० ॥ सभी ने बारम्बार प्रणाम किया और अनेक स्तोत्रों से स्तुति करके उन्हें प्रसन्न करते हुए देवगणों की आज्ञा से प्रेमपूर्वक कहा — ॥ ३१ ॥

देवर्षि बोले — हे जगदम्ब ! आपको नमस्कार है, आप शिवा को नमस्कार है. आप चण्डिका को नमस्कार है, आप कल्याणी को नमस्कार है ॥ ३२ ॥ हे अम्ब ! आप ही आदिशक्ति हैं, आप ही सर्वदा सृष्टि करनेवाली, पालन करनेवाली तथा प्रलय करनेवाली शक्ति हैं ॥ ३३ ॥ हे देवेशि ! आप प्रसन्न हों, शान्ति कीजिये । आपको नमस्कार है, हे देवि ! आपके क्रोध से सारा त्रैलोक्य विकल हो रहा है ॥ ३४ ॥

ब्रह्माजी बोले — इस प्रकार आप सभी ऋषियों ने मिलकर पराम्बा की स्तुति की, तब भी क्रोधपूर्ण दृष्टि से उनकी ओर देखती हुई उन शिवा ने कुछ भी नहीं कहा ॥ ३५ ॥ पुनः सभी ऋषियों ने उनके चरणकमल को नमस्कारकर परम भक्ति से हाथ जोड़कर धीरे से शिवा से कहा — ॥ ३६ ॥

ऋषिगण बोले — हे देवि ! क्षमा कीजिये, क्षमा कीजिये । इस समय प्रलय होना चाहता है । हे अम्बिके ! आपके स्वामी यहीं पर स्थित हैं, देखिये, देखिये ॥ ३७ ॥ हम कौन हैं ? ये ब्रह्मा, विष्णु आदि देवता कौन हैं ? वस्तुतः हम सब आपकी प्रजाएँ हैं और हाथ जोड़कर खड़े हैं ॥ ३८ ॥ हे परमेश्वरि ! हम सभी का अपराध क्षमा कीजिये । हे शिवे ! सभी लोग व्याकुल हैं, अतः इनकी शान्ति कीजिये ॥ ३९ ॥
ब्रह्माजी बोले — ऐसा कहकर सभी ऋषिगण अत्यन्त दीनता से व्याकुल हो अम्बिका के सामने हाथ जोड़े हुए खड़े रहे ॥ ४० ॥ इस प्रकार उनका वचन सुनकर चण्डिका प्रसन्न हो गयीं और करुणार्द्रचित्त हो ऋषियों से कहने लगीं — ॥ ४१ ॥

देवी बोलीं — यदि मेरा पुत्र जीवित हो जाय और तुमलोगों के बीच प्रथम पूज्य हो, तो यह संहार नहीं होगा । यह आज से सबका अध्यक्ष हो जाय और यदि तुमलोग उसे ऐसा कर दो तो लोक में शान्ति हो सकती है अन्यथा तुमलोगों को सुख की प्राप्ति नहीं होगी ॥ ४२-४३ ॥

ब्रह्माजी बोले — [भगवती के द्वारा] इस प्रकार कहे जाने पर आप सभी ऋषियों ने आ करके देवगणों के समीप जाकर उन देवताओं से सारा वृत्तान्त निवेदन किया ॥ ४४ ॥ तब यह सुनकर दुःखित इन्द्रादि सभी देवगणों ने हाथ जोड़कर प्रणाम करके [इस वृत्तान्त को] शंकर से निवेदित किया ॥ ४५ ॥ यह सुनकर शिवजी ने भी देवताओं से कहा — हमलोगों को भी वही करना चाहिये, जिससे सारे संसार का कल्याण हो ॥ ४६ ॥ अतः आपलोग उत्तर दिशा की ओर जाइये और सर्वप्रथम जो मिले, उसका सिर लाकर इसके धड़ में जोड़ दीजिये ॥ ४७ ॥

ब्रह्माजी बोले — तदनन्तर शिव की आज्ञा पालन करनेवाले देवताओं ने ऐसा ही किया । गणेशजी का शरीर लाकर विधिपूर्वक उसका प्रक्षालन करके उसकी पूजाकर वे उत्तर दिशा की ओर चल दिये, वहीं पर उन्हें सर्वप्रथम एक दाँतवाला हाथी मिला ॥ ४८-४९ ॥ तब उसी का सिर लेकर उन्होंने गणेश के शरीर में जोड़ दिया । सिर जोड़कर सभी देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर को प्रणाम करके यह वचन कहा — आपने जैसा कहा था, वैसा हमने किया, अब इसके बाद जो कार्य शेष हो, उसे आपको करना चाहिये ॥ ५०-५१ ॥

इसके बाद शिव के गण तथा देवता सुखपूर्वक सुशोभित हुए । पुनः शिवजी ने जैसा कहा, वैसा ही उन लोगों ने पालन किया ॥ ५२ ॥ तब ब्रह्मा, विष्णु आदि देवगण अपने प्रभु निर्गुण ब्रह्म ईश्वर शिव को प्रणाम करके उनसे बोले — जिस प्रकार हम महात्मालोग आपके तेज से उत्पन्न हुए हैं, उसी प्रकार आपका तेज वेदमन्त्रों के प्रभाव से इस शरीर में भी प्रकट हो जाय ॥ ५३-५४ ॥

इस प्रकार उन लोगों ने शिवजी का स्मरण करके मन्त्र के द्वारा अभिमन्त्रित उत्तम जल को गणेश के शरीर पर छिड़का ॥ ५५ ॥ उस जल के स्पर्शमात्र से ही वह बालक शिवजी की इच्छा से चेतनायुक्त हो जीवित हो गया और सोये हुए की भाँति उठ बैठा ॥ ५६ ॥ वह सुभग, अत्यन्त सुन्दर, हाथी के मुखवाला, लाल वर्णवाला, प्रसन्न मुखमण्डलवाला, अत्यन्त तेजस्वी तथा मनोहर आकृतिवाला था ॥ ५७ ॥ हे मुनीश्वर ! उस बालक पार्वतीपुत्र को जीवित देखकर सभी लोग अत्यन्त प्रसन्न हो गये और सबका दुःख नष्ट हो गया ॥ ५८ ॥

इसके बाद हर्ष से युक्त सभी लोगों ने देवी को उसे दिखाया और अपने पुत्र को जीवित देखकर देवी अत्यन्त प्रसन्न हुईं ॥ ५९ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के चतुर्थ कुमारखण्ड में गणेशजीवनवर्णन नामक सत्रहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १७ ॥

 

 

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