शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [तृतीय-पार्वतीखण्ड] – अध्याय 02
श्री गणेशाय नमः
श्री साम्बसदाशिवाय नमः
दूसरा अध्याय
पितरों की तीन मानसी कन्याओं – मेना, धन्या और कलावती के पूर्वजन्म का वृत्तान्त तथा सनकादि द्वारा प्राप्त शाप एवं वरदान का वर्णन

नारदजी बोले — हे महाप्राज्ञ ! हे विधे ! अब आदरपूर्वक मेना की उत्पत्ति का वर्णन कीजिये और शाप के भी विषय में बताइये, इस प्रकार मेरे सन्देह को दूर कीजिये ॥ १ ॥

ब्रह्माजी बोले — हे नारद ! हे सुतवर्य ! हे महाबुध ! आप इन मुनिगणों के साथ विवेकपूर्वक मेना की उत्पत्ति के वृत्तान्त को अत्यन्त प्रेमपूर्वक सुनिये, मैं कह रहा हूँ ॥ २ ॥ हे मुने ! मैंने अपने दक्ष नामक जिन पुत्र की चर्चा पहले की थी; उनके यहाँ सृष्टि की कारणभूता साठ कन्याएँ उत्पन्न हुईं ॥ ३ ॥ उन्होंने उन कन्याओं का विवाह श्रेष्ठ कश्यप आदि के साथ किया । हे नारद ! यह सारा वृत्तान्त आपको विदित ही है, अब प्रस्तुत कथा का श्रवण कीजिये ॥ ४ ॥

शिवमहापुराण

उन्होंने उनमें से स्वधा नाम की कन्या पितरों को दी । उस स्वधा से धर्ममूर्तिरूपा सौभाग्यवती तीन कन्याएँ उत्पन्न हुईं । हे मुनीश्वर ! उन कन्याओं के पवित्र, सदा विघ्नों का हरण करनेवाले तथा महामंगल प्रदान करनेवाले नामों को मुझसे सुनिये ॥ ५-६ ॥ सबसे बड़ी कन्या का नाम मेना, मझली कन्या का नाम धन्या तथा अन्तिम कन्या का नाम कलावती था — ये सभी कन्याएँ पितरों के मन से प्रादुर्भूत हुई थीं ॥ ७ ॥ ये अयोनिजा कन्याएँ लोकाचार के अनुसार स्वधा की पुत्रियाँ कही गयी हैं । इनके पवित्र नामों का उच्चारण करके मनुष्य समस्त कामनाओं को प्राप्त कर लेता है ॥ ८ ॥ वे जगत् की वन्दनीया, लोकमाता, परमानन्द को देनेवाली, योगिनीस्वरूपा, उत्कृष्ट, ज्ञान की निधि तथा तीनों लोकों में विचरण करनेवाली हुईं ॥ ९ ॥

हे मुनीश्वर ! एक समय की बात है — वे तीनों बहनें भगवान् विष्णु के निवासस्थान श्वेतद्वीप में उनके दर्शन के लिये गयीं । भक्तिपूर्वक विष्णु को प्रणाम तथा उनकी स्तुति करके वे उनकी आज्ञा से वहीं रुक गयीं । वहाँ उस समय बहुत बड़ा समाज एकत्रित था ॥ १०-११ ॥ हे मुने ! उसी अवसर पर [मुझ] ब्रह्मा के पुत्र सनकादि सिद्धगण भी वहाँ गये और श्रीहरि को प्रणामकर वहीं उनकी आज्ञा से बैठ गये । तब सभी लोग सनकादि मुनियों को देखकर वहाँ बैठे हुए लोकवन्दित देवता आदि को प्रणाम करके शीघ्र उठ खड़े हुए ॥ १२-१३ ॥ किंतु हे मुने ! वे तीनों बहनें परात्पर शंकर की माया से मोहित होने के कारण प्रारब्ध से विवश हो नहीं उठीं ॥ १४ ॥

शिवजी की माया अत्यन्त प्रबल है, जो सब लोकों को मोहित करनेवाली है । समस्त संसार उसीके अधीन है, वह शिव की इच्छा कही जाती है ॥ १५ ॥ उसीको प्रारब्ध भी कहा जाता है, उसके अनेक नाम हैं । वह शिव की इच्छा से ही प्रवृत्त होती है, इसमें सन्देह नहीं है । उसी [शिवमाया]-के अधीन होकर उन कन्याओं ने सनक आदि को प्रणाम नहीं किया । वे केवल उन्हें देखकर विस्मित हो बैठी रह गयीं ॥ १६-१७ ॥ ज्ञानी होते हुए भी सनकादि मुनीश्वरों ने उनके उस प्रकार के व्यवहार को देखकर अत्यधिक असह्य क्रोध किया । तब शिवजी की इच्छा से मोहित हुए योगीश्वर सनत्कुमार क्रोधित होकर दण्डित करनेवाला शाप देते हुए उनसे कहने लगे — ॥ १८-१९ ॥

सनत्कुमार बोले — तुम तीनों बहनें पितरों की कन्या हो, तथापि मूर्ख, सद्ज्ञान से रहित और वेदतत्त्व के ज्ञान से शून्य हो ॥ २० ॥ अभिमान में भरी हुई तुमलोगों ने न तो हमारा अभ्युत्थान किया और न ही अभिवादन किया, तुमलोग नरभाव से मोहित हो गयी हो, अतः इस स्वर्ग से दूर चली जाओ और अज्ञान से मोहित होने के कारण तुम तीनों ही मनुष्यों की स्त्रियाँ बनो । इस प्रकार तुमलोग अपने कर्म के प्रभाव से इस प्रकार का फल प्राप्त करो ॥ २१-२२ ॥

ब्रह्माजी बोले — यह सुनकर वे साध्वी कन्याएँ आश्चर्यचकित हो गयी और उनके चरणों में गिरकर विनम्रता से सिर झुकाकर कहने लगीं ॥ २३ ॥

पितृकन्याएँ बोलीं — हे मुनिवर्य ! हे दयासागर ! अब हमलोगों पर प्रसन्न हो जाइये, हमलोगों ने मूढ़ होने के कारण आपको श्रद्धा से प्रणाम नहीं किया ॥ २४ ॥ हे विप्र ! अतः हमलोगों ने उसका फल पाया । हे महामुने ! इसमें आपका दोष नहीं है । आप हमलोगों पर दया कीजिये, जिससे हमलोगों को पुनः स्वर्गलोक की प्राप्ति हो ॥ २५ ॥

ब्रह्माजी बोले — हे तात ! तब उनकी यह बात सुनकर प्रसन्नचित्त वे मुनि शिवजी की माया से प्रेरित हो शाप से उद्धार का उपाय कहने लगे ॥ २६ ॥

सनत्कुमार बोले — हे पितरों की तीनों कन्याओ ! तुमलोग प्रसन्नचित्त होकर मेरी बात सुनो, यह तुम्हारे शोक का नाश करनेवाली और सदा ही तुम्हें सुख प्रदान करनेवाली है ॥ २७ ॥ तुममें से जो ज्येष्ठ है, वह विष्णु के अंशभूत हिमालयगिरि की पत्नी होगी और पार्वती उसकी पुत्री होंगी ॥ २८ ॥ योगिनीस्वरूपा धन्या नामक दूसरी कन्या राजा जनक की पत्नी होगी, उसकी कन्या महालक्ष्मी होंगी, जिनका नाम सीता होगा । सबसे छोटी कन्या कलावती वैश्य वृषभान की पत्नी होगी, जिसकी पुत्री के रूप में द्वापर के अन्त में राधाजी प्रकट होंगी ॥ २९-३० ॥

योगिनी मेनका पार्वती के वरदान से अपने पति के साथ उसी शरीर से परम पद कैलास को जायगी तथा यह धन्या जनकवंश में उत्पन्न जीवन्मुक्त तथा महायोगी सीरध्वज को पतिरूप में प्राप्तकर सीता को जन्म देगी तथा वैकुण्ठधाम को जायगी ॥ ३१-३२ ॥ वृषभान के साथ विवाह होने के कारण जीवन्मुक्त कलावती भी अपनी कन्या के साथ गोलोक जायगी, इसमें संशय नहीं है ॥ ३३ ॥ [इस संसारमें] बिना विपत्ति के किसको कहाँ महत्त्व प्राप्त होगा । उत्तम कर्म करनेवालों के दुःख दूर हो जाने पर उन्हें दुर्लभ सुख प्राप्त होता है ॥ ३४ ॥ तुमलोग पितरों की कन्याएँ हो और स्वर्ग में विलास करनेवाली हो । अब विष्णु का दर्शन हो जाने से तुमलोगों के कर्म का क्षय हो गया है ॥ ३५ ॥

यह कहकर क्रोधरहित हुए मुनीश्वर ने ज्ञान, भोग तथा मोक्ष प्रदान करनेवाले शिवजी का स्मरण करके पुनः कहा — [हे पितृकन्याओ!] तुमलोग प्रीतिपूर्वक मेरी दूसरी बात भी सुनो, जो अत्यन्त सुखदायक है । शिवजी में भक्ति रखनेवाली तुमलोग सदा धन्य, मान्य और बार-बार पूजनीय हो ॥ ३६-३७ ॥ मेना की कन्या जगदम्बिका पार्वती देवी परम कठोर तपकर शिवजी की पत्नी होंगी, धन्या की पुत्री कही गयी सीता [भगवान्] राम की पत्नी होंगी, जो लौकिक आचार का आश्रय लेकर उनके साथ विहार करेंगी और साक्षात् गोलोकवासिनी कलावतीपुत्री राधा अपने गुप्त स्नेह से बँधी हुई श्रीकृष्ण की पत्नी होंगी ॥ ३८–४० ॥

ब्रह्माजी बोले — इस प्रकार कहकर सबके द्वारा स्तुत वे भगवान् सनत्कुमार मुनि अपने भाइयों सहित वहीं अन्तर्हित हो गये ॥ ४१ ॥ हे तात ! पितरों की मानसी कन्याएँ वे तीनों बहनें पापरहित हो सुख पाकर तुरंत अपने धाम को चली गयीं ॥ ४२ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के तृतीय पार्वतीखण्ड में पूर्वगतिवर्णन नामक दूसरा अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २ ॥

 

 

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