September 8, 2019 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [तृतीय-पार्वतीखण्ड] – अध्याय 36 श्री गणेशाय नमः श्री साम्बसदाशिवाय नमः छत्तीसवाँ अध्याय सप्तर्षियों के समझाने पर हिमवान् का शिव के साथ अपनी पुत्री के विवाह का निश्चय करना, सप्तर्षियों द्वारा शिव के पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धाम को जाना ब्रह्माजी बोले — वसिष्ठजी की बात सुनकर अपने गणों एवं भार्यासहित विस्मित होकर गिरिराज हिमालय पर्वतों से कहने लगे —॥ १ ॥ हिमालय बोले — हे गिरिराज मेरो ! हे सह्य ! हे गन्धमादन ! हे मन्दर ! हे मैनाक ! हे विन्ध्य ! हे पर्वतेश्वरो ! आप सब लोग मेरी बात सुनें । वसिष्ठजी ऐसा कह रहे हैं । अब मुझको क्या करना चाहिये । इस सम्बन्ध में आपलोग विचार करें और मन से सब बातों का निर्णय करके जैसा ठीक हो, वैसा बताइये ॥ २-३ ॥ शिवमहापुराण ब्रह्माजी बोले — उनकी बात सुनकर सुमेरु आदि वे पर्वत भली-भाँति निर्णय करके प्रेमपूर्वक हिमालय से कहने लगे — ॥ ४ ॥ पर्वत बोले — इस समय बहुत विचार करने की आवश्यकता नहीं है, कार्य तो हो ही गया है । हे महाभाग ! यह [कन्या] देवताओं के कार्य के लिये ही उत्पन्न हुई है । इसका अवतार ही जब शिव के लिये हुआ है, तो इसे शिवजी को ही देना चाहिये । इसने रुद्र की आराधना की है और रुद्र ने इसे स्वीकृति भी दी है ॥ ५-६ ॥ ब्रह्माजी बोले — मेरु आदि पर्वतों की यह बात सुनकर हिमालय को बड़ी प्रसन्नता हुई और गिरिजा भी मन-ही-मन हँसने लगीं । अरुन्धती ने [शिव-पार्वती के विवाह के लिये] अनेक प्रकार के वचनों तथा विविध इतिहासों से उन मेना को समझाया ॥ ७-८ ॥ तब शैलपत्नी मेना सब कुछ समझ गयीं और प्रसन्नचित्त हो गयीं । उन्होंने मुनियों, अरुन्धती तथा हिमालय को भोजन कराकर स्वयं भोजन किया ॥ ९ ॥ तदनन्तर ज्ञानी गिरिश्रेष्ठ उन मुनियों की सेवा करके प्रसन्नचित्त और भ्रमरहित होकर हाथ जोड़कर प्रसन्नतापूर्वक कहने लगे — ॥ १० ॥ हिमालय बोले — हे महाभाग्यवान् सप्तर्षिगण ! आपलोग मेरी बात सुनिये, मैंने शिवा और शिवजी का सारा चरित्र सुन लिया, जिससे मेरा सारा सन्देह दूर हो गया है । मेरा यह शरीर, पत्नी मेना, पुत्री, पुत्र, ऋद्धि, सिद्धि तथा अन्य जो कुछ भी मेरे पास है, वह सब शिव का ही है, इसमें सन्देह नहीं है ॥ ११-१२ ॥ ब्रह्माजी बोले — उन्होंने इस प्रकार कहकर उस पुत्री की ओर आदरपूर्वक देखकर उसके अंगों को [अलंकारों से] सुसज्जितकर उसे ऋषियों की गोद में बैठा दिया । तदनन्तर शैलराज ने पुनः प्रेम से ऋषियों से कहा — मुझे शंकर का यह भाग उन्हें अवश्य देना है, ऐसा मैंने निश्चय किया है ॥ १३-१४ ॥ ऋषि बोले — हे गिरे ! भगवान् शंकर ग्रहीता होने के कारण भिक्षुक हैं, आप कन्यादान देने के कारण दाता हैं और देवी पार्वती भिक्षा हैं, अब इससे उत्तम और क्या बात हो सकती है । हे हिमालय ! जिस प्रकार सभी शिखरों से ऊँचे होने के कारण आपके शिखरों की श्रेष्ठता है, उसी प्रकार आप भी सम्पूर्ण पर्वतों के अधिपति होने के कारण सबसे उत्तम हैं तथा धन्य हैं ॥ १५-१६ ॥ ब्रह्माजी बोले — इस प्रकार कहकर निर्मल मनवाले मुनियों ने हाथ से स्पर्श करके कन्या को आशीर्वाद दिया कि शिव को सुख देनेवाली बनो, तुम्हारा कल्याण हो । जिस प्रकार शुक्लपक्ष का चन्द्रमा बढ़ता है, उसी प्रकार तुम्हारे गुणों की वृद्धि हो ॥ १७-१८ ॥ इस प्रकार कहकर उन सभी मुनियों ने प्रसन्नतापूर्वक हिमालय को [आशीर्वाद रूपमें] फूल तथा फल अर्पित करके विश्वास उत्पन्न कराया ॥ १९ ॥ परम पतिव्रता सुमुखी अरुन्धती ने शिवजी के गुणों से मेना को प्रलोभित किया ॥ २० ॥ तदनन्तर हिमालय ने दाढ़ी में हरिद्रा तथा कुंकुम से मार्जन किया और लौकिकाचारपूर्वक सारा मंगल किया ॥ २१ ॥ तदनन्तर चौथे दिन शुभ लग्न का निश्चयकर परस्पर सन्तुष्ट हो वे [मुनिगण] शिवजी के पास गये ॥ २२ ॥ वहाँ जाकर शिवजी को प्रणामकर अनेक सूक्तों से उनकी स्तुतिकर वे वसिष्ठ आदि सभी मुनि कहने लगे ॥ २३ ॥ ऋषि बोले — हे देवदेव ! हे महादेव ! हे परमेश्वर ! हे महाप्रभो ! आपके सेवक हम लोगों ने जो किया है, उस बात को प्रेम से सुनिये ॥ २४ ॥ हे महेशान ! हमलोगों ने इतिहासपूर्वक अनेक प्रकार के उत्तम वचनों से पर्वतराज [हिमालय] तथा मेना को बहुत समझाया, जिससे वे समझ गये, अब उन्हें सन्देह नहीं रहा । गिरीन्द्र ने वाग्दान देकर प्रतिज्ञा की है कि यह पार्वती आपकी है । अब आप अपने गणों तथा देवताओं को लेकर विवाह के लिये चलिये ॥ २५-२६ ॥ हे महादेव ! हे प्रभो ! आप शीघ्र ही विवाह के लिये हिमालय के घर चलिये तथा सन्तान-उत्पादन के लिये रीति के अनुसार पार्वती से विवाह कीजिये ॥ २७ ॥ ब्रह्माजी बोले — उनकी यह बात सुनकर शिवजी प्रसन्नचित्त हो गये और लौकिकाचार में तत्पर होकर हँसते हुए इस प्रकार कहने लगे — ॥ २८ ॥ महेश बोले — हे महाभाग ! मैंने तो विवाह न देखा है और न सुना है, आपलोग ही जैसी विधि देखे सुने हैं, उसे बताइये ॥ २९ ॥ ब्रह्माजी बोले — शिवजी के लौकिक शुभ वचन को सुनकर वे देवाधिदेव सदाशिव से हँसते हुए कहने लगे — ॥ ३० ॥ ऋषि बोले — हे प्रभो ! आप समाजसहित विष्णु को विशेष रूप से शीघ्र बुलाकर पुत्रसहित ब्रह्माजी, इन्द्रदेव, सभी ऋषि, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, सिद्ध, विद्याधर, अप्सरा — इन सबको तथा अन्य लोगों को आदरपूर्वक यहाँ बुलाइये । वे सब आपका कार्य सिद्ध करेंगे, इसमें सन्देह नहीं है ॥ ३१-३३ ॥ ब्रह्माजी बोले — ऐसा कहकर उनकी आज्ञा लेकर वे सभी सप्तर्षि शिवजी की महिमा का वर्णन करते हुए प्रसन्नतापूर्वक अपने स्थान को चले गये ॥ ३४ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के तृतीय पार्वतीखण्ड में सप्तर्षिवचन नामक छत्तीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३६ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe