September 25, 2019 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [पंचम-युद्धखण्ड] – अध्याय 36 श्री गणेशाय नमः श्री साम्बसदाशिवाय नमः छत्तीसवाँ अध्याय शंखचूड को उद्देश्यकर देवताओं का दानवों के साथ महासंग्राम सनत्कुमार बोले — उस दूत ने वहाँ जाकर शिवजी की सारी बात तथा उनका निश्चय विस्तारपूर्वक यथार्थ रूप से कह दिया ॥ १ ॥ उसे सुनकर उस प्रतापी दानवेन्द्र शंखचूड ने बड़े प्रेम के साथ युद्ध करने की चुनौती स्वीकार कर ली ॥ २ ॥ शिवमहापुराण इसके बाद वह बड़ी शीघ्रता के साथ अमात्यों के सहित विमान पर आरूढ़ हुआ और शंकरजी के साथ युद्ध करने के लिये उसने अपनी सेना को आज्ञा दे दी ॥ ३ ॥ शिवजी ने भी शीघ्रता से अपनी सेना एवं देवताओं को [युद्ध के लिये] प्रेरित किया और वे स्वयं सर्वेश्वर होकर लीलापूर्वक युद्ध के लिये तैयार हो गये ॥ ४ ॥ इसके बाद शीघ्र ही युद्ध प्रारम्भ हो गया । उस समय अनेक प्रकार के बाजे बजने लगे, कोलाहल और वीरों की गर्जनाएँ होने लगीं ॥ ५ ॥ हे मुने ! देव और दानवों का परस्पर युद्ध होने लगा । देवता तथा दानव धर्मपूर्वक युद्ध करने लगे ॥ ६ ॥ स्वयं महेन्द्र वृषपर्वा के साथ तथा भास्कर विप्रचित्ति के साथ धर्मपूर्वक युद्ध करने लगे ॥ ७ ॥ दम्भ के साथ विष्णु का महान् युद्ध होने लगा । काल कालासुर के साथ, अग्नि गोकर्ण के साथ, कुबेर कालकेय के साथ, विश्वकर्मा मय के साथ, मृत्यु भयंकर के साथ, यमराज संहार के साथ, वरुण कालम्बिक के साथ, समीरण चंचल के साथ, बुध घटपृष्ठ के साथ, शनैश्चर रक्ताक्ष के साथ, जयन्त रत्नसार के साथ, अष्ट वसु वर्चस्गणों के साथ, अश्विनीकुमार दोनों दीप्तिमानों के साथ, नलकूबर धूम्र के साथ, धर्म धुरन्धर के साथ, मंगल गणकाक्ष के साथ, वैश्वान शोभाकर के साथ, कामदेव पिपिट के साथ, बारहों आदित्य गोकामुख, चूर्ण, खड्ग नामक असुर, धूम्र, संहल, विश्व, प्रतापी एवं पलाश के साथ धर्मपूर्वक युद्ध करने लगे । शिव की सहायता प्राप्तकर देवगण असुरों के साथ युद्ध करने लगे ॥ ८-१४ ॥ एकादश महारुद्र भयंकर, महाबली, महापराक्रमी तथा वीर ग्यारह असुरों से युद्ध करने लगे । महामणि उग्रचण्ड आदि के साथ, चन्द्रमा राहु के साथ तथा बृहस्पति शुक्राचार्य के साथ धर्मपूर्वक युद्ध करने लगे । नन्दीश्वर आदि शिवगण भी दानवों के साथ युद्ध करने लगे, उसका पृथक्-पृथक् वर्णन विस्तार के भय से नहीं किया गया ॥ १५-१७ ॥ हे मुने ! उस समय शिवजी काली एवं पुत्र के साथ वट के मूल में स्थित रहे और समस्त सैन्यसमूह निरन्तर युद्ध कर रहे थे । रत्नजटित आभूषणों से भूषित शंखचूड भी करोड़ों दानवों से युक्त रत्नजटित मनोहर सिंहासन पर बैठा हुआ था । इसके बाद देवताओं एवं असुरों का विनाश करनेवाला महायुद्ध छिड़ गया । उस महायुद्ध में नाना प्रकार के दिव्य आयुध चल रहे थे ॥ १८-२० ॥ गदा, ऋष्टि, पट्टिश, चक्र, भुशुण्डी, प्रास, मुद्गर, निस्त्रिंश, भाला, परिघ, शक्ति, उन्मुख, परशु, बाण, तोमर, खड्ग, सहस्रों तोपें, भिन्दिपाल एवं अन्य शस्त्र वीरों के हाथों में शोभित हो रहे थे ॥ २१-२२ ॥ महान् उत्साह से युक्त वीर लोग युद्ध में गरजती हुई दोनों सेनाओं के वीरों के सिरों को इन आयुधों से काटने लगे । हाथी, घोड़े, रथ, पैदल तथा अनेक प्रकार के सवारसहित वाहन युद्ध में कट रहे थे ॥ २३-२४ ॥ भुजा, जङ्घा, हाथ, कटि, दोनों कान, पैर, ध्वज, बाण, तलवार, कवच एवं उत्तम आभूषण कटकर पृथ्वी पर गिरने लगे । उस समय योद्धाओं के कटे हुए किरीट-कुण्डलयुक्त सिरों से तथा हाथियों की कटी हुई सूँड़ों से, कटी हुई आभूषणयुक्त भुजाओं तथा कटे हुए आयुधों एवं कटे हुए अन्य अंगों से समस्त पृथ्वी मधुमक्खी के छत्तों के समान पट गयी ॥ २५–२७ ॥ युद्ध में कटे हुए सिरों की आँखों से कबन्ध की ओर देखते हुए योद्धा शस्त्र धारण की हुई भुजाओं को ऊपर की ओर उठाकर जहाँ-तहाँ दौड रहे थे ॥ २८ ॥ महाबलवान् एवं महापराक्रमी वीर तीव्र नाद करते हुए अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से परस्पर युद्ध कर रहे थे । कुछ योद्धा युद्ध में सुवर्णमुखवाले बाणों से योद्धाओं को मारकर जलवृष्टि करनेवाले मेघों के समान वीरगर्जना कर रहे थे । कोई वीर चारों ओर से अपने बाणों से रथसहित सारथी को इस प्रकार ढंक दे रहा था, जिस प्रकार बादल सूर्य को ढंक लेता है ॥ २९-३१ ॥ द्वन्द्वयुद्ध करनेवाले वीर एक-दूसरे से भिड़कर ललकारते हुए तथा एक-दूसरे के आगे जाते हुए मर्मस्थल पर प्रहार करते हुए आपस में युद्ध कर रहे थे ॥ ३२ ॥ उस महायुद्ध में वीरसमूह चारों ओर से अपने हाथों में नाना प्रकार के ध्वज तथा आयुध लेकर सिंहनाद करते हुए दिखायी पड़ रहे थे । उस युद्ध में महावीर महान् शब्द करनेवाले अपने शंखों को पृथक्-पृथक् बजा रहे थे और प्रसन्न होकर घोर नाद कर रहे थे । इस प्रकार दीर्घकाल तक देवताओं तथा दानवों का विकट, भयंकर तथा वीरों को हर्षित करनेवाला महायुद्ध हुआ । परमात्मा महाप्रभु शंकर की यह लीला है, जिसने देवता, मनुष्य एवं असुरोंसहित सभी को मोहित कर रखा है ॥ ३३–३६ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के पंचम युद्धखण्ड में शंखचूडवध के अन्तर्गत परस्परयुद्धवर्णन नामक छत्तीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३६ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe