शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [तृतीय-पार्वतीखण्ड] – अध्याय 37
श्री गणेशाय नमः
श्री साम्बसदाशिवाय नमः
सैंतीसवाँ अध्याय
हिमालय द्वारा विवाह के लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाह की सामग्रियों की तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियों का दिव्य रूप में सपरिवार हिमालय के घर आगमन

नारदजी बोले — हे तात ! हे महाप्राज्ञ ! हे प्रभो ! अब आप कृपाकर मुझे यह बताइये कि उन सप्तर्षियों के चले जाने के बाद हिमालय ने क्या किया ? ॥ १ ॥

शिवमहापुराण

ब्रह्माजी बोले — हे मुनीश्वर ! अरुन्धतीसहित उन सप्तर्षियों के चले जाने पर हिमालय ने जो किया, उसे मैं आपसे कह रहा हूँ । उसके बाद महामनस्वी गिरिराज हिमालय प्रिय पुत्रोंसहित अपने मेरु आदि बन्धुओं को बुलाकर बड़े प्रसन्न हुए ॥ २-३ ॥ उनसे आज्ञा लेने के बाद हिमालय ने प्रीतिपूर्वक अपने पुरोहित गर्गजी से लग्नपत्रिका लिखवायी और उन्होंने प्रसन्न मनवाले अपने सेवकों से अनेक प्रकार की सामग्रियों तथा उस लग्नपत्रिका को बड़े प्रेम से शिवजी के पास भिजवाया ॥ ४-५ ॥

उन लोगों ने कैलास पर शिवजी के समीप जाकर उनको तिलक लगाकर वह पत्रिका उन्हें प्रदान की ॥ ६ ॥ भगवान् सदाशिव ने उन लोगों का विशेष रूप से यथोचित सम्मान किया और प्रसन्नतापूर्वक वे सभी लोग हिमालय के पास लौट आये । हिमालय भी शिवजी के द्वारा विशेष रूप से सम्मानित हुए हर्षित लोगों को देखकर मन-ही-मन अत्यन्त प्रसन्न हो गये ॥ ७-८ ॥ तत्पश्चात् उन्होंने भी अनेक देशों में रहनेवाले अपने सम्बन्धियों को बड़े प्रेम के साथ सुखदायक निमन्त्रण भेजा । उसके बाद उन्होंने आदर से उत्तम अन्न तथा विवाह के लिये अनेक प्रकार की उपयोगी सामग्रियाँ एकत्रित कीं ॥ ९-१० ॥

उन्होंने चावल, चिउड़ा, गुड़, शर्करा तथा नमक का पहाड़ लगवा दिया । दूध, घी, दही की वापी बनवाकर उन्होंने जौ आदि का आटा, लड्डू, पूड़ी, स्वस्तिक, शर्करा का प्रभूत संग्रह करवाया और अमृत के समान स्वादिष्ट इक्षुरस की वापी बनवा दी तथा मक्खन, आसवों का समूह एवं महास्वादिष्ट पक्वान्नों एवं रसों का ढेर लगवा दिया ॥ ११-१४ ॥ शिवजी के गणों तथा देवताओं के लिये हितकारक अनेक प्रकार के व्यंजन, वस्तुएँ तथा अग्नि से पवित्र किये गये अनेक प्रकार के बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार की मणियाँ, रत्न, सुवर्ण तथा चाँदी — इन द्रव्यों को तथा अन्य वस्तुओं को विधिपूर्वक एकत्रित करके गिरिराज ने मंगलदायक दिन में मंगलाचार प्रारम्भ किया । पर्वतों की स्त्रियाँ पार्वती का संस्कार करने लगीं । वे स्वयं अनेक प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित होकर प्रसन्नतापूर्वक मंगलाचार करने लगीं । नगर में रहनेवाली द्विजस्त्रियाँ भी प्रसन्न होकर उत्सव तथा मंगलाचार के साथ अनेक प्रकार के लोकाचार करने लगीं ॥ १५–१८१/२ ॥

हिमालय भी प्रसन्नचित्त होकर प्रेम के साथ समस्त मंगलाचारकर बन्धुवर्गों के आने की प्रतीक्षा करने लगे । इसी बीच निमन्त्रित उनके सभी बान्धव अपनी स्त्रियों, पुत्रों तथा सेवकोंसहित प्रसन्नतापूर्वक वहाँ आ गये । हे देवर्षे ! अब उन पर्वतों का आगमन आदरपूर्वक सुनिये । मैं शिवजी की प्रीति बढ़ाने के लिये संक्षेप से इसका वर्णन कर रहा हूँ ॥ १९–२११/२ ॥

सबसे पहले सर्वश्रेष्ठ तथा श्रीमान् देवालय नामक पर्वत सुन्दर वेष से अलंकृत होकर दिव्य रूप धारणकर अनेक प्रकार के रत्नों से देदीप्यमान अपने समाज तथा कुटुम्ब के साथ अनेक मणियों तथा बहुमूल्य रत्नों को लेकर हिमालय के यहाँ पहुँचे । सम्पूर्ण शोभा से संयुक्त मन्दराचल अनेक प्रकार के उत्तम उपहारों को लेकर अपनी स्त्री तथा पुत्रोंसहित हिमालय के पास गये । उदारबुद्धिवाले तथा दिव्यात्मा अस्ताचल पर्वत भी महान् शोभा से युक्त हो विविध प्रकार की भेंटसामग्री लेकर प्रसन्नतापूर्वक हिमालय के निकट आये । उसी प्रकार हर्षोल्लास से समन्वित उदयाचल भी सभी प्रकार के उत्तम रत्न तथा मणियों को लेकर अत्युत्तम परिवार के साथ आये । मलयाचल भी आदरपूर्वक अत्यन्त दिव्य रचना से युक्त हो बहुत-सी सेना तथा परिवारसहित हिमालय के यहाँ आये । हे तात ! दर्दर नामक पर्वत भी प्रसन्न हो अपनी पत्नी के साथ महान् शोभा से युक्त होकर हिमालय के घर शीघ्र पहुँचे । निषद पर्वत भी प्रसन्नचित्त होकर अपने परिवारजनों के साथ हिमालय के घर आये । इसी प्रकार महाभाग्यवान् गन्धमादन पर्वत भी पुत्र तथा स्त्रियों के साथ प्रसन्नता से हिमालय के घर आये । महान् ऐश्वर्य से समन्वित होकर करवीर तथा पर्वतश्रेष्ठ महेन्द्र भी हिमालय के घर आये ॥ २२-३१ ॥

अनेक प्रकार की शोभा से सम्पन्न पारियात्र भी प्रसन्नचित्त होकर अनेक गणों, पुत्रों एवं स्त्रियों को साथ लेकर मणि तथा रत्नों की खान से युक्त हो हिमालय के पास गये । गिरिश्रेष्ठ पर्वतराज क्रौंच अपनी सेना तथा सेवकों को लेकर अपने पुत्र, स्त्री तथा परिवारसहित प्रसन्न हो भेंटसामग्री से युक्त हो आदरपूर्वक हिमालय के घर गये ॥ ३२-३३ ॥
पुरुषोत्तम पर्वत भी अपने समाजसहित बड़े आदर के साथ बहुत-सी भेंट-सामग्री लेकर हिमालय के पास आये । नीलपर्वत भी अपनी स्त्री तथा पुत्र के साथ बहुत-सा द्रव्य लेकर आनन्दित होकर हिमालय के घर आये ॥ ३४-३५ ॥

त्रिकूट, चित्रकूट, वेंकट, श्रीगिरि, गोकामुख तथा नारद — ये पर्वत भी हिमालय के घर आये । पर्वतश्रेष्ठ विन्ध्य भी अत्यन्त प्रसन्नचित्त होकर अपने स्त्रीपुत्रोंसहित नाना प्रकार की सम्पत्ति से युक्त हो हिमालय के घर आये ॥ ३६-३७ ॥ महाशैल कालंजर अपने अनेक गणों के साथ प्रसन्नतापूर्वक हिमालय के घर आये । कैलास नामक महापर्वत भी बड़ी प्रसन्नता के साथ कृपापूर्वक हिमालय के घर आये । वे सभी पर्वतों की अपेक्षा अधिक शोभासम्पन्न थे ॥ ३८-३९ ॥

हे नारद ! इसी प्रकार अन्य द्वीपों में रहनेवाले तथा भारतवर्ष में रहनेवाले जो अन्य पर्वत थे, वे सब हिमालय के घर आये । हे मुने ! हिमालय ने जिन पर्वतों को पहले ही प्रेम से आमन्त्रित किया था, वे सभी यह सोचकर कि यह शिवा-शिव का विवाह है, प्रसन्नतापूर्वक वहाँ आये ॥ ४०-४१ ॥ शिवा-शिव का विवाह हो रहा है — यह जानकर उस समय शोणभद्रादि सभी नद अनेक शोभा से युक्त होकर बड़ी प्रसन्नता के साथ वहाँ आये ॥ ४२ ॥ शिवा-शिव का विवाह हो रहा है — यह जानकर सभी नदियाँ दिव्य रूप धारण करके नाना भाँति के अलंकारों से युक्त हो प्रेमपूर्वक वहाँ आयीं । शिवा-शिव का विवाह हो रहा है — यह जानकर गोदावरी, यमुना, ब्रह्मस्त्री तथा वेणिका हिमालय के यहाँ आयीं ॥ ४३-४४ ॥

शिवा-शिव का विवाह हो रहा है — यह जानकर गंगाजी भी महाप्रसन्न हो दिव्य रूप धारण करके अनेक प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित हो वहाँ आयीं ॥ ४५ ॥ शिवा-शिव का विवाह हो रहा है — यह जानकर सरिताओं में श्रेष्ठ, अत्यन्त आनन्द प्रदान करनेवाली, रुद्र की कन्या नर्मदा भी बड़े प्रेम से शीघ्र वहाँ आ गयीं ॥ ४६ ॥ उस समय हिमालय के यहाँ आये हुए उन सभी लोगों से वह दिव्य तथा सभी शोभा से युक्त पुरी भर गयी । वह महोत्सव से युक्त हो गयी, उसमें नाना प्रकार के केतु, ध्वज एवं तोरण सुशोभित होने लगे, नाना प्रकार के वितानों से सूर्य का प्रकाश रुक गया और वह पुरी रंग-बिरंगे रत्नों की छटा से पूर्ण हो गयी ॥ ४७-४८ ॥

हिमालय ने भी प्रभूत आदर के साथ अत्यन्त प्रेमपूर्वक उन स्त्रियों तथा पुरुषों का यथोचित सम्मान किया । उन्होंने सभी लोगों को अलग-अलग उत्तम स्थानों पर निवास प्रदान किया और अनेक प्रकार की सामग्रियों से उन्हें पूर्णरूप से सन्तुष्ट किया ॥ ४९-५० ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के तृतीय पार्वतीखण्ड में लग्नपत्रसम्प्रेषणसामग्रीसंग्रह शैलागमनवर्णन नामक सैंतीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३७ ॥

 

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