September 25, 2019 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [पंचम-युद्धखण्ड] – अध्याय 38 श्री गणेशाय नमः श्री साम्बसदाशिवाय नमः अड़तीसवाँ अध्याय श्रीकाली का शंखचूड के साथ महान् युद्ध, आकाशवाणी सुनकर काली का शिव के पास आकर युद्ध का वृत्तान्त बताना सनत्कुमार बोले — [हे व्यास!] महादेवी ने युद्धस्थल में पहुँचते ही सिंहनाद किया, देवी के उस नाद से दानव मूर्च्छित हो गये ॥ १ ॥ भगवती ने बार-बार अशुभ अट्टहास किया, वे मद्यपान करने लगीं तथा युद्धभूमि में नृत्य करने लगीं ॥ २ ॥ शिवमहापुराण इसी प्रकार उग्रदंष्ट्रा, उग्रदण्डा, कोटवी आदि भी मधुपान करने लगीं । अन्य देवियाँ भी युद्धक्षेत्र में मधुपान और नृत्य करने लगीं ॥ ३ ॥ उस समय गणों एवं देवताओं के दल में महान् कोलाहल उत्पन्न हो गया और सभी देवता तथा गण आदि तीव्र गर्जन करते हुए हर्षित हो रहे थे ॥ ४ ॥ तब शंखचूड काली को देखकर शीघ्र संग्रामभूमि में आया । जो दानव भयभीत हो रहे थे, उन्हें राजा ने अभयदान दिया । काली ने प्रलयाग्नि की शिखा के समान आग्नेयास्त्र चलाया, तब शंखचूड ने उसे अपने वैष्णवास्त्र से शान्त कर दिया ॥ ५-६ ॥ उन देवी ने शीघ्र ही उसके ऊपर नारायणास्त्र का प्रयोग किया । वह अस्त्र दानव को प्रतिकूल देखकर जब बढ़ने लगा, तब तो प्रलयाग्नि की शिखा के समान उस अस्त्र को [अपनी ओर आता] देखकर वह पृथ्वी पर दण्ड की भाँति गिर पड़ा और गिरकर बारंबार उसे प्रणाम करने लगा ॥ ७-८ ॥ दानव को इस प्रकार विनम्र देखकर वह अस्त्र शान्त हो गया । तब उन देवी ने मन्त्रपूर्वक ब्रह्मास्त्र चलाया ॥ ९ ॥ जलते हुए उस ब्रह्मास्त्र को देखकर उसे प्रणामकर वह पृथ्वी पर खड़ा हो गया । दानवेन्द्र ने इस प्रकार ब्रह्मास्त्र से भी अपनी रक्षा की ॥ १० ॥ इसके बाद दानवेन्द्र क्रोधित हो बड़े वेग से धनुष चढ़ाकर देवी पर मन्त्रपूर्वक दिव्यास्त्र छोड़ने लगा ॥ ११ ॥ देवी भी विशाल मुख फैलाकर संग्राम में समस्त अस्त्र-शस्त्र खा गयीं और अट्टहासपूर्वक गरजने लगीं, जिससे दानव भयभीत हो उठे ॥ १२ ॥ तब उस दानव ने सौ योजन विस्तारवाली अपनी शक्ति से काली पर प्रहार किया, किंतु उन देवी ने दिव्यास्त्रों से उस शक्ति के सौ-सौ टुकड़े कर दिये ॥ १३ ॥ तब उसने चण्डिका पर वैष्णवास्त्र चलाया, किंतु काली ने माहेश्वर अस्त्र से उसे निष्फल कर दिया ॥ १४ ॥ इस प्रकार बहुत कालपर्यन्त उन दोनों का परस्पर युद्ध होता रहा, देवता एवं दानव दर्शक बनकर उस युद्ध को देखते रहे । उसके बाद युद्ध में काल के समान क्रुद्ध हुई महादेवी ने रोषपूर्वक मन्त्र से पवित्र किया हुआ पाशुपतास्त्र ग्रहण किया ॥ १५-१६ ॥ उसके चलाने के पूर्व ही उसे रोकने के लिये यह आकाशवाणी हुई — ‘हे देवि ! आप क्रोधपूर्वक इस अस्त्र को शंखचूड़ पर मत चलाइये । हे चण्डिके ! इस अमोघ पाशुपतास्त्र से भी वीर शंखचूड की मृत्यु नहीं होगी । अतः कोई अन्य उपाय सोचिये’ ॥ १७-१८ ॥ यह सुनकर भद्रकाली ने उस अस्त्र को नहीं चलाया और वे भूख से युक्त होकर लीलापूर्वक सौ लाख दानवों का भक्षण कर गयीं । वे भयंकर देवी शंखचूड को भी खाने के लिये वेगपूर्वक दौड़ी, तब उस दानव ने दिव्य रौद्रास्त्र के द्वारा उन्हें रोक दिया । इसके बाद दानवेन्द्र ने कुपित होकर शीघ्र ही ग्रीष्मकालीन सूर्य के सदृश, तीक्ष्ण धारवाला तथा अत्यन्त भयंकर खड्ग चलाया ॥ १९–२१ ॥ तब काली उस प्रज्वलित खड्ग को अपनी ओर आता देखकर रोषपूर्वक अपना मुख फैलाकर उसके देखते-देखते उसका भक्षण कर गयीं ॥ २२ ॥ इसी प्रकार उसने और भी बहुत-से दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया, किंतु भगवती ने उसके सभी अस्त्रों के पूर्ववत् सौ खण्ड कर दिये ॥ २३ ॥ पुनः महादेवी उसे खाने के लिये बड़े वेग से दौड़ीं, तब सर्वसिद्धेश्वर वह [दानवराज] अन्तर्धान हो गया ॥ २४ ॥ काली ने उस दानव को न देखकर बड़े वेग से अपनी मुष्टिका के द्वारा उसके रथ को नष्ट कर दिया तथा सारथी को मार डाला ॥ २५ ॥ इसके बाद उस मायावी शंखचूड ने बड़ी शीघ्रता से युद्धस्थल में प्रकट होकर प्रलयाग्नि की शिखा के समान जलते हुए चक्र से भद्रकाली पर प्रहार किया ॥ २६ ॥ देवी ने उस चक्र को अपने बायें हाथ से लीलापूर्वक पकड़ लिया और बड़े क्रोध के साथ शीघ्र ही अपने मुख से उसका भक्षण कर लिया । देवी ने अत्यन्त क्रोधपूर्वक बड़े वेग से मुष्टिका द्वारा उसपर प्रहार किया, जिससे वह दानवराज चक्कर काटने लगा और मूर्च्छित हो गया ॥ २७-२८ ॥ वह प्रतापी क्षणभर में चेतना प्राप्त करके पुनः उठ गया और उनके प्रति माता का भाव रखने के कारण उसने उनके साथ बाहुयुद्ध नहीं किया ॥ २९ ॥ देवी ने उस दानव को पकड़कर बारंबार घुमाकर बड़े क्रोध के साथ वेगपूर्वक ऊपर को फेंक दिया ॥ ३० ॥ वह प्रतापी शंखचूड बड़े वेग से ऊपर गया, पुनः नीचे गिरकर भद्रकाली को प्रणामकर स्थित हो गया । तत्पश्चात् प्रसन्नचित्त वह दानवश्रेष्ठ रत्ननिर्मित विमान पर सवार हुआ और सावधान होकर युद्ध के लिये उद्यत हो गया । काली भी क्षुधातुर हो दानवों का रक्तपान करने लगीं, इसी बीच वहाँ आकाशवाणी हुई कि हे ईश्वरि ! अभीतक इस रण में महान् उद्धत एवं गर्जना करते हुए एक लाख दानव शेष हैं । अतः आप इनका भक्षण करें ॥ ३१-३४ ॥ हे देवि ! आप संग्राम में इस दानवराज के वध का विचार न कीजिये, यह शंखचूड आपसे अवध्य है — यह निश्चित है । आकाशमण्डल से निकली हुई इस वाणी को सुनकर देवी भद्रकाली बहुत से दानवों का मांस एवं रुधिर खा-पीकर शिवजी के पास आ गयीं और आद्योपान्त युद्ध का सारा वृत्तान्त पूर्वापर क्रम से उन्होंने उनसे निवेदन किया ॥ ३५-३७ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के पंचम युद्धखण्ड में शंखचूडवध के अन्तर्गत काली का युद्धवर्णन नामक अड़तीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३८ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe